Moral stories in hindi :
आँसू की फितरत भी अजीब है
एक ऑंसू जो ख़ुशी में झलकता है
एक आँसू जो गम में मचलता है
एक आंसू जो बाहर आ जाए
एक आंसू जो तड़प के आँख में ही रह जाये
दोस्तों, इन्हीं चार पंक्तियों के इर्द गिर्द बुनी है, आज मैंने अपनी कहानी, पसंद आये तो बताये ज़रूर।
आज रेलवे स्टेशन पे बहुत भीड थी। विजय एक आर्मी अफसर , इस छोटे से शहर की आन-बान-शान था, जो आज आ रहा था अपने शहर वापिस । जब भी वो आता ऐसे ही हुज़ूम उमड़ पड़ता उसके स्वागत के लिए। विजय आज लगभग २ साल बाद अपने घर आ रहा था। शहरवासियों ने फूल-मालाओं से उसका स्वागत किया। उन्होंने पूरा शहर सजा रखा था, मानो आज ही दिवाली हो।
सब ओर ख़ुशी ही ख़ुशी थी। विजय का छोटा भाई राज, जिसने अभी-अभी आर्मी ज्वाइन की थी, बड़े भाई को लेने स्टेशन पे आया और जोर की जफ्फी दी भाई को। उसकी आँखे भरी देख विजय बोला- “आर्मी वाले रोते नहीं।”
घर पर माँ और पत्नी ने खूब गर्मजोशी से स्वागत किया। घर दुल्हन की तरह सजा हुआ था। माँ की तो बेटे के गले लगते ही आँखे आँसूओ से भर गयी।
बेटे बोला- “अरे!माँ, अब तो आ गया हूँ। अब क्यों रो रही हो?”
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माँ बोली- “बेटा, बहने दे, ख़ुशी के आंसू है, किस्मत वालो को ही नसीब होते है। पुत्र मिलन की निशानी है ये आँसू।”
फिर विजय अपनी पत्नी से मिला । जिसके ठहरे हुए आंसू आज बह निकले थे। मानो शिकायत कर रहे हो… बड़ी देर लगा दी हुजूर आते आते ….
विजय १ महीने की छूटी पे आया था। घर में आज- कल हर-रोज होली, दिवाली होती थी। रोज नए पकवान बनते। हर रोज घर में विजय से मिलने वालो का मेला सा लगा रहता। कैसे महीना बीत गया पता ही न चला।
जैसे-तैसे १ महीना निकल गया और विजय वापिस लौट गया, अपनी भारत माँ की रक्षा को। इस बार उसकी पोस्टिंग कश्मीर में हुई थी। कश्मीर में इन दिनों दंगे चल रहे थे और बॉर्डर पर लगातार गोलीबारी हो रही थी, जिसकी कमान विजय ने संभाल रखी थी।
देश में, विजय के शहर में और घर में तनाव का माहौल था।
और फिर… एक दिन …. दुश्मन की एक गोली का शिकार विजय भी बन गया था। विजय के शहर में तो मातम के बादल उमड़ पड़े थे। और आज फिर रेलवे स्टेशन पर भीड़ जमा थी। आज फिर पूरा शहर विजय को लेने आया था। फर्क इतना था उस दिन जवान आर्मी ऑफिसर विजय के स्वागत में भीड़ इक्कठा हुई थी, ख़ुशी के आंसू लेकर ….और आज ….
…….आज शहीद विजय को लेने आया था सारा शहर, दिल में गम और आँखों दुःख के में आंसू लेकर। कोई आँख ऐसी ना होगी जो समंदर न बन रखी हो ।
आज ख़ुशी के आंसू बहाने वाली माँ तिरंगे में लिपटे अपने बेटे के पार्थिव शरीर से लिपट लिपट रो रही थी। हर मन भारी था। हर आँख में आंसू था। पर २ लोग जो केवल बुत्त बने खड़े थे। वो थे विजय की गर्भवती पत्नी सुजाता, जिसकी आँखे आँसूओ से भरी पड़ी थी, पर आंसू है कि बाहर आने का नाम नहीं ले रहे थे। भीतर ही भीतर आँखों के कोरो में तड़प रहे थे।
वो कोने में खड़ी बस अपने पति को देख रही थी, शायद इस आस से कि अब पति उठ जाये और भर ले बाँहों में अपनी। घर की औरते उसे झिंझोड़ रही थी, नहीं आएगा वो लौट के अब, आखिर बहुत हिम्मत की थी उस आंसू की एक धार ने पत्नी सुजाता की आंखों से निकलने के लिए। आँसू की वो बेबस धार जो केवल एक आँख से बह निकली थी।
दूसरी तरफ भाई राज, जिससे पिछली बार बड़े भाई ने वायदा लिया था कि अगर कभी वो वापिस नहीं आता तो रोयेगा नहीं वो, शहीद की शहादत को बेकार नहीं जाने देगा वो, दूसरा भाई ने बोला था आर्मी आफिसर कभी रोता नहीं। इस लिए बुत बना खड़ा था वो भी। आंसू कहीं आँखों में मचल रहे थे, बाहर आना के रास्ता खोज रहे थे, पर राज ने उनके बाहर निकलने के सारे रस्ते बंद कर दिए थे।
यह कहानी जो लगभग हर रोज यथार्थ बन कर टी. वी. पर आती है और अक्सर हम लोगो को आंसूओ से भर देती है। हमारे यह आँसू उस अनजान व्यक्ति के लिए नहीं,बल्कि देश के उस फौजी के लिए , उसके प्रति सम्मान होता है जो बिना किसी स्वार्थ हमारी, देश की रक्षा करता है। जय जवान !!!!
रीतू गुप्ता
स्वरचित
अप्रकाशित