फूटी आंखों न भाना – डाॅ संजु झा : Moral Stories in Hindi

ज़िन्दगी में कभी-कभी ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो जातीं हैं कि जो हमें फूटी आंखों नहीं भाता है,वहीं विपत्ति की घड़ी में मजबूत संबल बनकर खड़ा हो जाता है।रीना को अपनी ननद ऊषा फूटी आंखों न भाती थी।जब रीना शादी कर ससुराल आई,उस समय ऊषा मात्र पन्द्रह वर्ष की थी।कौतूहलवश ऊषा अपनी भाभी से बहुत सारी बातें पूछती।

हमेशा उसके आगे -पीछे लगी रहती थी।आरंभ में तो उसे ऊषा का साथ प्यारा महसूस हुआ, परन्तु धीरे-धीरे उसे अपनी जिन्दगी में ऊषा की दखलंदाजी खटकने लगी।ऊषा के प्रति उसका व्यवहार रुखा हो चला।ऊषा का  बड़ा भाई अवध उससे बहुत प्यार करता था।समय के साथ ऊषा शादी कर अपने ससुराल चली गई।

ऊषा का मायके आना रीना को फूटी आंख नहीं सुहाता था। माता-पिता के गुजर जाने के बाद ऊषा ने लगभग मायके आना बंद ही कर दिया।कहावत सच है कि  लड़कियों का मायका भले ही छूट जाएं, परन्तु वे मायके की खोज-खबर लेना नहीं भूलतीं हैं।

ऊषा का भाई अवध बैंक में नौकरी करता था। बैंक लूटने के क्रम में लुटेरों ने उसे गोली मार दी।वह गंभीर अवस्था में अस्पताल में भर्ती था। भाई की खबर सुनकर आनन-फानन में ऊषा अपने पति के साथ मायके पहुंच गई।रीना अपने दोनों छोटे बच्चों को पड़ोस में छोड़कर अस्पताल में  अकेले परेशान थी।पति को बेसुध हालत में देखकर रीना को ज़िन्दगी रेगिस्तानों-सी वीरान लगने लगी।उसे ऐसा महसूस हो रहा था मानो उसके चारों ओर गर्म धूल की परतें जम गईं  हों। रोते-रोते उसकी आंखें जड़ होकर बस शून्य में निहार रहीं थीं।उसी समय ऊषा को पति के साथ देखकर उसका बंधा धीरज का बांध टूटकर बह गया और वह ऊषा के गले लगकर रो पड़ी।

ऊषा ने रीना को धीरज बंधाते हुए कहा -“भाभी!आप चिन्ता मत करो।भैया जबतक पूर्णरुपेण ठीक नहीं हो जाते,तब तक हम दोनों आपके साथ रहेंगे।ऊषा की बातें सुनकर रीना को एहसास हुआ कि जो ऊषा उसे फूटी आंखों नहीं सुहाती थी,वहीं विपत्ति की घड़ी में उसकी मजबूत संबल बनकर आ खड़ी हुई है।ननद-भाभी दोनों के मन में छाई नाराजगी की धुंध छंट चुकी थी। दोनों को एहसास हो रहा था कि मन के फिज़ा में खुशियों ने दस्तक दे दी है।पति के ठीक होने की खबर सुनकर रीना का मन प्रफुल्लित हो उठा।ऊषा ने जाते समय कहा “भाभी!आपसी रिश्तों को  भी पनपने के लिए प्यार और भावनारुपी खाद की जरूरत होती है,वरना वे मुर्झा जाते हैं!”

रीना ने भींगी पलकों के साथ रीना की बातों में हामी भरी‌।

समाप्त।

लेखक -डाॅ संजु झा  स्वरचित

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