फिर कब मिलोगे – रीमा महेंद्र ठाकुर 

वो नजरें चुरा रहा था, खनक “से पर खनक उसकी आंखों में कुछ तालाश रही थी, पर वो उससे कुछ छुपाने की कोशिश कर रहा था! उसकी खामोशी, खनक को चुभ रही थी! 

अखिर ऐसा क्या हुआ था! 

शिवा पहले तो ऐसा न था, खनक के सीने में कुछ दहक रहा था! शायद शिवा के लिए वो गुबार था, जो वो दो साल से न कह पायी थी! और क्या शिवा उसकी बातें नही समझता, बस उसे अहसास करा रहा है, की उसे खनक की परवाह नही, सारे वादे क्या झूठे थे, कुछ गरम सा लुढक कर कच्ची जमीन पर गिरा, और ज्जब हो गया मिट्टी में, शायद वो इतने दिनों से दबा, गुस्सा या प्रेम या कुछ और, कैसे समझाये शिवा को, एक एक पल का हिसाब, घुटन, ——

मम्मा चलो,  हा, खनक बोली, शिवा कुछ ही दूरी पर बैठा था! 

खनक की बेटी, ने खनक का हाथ थाम लिया! 

पलटकर देखा खनक ने, पर शिवा वैसे ही बैठा शून्य को घूरे जा रहा था! 

बिल्कुल अंजान सा, बेखबर, खनक को झुंझलाहट हुई अखिर कैसे कोई इतना मतलब परस्त हो सकता है! 

मैनें ऐसे बेपरवाह को चाह कैसे लिया, लम्बे डग भरती खनक शिवा की आंखों से ओझल हो गयी! 

शिवा, की आंखों में आंसू झिलमिला गये! 

माफ कर दो खनक,, मै तुम्हारा गुनाहगार हूँ! शिवा खडा हो गया, वो चाह रहा था, की खनक को सारी सच्चाई बता दे, 

पर अब वो समय नही था, और सच्चाई जानने के बाद, क्या खनक उस पर भरोसा करेगी, शायद,,, कर भी ले तो क्या खुद को सबित करने के लिए, उसकी गृहस्थी में आग तो नही लग जाऐगी, अब मै क्या करूँ खनक मैने तुम्है खो दिया! 

शिवा घुटने के बल बैठ गया, हाथों से अपनी आंखे ढक ली, 

और सिसक पडा   “”शिवा की यादें, उसे कुछ साल पीछे ले गयी, वो उन पलो में खोता चला गया! 


वो शाम कुछ मदहोशी भरी थी, जूही के सफेद फूलों की खूश्बू चारो ओर बिखरी थी, खनक ने सफेद  सूट  पहन रखा था, धानी रंग की चुनरी, ढलती सी सिंदूरी शाम को मोहक बना रही थी! 

दूर से शिवा उसे जाने कबसे चाहत भरी नजरों से देख रहा था! 

खनक खुद में खोई थी!  अच्छा हुआ जो वो आज यहाँ आ गयी, घर वाले बाप रे दिन भर ज्ञान देते हैं! 

पीछे से किसी ने पीठ पर धप्पा दिया, खनक चौंक गयी, 

वो कौशम्बी थी! कौशम्बी, यार तू भी हद करती है! 

क्या हुआ किसके ख्यालों में खोई है! 

किसी के नही,,,,, अरे बता भी दे, कौशम्बी ने चुटकी ली, 

अरे कौन मुझे ख्यालों में बसाऐगा, अपनी बदनसीबी पर रोऐगा, 

खनक बोली, 

चल हट झूठी, कौशम्बी ने छेडा, चल नही बताना है तो मत बता, 

नाटक मत कर,,, ये लो, यहाँ कुछ हुआ नही, और इन्होंने डोली मांगा ली, देवि ऐसा कुछ नही है, घर वालो के बारे में सोच रही थी,,, अच्छा बीच में बात काटी कौशम्बी ने, घरवालों की घरवाले, बता बता झूठी,,,, अब तू पिटेगी मेरे हाथ से, कौशम्बी आगे आगे भाग रही थी, और खनक पीछे, कुछ ही देर में कौशम्बी बैठ गयी! 

दोनों सहेलियों की नोक झोक, कुछ ही दूर खडा शिवा सुन रहा था, उनकी बातें सुनकर मुस्कुराहट के भाव उसके चेहरे पर आ जा रहे थे! 

खनक की आवाज की खनखनाहट, शिवा के दिल में उतर गयी, उसकी मासूममियत, कितनी भोली अल्हड़ सी, जैसे कोई गुडिया, ओह साॅरी, शिवा कुछ बोलता उसके पहले वो दोनों आगे बढ़ गयी,,, कौशम्बी तू कब सुधरेगी, वो विचारा , क्या सोच रहा होगा, की कैसी निर्लज्ज लडकियां हैं! 

जो धक्का, मुक्की करती हुई चल रही है! वो सोचे उसकी बला से, हम तो भाई ऐसे ही है! ऐसे ही रहेगें, कौशम्बी ठहाके मार कर हंसने लगी, कल ही मेरे रिश्ते की बात आयी  थी! 

अच्छा क्या हुआ जल्दी बता, खनक ने उत्सुकता से पूछा, 

ज्यादा खुश मत हो, मैंने  न कर दिया, तू कब सुधरेगी कितनी बडी तो हो गयी,, अरे समझा कर, मै चली गयी, तो तेरी लाइफ पहले से ही बोरियत भरी है! और बोर हो जाऐगी,,, हाँ ये बात तो है! 

सुनिए ये शायद आपका है,  अरे हां कहाँ से मिला, कौशम्बी , शिवा के हाथ से  डायरी छीनती हुई बोली, वही  बैचं पर थी, शायद आप लोग भूल गये थे! बहुत बहुत धन्यवाद अब आप जा सकते है, अरे कौशम्बी, इस तरह से कैसी बात कर रही है! 

धन्यवाद आपका, खनक बोली, मेरा नाम शिवा, महाजन है, शिवा  निहायत खूबसूरत अंदाज से बोला, जी, खनक चुप हो गयी, और आपका, खनक, वैष्णव, बहुत नया नाम है, कुछ हटकर, अब चले, हा चलते हैं, कितना चिपकू है, सब लडके ऐसे होते है, कितनी शालीनता से पूछ रहा था! 

कुछ शब्द शिवा के कानो में अभी तक गूंज रहे थे! 

ऐसी थी शिवा और खनक की पहली मुलाकात,,,, 

फोन कब से बज रहा था! शिवा ने जेब से निकाला, छोटी बहन नियति का था! भैया कहाँ हो, पापा को शायद अटैक आया है! 

मै हास्पिटल जा रही हूँ! वही आ जाना! ठीक है मै पहुंचता हूँ! 

शिवा ने बाइक स्टार्ट की, और हास्पिटल की ओर बढ गया! 

बाईक तेज गति से आगे बढ रही थी, उससे भी तेज गति से शिवा का मन, हास्पिटल के गेट पर छोटी बहन घबरायी हुई दूर से ही नजर आ रही थी! 

बाईक  , पर शिवा उसे दूर से ही नजर आ गया था! 

भाई,  नियति दौडकर उसके करीब आ गयी! 

पापा जी, सुबक उठी नियति, 

बिल्कुल चुप, मै हूँ न  नियति को सीने से लगा लिया शिवा ने “

सब ठीक हो जाऐगा ” नियति के सिर को हौले से सहलाते हुए शिवा बोला ” पापा जी किधर है “

इमरजेंसी मे ” नियति को हौले से खुद से अलग कर, इमरजेंसी रूम की ओर बढ गया शिवा “

दरवाजे पर लगे पारदर्शी कांच से अंदर झांक कर देखा, कुछ नर्स, डाक्टर नजर आ रहे थे! 

पर कुछ सुनाई नही दे रहा था! 


शिवा बैचनी से चहल कदमी करने लगा! 

रूम का गेट खुलते ही नर्स सामने खडी थी! सिस्टर, 

हूँ ”  पीछे पलटी नर्स, पापाजी कैसे है! 

अभी कुछ नही कहाँ जा सकता, गाॅड से प्रे करो सब अच्छा होगा, अरे हा ये कुछ दवाईयां है जो हास्पिटल मे नही है, 

आपको बाहर के मेडिकल से लानी होगी! 

जी शिवा ने पर्ची के लिए हाथ आगे बढा दिया ” थोड़ा जल्दी लाने की कोशिश कीजिएगा”

अब तक नियति भी आ चुकी थी! भाई के चेहरे पर चिंता की रेखा उसे साफ नजर आ रही थी! 

नियति की ओर सरसरी नजर डाली, और मेनगेट की ओर बढ गया शिवा “

नियति बस खडी देखती रही! 

कुछ ही मिनट बीते थे की नर्स नियति के सामने थी, पैसेन्ट सिरियस है, आपके साथ जो युवक था वो अभी आया या नही, 

नही सिस्टर, नियति घबरा कर बोली, आप मुझे बताईऐ वो मेरे पापा जी है! वो किसी शिवा नाम के व्यक्ति से मिलने की इच्छा जता रहे हैं’

जी सिस्टर मै भाई को बुलाती हूँ! 

भाई कहाँ हो, फोन पर बात करते नियति सिसक उठी, नर्स बोल रही है कि पापा जी की स्थिति गंभीर है! 

जल्दी आओ, 

बस पहुँच गया, 

नियति की नजर मेन गेट पर ही लगी हुई थी!शिवा गेट पर नजर आया,  उसके हाथ मे दवाईयों का पैकेट था! 

वो बिना रूके, इमरजेंसी रूम की ओर बढ गया! 

जहाँ नर्स पहले से खडी थी! 

मिस्टर शिवा आप बिना देर किये, मेरे साथ आईऐ”

रूम मे प्रवेश करते ही शिवा की नजर पापा जी पर पडी उनके आंखे बंद,थी! 

चेहरा धूमिल हो गया था  ! 

आंखे भर आयी शिवा की, पापा जी, धीरे से शिवा बोला, 

पापा जी ने धीरे से आंखे खोली, उनकी आंखो मे खालीपन था! 

पापा जी ने ऑक्सीजन हटाने का इशारा किया! 

शिवा उनके करीब आ गया! 

पापा जी, शिवा  हाथ पकड कर चूमने लगा “

मै ठीक हूँ, लडखडाती आवाज मे पापा जी की आवाज शिवा के कानों में गूंजी, 

नियति,,,, 

ठीक है पापा जी, बाहर है, बुला कर लाता हूँ! 

न मे इशारा किया पापा जी ने”

तू है न उसके लिए “

कस कर हाथ पकड लिया  पापा जी ने”

शिवा ध्यान से सुन, 

अस्पष्ट सी आवाज  मे पापा जी बोले “

एक राज है जो मैने जीवन भर छुपा कर रखा! 

माफ कर देना मुझे “

पापा जी, 

नर्स  की ओर देखा पापा जी ने, नर्स पैसेटं की स्थिति भांप गयी! 

और रूम से बाहर चली गई “

बेटा मुझे पता है , की ज्यादा समय नहीं है मेरे पास “

पापा जी, ऐसा मत बोलो “

अब बोलने दे शिवा नही तो मुक्त नहीं हो पाऊंगा, 

तू मेरा संस्कारी बेटा है, भगवान जैसी संतान हर माँ बाप को दे “

तूने हमेशा, मेरा सीना गर्व से चौड़ा किया! 

तू मेरे हिस्से का नहीं था ” फिर भी मेरे हिस्से मे आ गया! 

पापा जी बिना रूके बोले जा रहे थे! 

सुन बताता हूँ! 

बात तब की है जब हम एक छोटे से शहर  , अमरोही मे रहते थे! 

छोटा कितुं सुखी परिवार  माँ पिता जी हम दो भाई एक बहन, राधा,  सुन्दर सुघड़, माँ के सारे कार्य मे राधा हाथ बटांती’

बडा मै था तो मेरे रिश्ते की बात आने लगी, मेरा विवाह रक्षा के साथ हो गया, ननद भाभी मे स्नेह देख माँ के चेहरे पर मुस्कान आ जाती की राधा को रक्षा संभाल लेगी “

रक्षा के मायके से रक्षा का चचेरा भाई  रवि आया हुआ था! 

वो राधा के प्रति आकर्षित था! 

सबको उसका स्वभाव पंसद था! समय से अच्छा महूर्त देखकर राधा का  विवाह उसके साथ कर दिया गया! 

कुछ ही दिनों  में खुशखबरी मिल गयी! की रवि की आर्मी मे  नौकरी लग गयी! 

रवि चला तो गया, पर राधा यही हमारे पास रह गयी! 

कुछ समय गुजरा तो एक और खुशखबरी राह देख रही थी, राधा माँ बनने वाली थी! 

रवि के पास संदेश पहुंचा दिया गया था! 

राधा का नवा महिना चल रहा था! एक दिन रवि अचानक बिना बताये आ गया! 

आते ही राधा को ले जाने की जिद करने लगा! 

रक्षा ने समझाने की कोशिश की तो नही माना “

अगले दिन ही राधा रवि के साथ चली गयी ” उसकी हालत देखते हुए माँ ने, छोटे भाई और रक्षा को उनके साथ भेज दिया ! 


कुछ दिन बीता होगा की रक्षा का खत आया! 

खुशखबरी थी की राधा के जुडवा बेटे हुए ”  फिर क्या मिठाईयाँ बंटने लगी “फिर से सबके चेहरे पर खुशियाँ आ गयी! 

महिना भर भी न गुजरा होगा” 

की रक्षा और राधा के आने का फरमान आ गया! 

बच्चों से मिलना, राधा और रक्षा से मिलना, जैसे समय ही नही कट रहा था! 

अगले दिन स्टेशन पर लेने जाना था! खुशी के मारे नींद ही नही आ रही थी! 

हल्की सी झपकी लगी थी की बडे गेट को जोर जोर से ठोकने की आवाज आने लगी! 

जैसे कोई भारी चीज से ठोक रहा हो”

मै गेट की ओर भागा, तेज आवाज सुन माँ और बाबू जी भी जाग गये थे! 

कौन है विवेक इतनी तेजी से दरवाजा पीट रहा है! 

विवेक ऐसे मत जा, पीछे से माँ की आवाज गूंजी, पास मे ही एक डंडा पडा था मैनें उठाया, और गेट की ओर बढ गया! 

कुंडी खोली आवाक, मुहं से आवाज न निकली, हाथ पैर जड हो गये!  सामने का नजारा देख, आंखे फटी रह गयी!! 

कृमश; आगे जारी 

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