फिज़ूलखर्ची – अंजना ठाकुर  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : बहू जरा अमित से कहना मेरा चश्मा बनवा लाएगा कल गलती से  गिर गया तो उसका कांच टूट गया  किशोर जी बहू से डरते डरते बोले

माधवी सुनकर जोर से बोली क्या बाबूजी आप

ध्यान रखा करो पैसे कितनी मेहनत से आते है और आपको फिजूलखर्ची की पड़ी रहती है

तभी सुमित्रा जी बोली बहू कोई जान बूझ कर तो नहीं तोड़ा वैसे भी बहुत पुराना हो  गया था और पैसे की कीमत हम भी समझते है इसलिए जरूरी खर्च ही करवाते है

तभी अमित कमरे मैं आ गया उसने माधवी से कहा ये क्या फालतू  बातें  कर रही हो मां – पिताजी से उनकी जरूरत तुम्हें फिजूलखर्ची लग रही है माधवी गुस्से मै  वहां से चली गई

अमित बोला पापा आप साथ ही चलो एक बार चेकअप करवा कर नया चश्मा बनवा दूंगा मैं तैयार हो कर आता हूं

अमित कमरे मै गया तो माधवी बोली तुम्हें कुछ समझ आता है सारा पैसा इन पर ही लुटा दोगे

हमारे भी खर्चे है अमित बोला तुम हर बार एक ही बात करती हो अब मैं उनका खर्चा नहीं उठाऊंगा तो कौन उठाएगा

किशोर जी एक प्राइवेट कंपनी मै काम करते थे उनका एक बेटा था तो उन्होंने उसे पढ़ा लिखा कर योग्य बनाया पैसों की चिंता नहीं करी क्योंकि उन्हें लगता था बेटे को योग्य बनाना हर माता -पिता का फर्ज है अमित भी पढ़ लिख कर सरकारी नौकरी करने लगा अमित अपने माता पिता की बहुत इज्जत करता है समय आने पर माधवी से शादी हो गई अब उनके दो साल का बेटा है मिंटू जो दादा – दादी का बहुत लाड़ला है

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माधवी वैसे तो सास – ससुर  का ध्यान रखती लेकिन जहां पैसे खर्च करने की बात आती तो उस से सहन नहीं होता उसको लगता पति की कमाई उसके लिए ही है  लेकिन अमित के कारण ज्यादा बोल नहीं पाती।

समय गुजर रहा था माधवी के भाई की शादी हो गई घर मैं भाभी आ गई माधवी की मां बहुत पहले गुजर गई थी पापा भी रिटायर हो गए थे जो पैसे थे वो माधवी की शादी मैं खर्च हो गए भाई ही घर चला रहा था और पापा की जिम्मेदारी भी ।

आज बहुत दिनों बाद माधवी पापा से मिलने आई थी देखा पापा बहुत कमजोर लग रहे है पापा से पूछा क्या बात है  तो पता चला भाभी ने दूध  और फ्रूट्स बंद कर दिए बोल रही थी इस उम्र मैं दूध की क्या जरूरत है और फल भी नुकसान करते है

मेहनत से पैसे आते है फिजूलखर्ची क्यों करना ।

माधवी को गुस्सा आया वो भाभी को बोलने ही जा रही थी की पापा ने रोक लिया बोले रहने दे घर मैं लड़ाई होगी फिर मुझे तो यहीं रहना है जब बेटे को फिक्र नहीं तो बहु को क्यों दोष देना

माधवी बड़बड़ा रही थी तभी उसे अहसास हुआ की वो भी तो यही करती है अपने सास -ससुर के साथ यदि अमित उसकी बातों मैं आ जाता तो

अब उसे आत्मग्लानि हो रही थी ये क्या कर रही है  वो माता – पिता की जरूरत फिजूलखर्ची नहीं होती ।

वो  घर लौट रही थी रास्ते मैं हलवाई से रबड़ी खरीद ली पिताजी को बहुत पसंद है पर डर के कारण अब कहना बंद कर दिया जल्दी से आई और कटोरी मैं कर के दोनों को देने गई पिताजी की आंखों मैं चमक आ गई और आश्चर्य भी बोले बहू आज कुछ है क्या

माधवी बोली नहीं  पिताजी!

तो फिजूलखर्ची क्यों करी फालतू मैं ,माधवी बोली अपनों की जरूरत फिजूलखर्ची नहीं होती

दोनों की आंखों मैं खुशी देख माधवी की ग्लानि कम हुई मन ही मन बोली भाई से बात करूंगी और उन्हें भी यही समझाऊंगी ।।

#आत्मग्लानि

स्वरचित

अंजना ठाकुर

 

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