आरवी ने जैसे ही शोभिता का फोन रखा, उसकी बेटी ने हॅसते हुये कहा – ” मम्मी जितना खुलकर और खुश हो कर आप अपने दिल की बातें शोभिता मौसी से करती हैं, उतना खुलकर तो अपनी बहन, मम्मी और भाभी से भी नहीं करतीं हैं। क्या आपको याद है कि कभी आप लोगों में झगड़ा, मन मुटाव और गलतफहमी के कारण बोलचाल बंद हुई हो?”
” बिना परीक्षा दिये कुछ भी परिपक्व नहीं होता। हमने भी एक बार बहुत कठोर परीक्षा दी थी।”
” बताओ मम्मी, ऐसा क्या हुआ था? फिर आप लोगों के बीच में समझौता किसने करवाया?”
आरवी खो गई उन दिनों में। उसे याद आ रहा था कि कैसे उसका और शोभिता का रिश्ता टूटने की कगार पर आ गया था और उन दोनों के बीच से जब गलतफहमी की दीवार हट गई तो टूटते रिश्ते फिर से जुड़ने लगे बल्कि पहले से अधिक मजबूती से जुड़ गये। वर्षों बाद भी अब वे दोनों फिर से वही प्यारी अंतरंग सहेलियॉ हैं जिनकी मित्रता का उदाहरण दिया जाता है।
आरवी को अचानक रात से बुखार आने लगा। एक दिन तो आरवी ने आराम किया लेकिन बुखार के बावजूद जब आरवी कालेज जाने लगी तो उसकी मम्मी मंजू ने उसे टोंक दिया – ” इतने बुखार में कालेज जाने की क्या जरूरत है?”
” मम्मी आज मेरा कालेज जाना बहुत जरूरी है।”
” ऐसा क्या काम है?”
” बताऊॅगी तो आप नाराज होंगी।” आरवी को मालुम था कि मंजू को दूसरे से कुछ भी मॉगना बिल्कुल पसंद था।
फिर उसने डरते डरते बताया – ” मेरे पास शोभिता की एक साड़ी है। वह उसकी मम्मी की बहुत प्रिय साड़ी है क्योंकि वह साड़ी उसके पापा की खरीदी हुई पहली साड़ी है। बड़ी मुश्किल से उन्होंने शोभिता को यह कहते हुये दी थी कि उनकी साड़ी जरा भी खराब नहीं होनी चाहिये।”
” वह साड़ी तुम्हारे पास कैसे आई?”
” वार्षिक समारोह के दिन मैं आपकी साड़ी पहनने के लिये लेकर गई थी लेकिन वहॉ जाकर मुझे शोभिता की साड़ी पसंद आ गई और हम दोनों ने साड़ियां बदलकर एक दूसरे की साड़ियां पहन ली। फिर समारोह के बाद साड़ियां बदलने का समय ही नहीं मिला। सोंचा था कि दूसरे दिन कालेज आने पर बदल लेंगे लेकिन मैं बीमार पड़ गई। इसलिये आज तो मुझे जाना ही पड़ेगा।”
उस समय मोबाइल तो होते नहीं थे। मध्यम वर्गीय घरों में फोन भी नहीं होता था। मंजू को गुस्सा तो बहुत आया लेकिन आरवी की खराब तबियत का सुनकर अपने गुस्से को भीतर ही भीतर पी गई – ” उसका घर मालुम हो तो बताओ। मैं खुद जाकर दे आऊॅगी या तुम्हारे पापा से भिजवा दूॅगी।”
” पहले वाला घर तो मुझे मालुम है लेकिन अभी दो महीने पहले संयुक्त परिवार से अलग होने के बाद उन लोगों ने नया मकान लिया है। वह मुझे नहीं मालुम है। शोभिता कालेज आई होगी तो उसे देकर वापस आ जाऊॅगी।”
” ठीक है, तुम दवा खाकर लेटो, मै कालेज जाकर दे आती हूॅ लेकिन आज के बाद किसी से कुछ लेकर मत पहनना। तुम्हारे पास जो है उसी में संतुष्ट रहना सीखो।”
” अब कभी ऐसी गलती नहीं होगी, इस बार माफ कर दो।” मंजू ने प्यार से आरवी का सिर सहलाया।
करीब दो घंटे बाद मंजू लौटकर आई तो उसने बताया कि शोभिता तो आज कालेज आई ही नहीं। जब वह शोभिता के बारे में पूॅछ रही थी तब आरवी की ही कक्षा की एक लड़की उसके पास आ गई – ” क्या बात है आंटी? किसको ढूंढ रही हैं आप?”
मंजू ने उसे पूरी बात बताई तो उसने बताया कि आज शोभिता भी नहीं आई है – ” ठीक है बेटा, मैं चलती हूॅ। या तो कल फिर आ जाऊॅगी या शोभिता से कह देना कि घर आकर साड़ी ले जाये।” मंजू ने उस लड़की जिसका नाम सुगन्धा था अपने घर का पता बता दिया।
एक सप्ताह बाद जब आरवी कालेज गई तो सबसे पहले शोभिता ने यही पूॅछा – ” आरवी, साड़ी लाई हो ना। मम्मी बहुत नाराज हो रही थीं। पापा ने भी डॉटा कि जब तुम्हें पता था कि वह साड़ी तुम्हारी मम्मी को इतनी प्रिय है तो तुम जिद करके ले ही क्यों गईं और पहनी भी नहीं अपनी सहेली को दे दी।”
” साड़ी।” आरवी आश्चर्य चकित थी – ” साड़ी तो मम्मी खुद लेकर आईं थीं और चूॅकि तुम उस दिन आईं नहीं थीं इसलिये सुगन्धा के कहने पर मम्मी ने उसे साड़ी दे दी थी। उसने कहा था कि वह तुम्हें वह साड़ी दे देगी।”
” लेकिन सुगन्धा ने तो मुझे अभी तक कोई साड़ी नहीं दी।” शोभिता बहुत परेशान थी।
दोनों ने जब सुगन्धा से जाकर बात की तो उसने एकदम मना कर दिया – ” मुझे नहीं पता कि तुम लोग किस साड़ी की बात कर रही हो? मैं तो आंटी को जानती भी नहीं हूॅ, अगर वह मुझे दे जातीं तो मैं दूसरे दिन ही शोभिता को दे देती।”
यह सुनते ही शोभिता दोनों के सामने हाथ जोड़कर रोने लगी – ” जिसके पास भी वह साड़ी हो, मुझे दे दो। उसके बदले में मैं तुम्हें उससे अच्छी साड़ी मम्मी से कहकर दिलवा दूॅगी लेकिन वह साड़ी मम्मी के लिये एक प्यार भरी निशानी है। इसलिये मम्मी ने भी उसे सिर्फ एक बार पहनकर एक कीमती धरोहर की तरह सम्हाल कर रखा था। मम्मी तो मुझे दे भी नहीं रही थीं लेकिन मेरे बहुत जिद करने और पापा के समझाने के बाद ही देने के लिये राजी हुई थीं।”
” लगता है वह साड़ी आरवी को तुमसे अधिक पसंद आ गई है इसलिये खुद रखकर बहाने बना रही है। मुझे तो साड़ी पहनना पसंद ही नहीं है, मैं क्या करूॅगी तुम्हारी साड़ी चुराकर?”
सुगन्धा मुॅह बनाते हुये चली गई लेकिन शोभिता के मस्तिष्क में शंका का बीज डाल गई। वह बार बार आरवी से कहने लगी -” आरवी, घर जाकर अच्छी तरह देख लेना और आंटी से भी पूॅछ लेना शायद तुम लोग भूल गई हो और साड़ी घर में ही मिल जाये।वह साड़ी मेरे लिये बहुत कीमती है।”
आरवी क्या जवाब दे, उसकी मम्मी तो दूसरे दिन ही आकर सुगन्धा को साड़ी दे गईं थीं लेकिन सुगन्धा ने मना कर दिया है। फिर साड़ी गई कहॉ?
बड़े बेमन से उसने शोभिता से कहा – ” कहॉ से दूॅ वह साड़ी? फिर भी मैं मम्मी से एक बार पूॅछकर कल तुम्हें बताऊॅगी।”
” बताना नहीं लेकर आना। नहीं तो समझ लेना हमारी दोस्ती खतम हो जायेगी। मुझे चोर से दोस्ती नहीं रखनी।”
क्रोध और अपमान से आरवी का चेहरा लाल पड़ गया। उसकी सबसे प्यारी सहेली उसे चोर समझ रही है।
दूसरे दिन आरवी मम्मी को लेकर ही कालेज आई लेकिन सुगन्धा ने मंजू के सामने ही कह दिया कि वह उसे नहीं जानती और न उसे किसी साड़ी के बारे में पता है। मंजू की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? उसने शोभिता के कन्धे पर हाथ रखते हुये कहा – ” बेटा, मैं तो दुबारा आने को तैयार थी लेकिन इस लड़की ने ही कहा था कि यह तुम्हें साड़ी दे देगी वरना मैं कभी न देती। मुझे अपनी मम्मी के पास ले चलो। मैं उन्हें पूरी बात बताऊॅगी और उससे अच्छी साड़ी लाकर दे दूॅगी।”
शोभिता ने बड़ी बेदर्दी से मंजू का हाथ कंधे से हटा दिया और आरवी को घूरते हुये देखकर कहा – ” मेरी मम्मी के पास साड़ियों की कमी नहीं है। मुझे वह साड़ी वापस कर दो, मैं उससे कीमती दस साड़ियां तुम्हें दिलवा दूॅगी। तुम नहीं जानती कि उस साड़ी के खो जाने से मम्मी मुझे कभी क्षमा नहीं करेंगी।”
” कहॉ से वापस करूॅ शोभिता, मेरे पास नहीं है। अगर होती तो क्या……. ।” आरवी फूट फूटकर रोने लगी।
” चोरी करने के बाद मुझसे नाटक मत करो। आज के बाद कभी मुझसे बात मत करना। मुझे चोर दोस्त नहीं चाहिये।” पैर पटकती हुई शोभिता चली गई। आरवी के साथ मंजू भी ग्लानि से गड़ी जा रही थी। जरा सी असावधानी से इतनी बड़ी बात हो गई।
पूरे दो साल आरवी ने शोभिता की ऑखों में घृणा और बेइज्जती सही। सुगन्धा ने पूरी कक्षा में इस बात का ढिंढोरा पीट दिया कि आरवी ने शोभिता की मम्मी की बहुत प्यारी साड़ी चुरा ली और मंजू आंटी उसका झूठा नाम लगा रही हैं ताकि साड़ी देना न पड़े। शोभिता ने खुद तो किसी से कुछ नहीं कहा लेकिन इस बात का विरोध भी नहीं किया।
आरवी और शोभिता के मध्य के अलगाव और उनकी बातचीत बंद देखकर सबको यही लगा कि सुगन्धा सच बोल रही है।
आरवी ने सोंच लिया था कि ग्रेजुएशन पूर्ण होने के बाद अब वह इस कालेज में नहीं पढेगी। वही जानती थी कि अपमान, तिरस्कार और घृणा सहकर उसने कैसे यह समय बिताया है?
उसके कालेज का नियम था कि वार्षिकोत्सव में अन्तिम वर्ष के विद्यार्थियों के साथ उनके माता पिता को भी आमंत्रित किया जाता था। विद्यार्थियों के माता पिता को प्रवेश के लिये विशेष निमंत्रण पत्र भिजवाये जाते थे।
वार्षिकोत्सव में आरवी और शोभिता का भी एक एक नृत्य था। इसलिये वह जल्दी चली गई थी। पहले वे दोनों किसी भी समारोह एक साथ युगल नृत्य किया करती थीं लेकिन अब दोनों को अलग अलग प्रस्तुति देनी थी।
मंजू का मन तो नहीं था जाने का लेकिन वह अपनी बेटी का कार्यक्रम देखना चाहती थीं। इसलिये मंजू आरवी के पापा के साथ आ गई।
कालेज गेट पर पहुॅचकर आरवी के पापा ने मंजू से कहा – ” तुम कुछ देर यहॉ रुको, मैं पार्किंग में कार खड़ी करके अभी आता हूॅ, साथ ही अंदर चलेंगे। अभी कार्यक्रम शुरू नहीं हुआ है।”
तभी उन लोगों के पास एक दूसरी कार आकर रुकी और उसमें से उतरने वाली स्त्री को देखकर मंजू सन्न रह गई। वह स्त्री भी आकर मंजू के पास खड़ी हो गई और उसके पति भी कार लेकर पार्किंग की ओर चले गये।
उस स्त्री काजल ने मंजू को बताया कि उसकी बेटी सुगन्धा का ग्रेजुएशन का अंतिम वर्ष है, इसलिये वह भी वार्षिकोत्सव में अतिथि के रूप में आमंत्रित है। मंजू समझ गई कि यह स्त्री सुगन्धा की मम्मी है।
अब उसने अपने मन में घुमड़ते हुये प्रश्न को आखिर काजल से पूॅछ ही लिया – ” आपकी यह साड़ी बहुत सुंदर है। कहॉ से ली है? मुझे बहुत पसंद आ गई है, मैं भी ऐसी ही एक साड़ी खरीदना चाहती हूॅ।”
अपनी साड़ी की प्रशंसा सुनकर काजल बहुत खुश हो गई – ” धन्यवाद लेकिन यह साड़ी सुगन्धा को उसकी किसी सहेली ने उपहार के रूप में दिया था। वह अभी यहीं है, मैं उससे पूॅछकर देखती हूॅ। यदि उसे पता होगा तो जरूर बता देगी।”
मंजू जान बूझकर काजल के साथ बैठ गई। दोनों पुरुष भी साथ बैठकर आपस में बातें करने लगे। मंजू बात तो काजल से कर रही थी लेकिन उसके मस्तिष्क में कुछ और ही चल रहा था। यहॉ तक सारे कार्यक्रम समाप्त भी हो गये और उसे पता ही नहीं चला। काजल ने मंजू से कहा – ” हम यहीं बैठते हैं। भीड़ कम होने पर हमारे बच्चे हमें देखकर खुद आ जायेंगे। तभी चलेंगे।”
फिर उसने मुस्कुराते हुये कहा – ” मुझे इतने सुन्दर नृत्य के लिये आपकी बेटी को बधाई और आशीर्वाद देना है और आपको सुगन्धा से मिलवाना भी है। हो सकता है कि उसे साड़ी के सम्बन्ध में पता हो तो आपकी उत्सुकता शान्त हो जायेगी।”
नृत्य के कपड़ों में ही आरवी मंजू को देखकर आई और उससे लिपटते हुये बोली – ” कैसा लगा मेरा नृत्य मम्मी?”
कुछ क्षण के लिये तो मंजू भी सब भूल गई और बेटी के कपोलों को चूमते हुये कहा – ” बहुत अच्छा।”
” तुम्हारी मम्मी ने तो तुम्हारा नृत्य देखा ही नहीं, पता नहीं किन ख्यालों में डूबी थीं? ” अपनी मम्मी के बगल में बैठी काजल का नारी कंठ का स्वर सुनकर जब आरवी ने उस ओर देखा तो हतप्रभ रह गई।
आरवी की मनोस्थिति को जानकर मंजू ने परिचय करवाते हुये कहा – ” यह सुगन्धा की मम्मी हैं। हम लोग गेट पर मिल गये थे।”
आरवी ने भी अपने पर नियंत्रण करते हुये उन्हें नमस्ते की तो उन्होंने आरवी के सिर पर हाथ फेरते हुये उसे आशीर्वाद देते हुये उसके नृत्य की प्रशंसा की।
तभी सुगन्धा दूर से अपनी मम्मी को देखकर पास आ गई लेकिन जब उसने अपनी मम्मी से आरवी को बात करते देखा तो उस पर जैसे बिजली गिर पड़ी। काजल ने जब मंजू का परिचय सुगन्धा से कराया तब मंजू ने केवल इतना कहा कि सुगन्धा मुझे जानती है। मंजू और आरवी की नजरें एकटक सुगन्धा को देख रही थीं और सुगन्धा शर्म से गड़ी जा रही थी।
तभी काजल ने कहा – ” सुगन्धा तुमने आंटी को नमस्ते भी नहीं की, यह तो गलत बात है। अरे….. सुनो, आंटी को यह साड़ी बहुत पसंद आई है। क्या तुम जानती हो कि तुम्हारी सहेली ने इसे कहॉ से खरीदा था? नहीं तो उससे पूॅछ कर आरवी को बता देना।”
सुगन्धा सिर झुकाये खड़ी थी। तभी आरवी ने कहा – ” आंटी, चलिये आपको अपनी एक और सहेली के साथ उसकी मम्मी से भी मिलवाती हूॅ। हम तीनों बहुत अच्छे दोस्त हैं।”
” हॉ चलो।” मंजू के साथ काजल भी उठकर खड़ी हो गईं।
” लेकिन शोभिता तो अब तक चली गई होगी।” बड़ी मुश्किल से सुगन्धा ये शब्द बोल पाई।
” अभी नहीं गईं हैं, वह देखो सामने आ रही हैं।” सुगन्धा चाहकर भी कुछ न कर पाई और आरवी मंजू और काजल को लेकर आगे बढ़ गई तो उनके पीछे सुगन्धा को भी जाना पड़ा।
आरवी को देखकर शोभिता ने मुॅह बना लिया लेकिन जब उसकी और उसकी मम्मी राजी की नजर काजल की ओर उठीं तो वे दोनों अवाक रह गईं – यह साड़ी….।”
” क्या बात है, आज सब लोग मेरी साड़ी देखकर चौंक क्यों रहे हैं?”
” यह तो सुगन्धा बतायेगी।” शोभिता के स्वर में क्रोध था लेकिन सुगन्धा की जिह्वा पर तो जैसे ताला लग गया था।
अब काजल को भी लगने लगा कि इस साड़ी से सम्बन्धित कोई तो ऐसी बात है जो उन्हें पता नहीं है। उन्होंने फिर पूॅछा – ” मुझे बताओ बात क्या है?”
तब शोभिता ने उन्हें पूरी बात बताई। सुनकर वह दंग रह गईं- ” क्या यह सच है सुगन्धा? एक साड़ी के लिये तुमने इतने लोगों की भावनाओं से खेला है? चोरी जैसे गन्दा काम करके तुमने हमेशा के लिये मेरा विश्वास खो दिया है।” साथ ही एक जोरदार थप्पड़ सुगन्धा के गाल पर पड़ा फिर उन्होंने मंजू और राजी के सामने हाथ जोड़ते हुये कहा – ” अपनी बेटी के इस कृत्य के कारण मेरा सिर शर्म से झुक गया है। समझ में नहीं आ रहा कि क्या कहूॅ?”
दूसरे दिन काजल पहले शोभिता के घर गईं। उसने राजी की साड़ी ड्राईक्लीन करवा कर एक बैग में रखी थी और दूसरे बैग में दो साड़ियां रखी थीं – ” आप लोगों की मानसिक वेदना को तो कम नहीं कर सकती लेकिन यदि आपने ये साड़ियां नहीं ली तो मैं समझूॅगी कि आपने मुझे क्षमा नहीं किया।”
” ऐसा मत सोचिये, सुगन्धा की ग़लती के लिये आप क्यों क्षमा मॉग रही हैं? शायद और कोई साड़ी होती तो मुझे भी इतना बुरा न लगता लेकिन उस साड़ी से मेरी भावनायें इस तरह जुड़ी हैं कि खराब होने के डर के कारण मैंने भी एक बार से अधिक नहीं पहना है। अपनी साड़ी मैं ले लेती हूॅ लेकिन दूसरी साड़ियां मैं नहीं ले सकती।”
बहुत जिद करने पर भी राजी ने साड़ियां नहीं लीं तो काजल ने दोनों साड़ियां शोभिता को देते हुये कहा – मैं अपनी बेटी को इतने अच्छे कार्यक्रम के लिये आशीर्वाद के रूप में दे रही हूॅ, अब आप मना मत कीजिये।”
अब तो मॉ बेटी लाचार हो गईं। इसी तरह दो साड़ियॉ काजल ने आरवी के घर जाकर क्षमा मॉगते हुये आरवी को दे दीं
। आरवी और शोभिता दोनों ने सुगन्धा से बात करना तो छोड़ ही दिया और साथ ही सुगन्धा की यह हरकत धीरे धीरे पूरी कक्षा को पता चल गई।
गलतफहमी की दीवार गिरते ही आरवी ने सोचा था कि असलियत सामने आ जाने के बाद उन दोनों के मध्य टूटते रिश्ते जुड़ने लगेंगे लेकिन पश्चाताप और ग्लानि के कारण शोभिता में आरवी का सामना करने की हिम्मत नहीं रह गई थी। आरवी भी शोभिता की मनःस्थिति समझ रही थी।
एक दिन जब शोभिता कैन्टीन के पीछे वाले लान में अकेली बैठी थी तो आरवी ने पीछे से जाकर उसे अपनी बॉहों में भर लिया – ” अब भी नाराज हो?”
शोभिता पीछे मुड़ी और आरवी के गले लगकर रोने लगी – ” कैसे आती तुम्हारे पास? तुम्हारा और आंटी का सामना करने की मेरी हिम्मत नहीं पड़ रही थी। समझ नहीं आ रहा कि आंटी से क्षमा कैसे मॉगू? मैंने तुम्हारा और आंटी का विश्वास न करके सुगन्धा का विश्वास करके तुम्हें चोर बना दिया? मुझसे दूर हो जाओ आरवी, मैं तुम्हारी दोस्ती के योग्य नहीं हूॅ।”
आरवी ने अपनी हथेलियों से उसके ऑसू पोंछे – ” वह सब एक गलतफहमी के कारण हुआ और गलतफहमी दूर होते ही हमारे रिश्ते जुड़ने लगे थे। मेरे मन में तुम्हारे लिये कोई मैल नहीं है। अब हम दोनों वही प्यारी और अंतरंग सहेलियॉ हैं, अब हमारे रिश्ते पूरी तरह से जुड़ गये हैं और कभी नहीं टूटेंगे।”
शोभिता ने उसके हाथों को अपने हाथों में लेते हुये कहा – ” ईश्वर को बहुत बहुत धन्यवाद जो काजल आंटी वह साड़ी पहनकर आ गईं वरना इस गलतफहमी के कारण हमारा रिश्ता तो टूटकर बिखर ही गया था।”
” मुझे तो पता था कि आंटी की साड़ी सुगन्धा ने चुरा ली है लेकिन तुम्हें यकीन नहीं दिला पाई। शायद हमारे विश्वास की डोर मजबूत नहीं थी।”
” बिल्कुल, अब हम कभी किसी गलतफहमी में नहीं पड़ेंगे।”
एक बार फिर दोनों गले लग गई। तब से आज तक दोनों सहेलियों के बच्चों के युवा हो जाने के बाद भी रिश्तों की डोर कभी भी कमजोर नहीं हुई।
” वाह मम्मी, सचमुच मजा आ गया आपकी और शोभिता मौसी की कहानी सुनकर।”
” हॉ बेटा, दोस्ती का रिश्ता ही सबसे मजबूत होता है। तुम भी अपने दोस्त कम बनाओ लेकिन ऐसे बनाना जो बहुत गहरे हों, हमेशा चलते रहें।”
अपनी बेटी के साथ आरवी भी मुस्करा दी।
बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर