फैसला – शिव कुमारी शुक्ला: Moral stories in hindi

अवनी और  आकाश दोनों ही साफ्टवेयर इंजीनियर थे। वे एक  कनाडा की  कम्पनी में पचहत्तर – पचहत्तर लाख बार्षिक वेतन पर कार्यरत थे। उनके पास सारे, भौतिक सुविधा के संसाधन थे। कनाडा में वह आरामदायक, ऐश्वर्य पूर्ण जीवन जी रहे थे। उन्हें वहाँ रहते पाँच साल होने  जा रहे थे । किन्तु उनके  दिल के किसी  कोने में एक विचार रूपी कीडा कुलबुलाता रहता, क्या हम सही कर रहे हैं। अपना देश अपनी जन्मस्थली छोड कर ,  विदेशियों के लिए इतनी मेहनत कर रहे है, क्या यह उचित है। इतनी मेहनत अगर हम स्वयं के लिए करें अपने देश के लिए करें तो **।

यदि हम किसी नये स्टार्टअप   पर  कार्य करें तो यह हमारे देश की उन्नति में सहायक होगा। यदि हम अप‌ना प्रोजेक्ट  शुरू करते हैं तो इससे हमें तो फायदा होगा ही, साथ ही हम कई बेरोजगारों को काम   दे सकते हैं। दिमाग कहता कहाँ पचड़े  में  पड़ेंगें यहां  अच्छी खासी ऐशो आराम  की जिन्दगी जी रहे हैं।  दिल कहता हमें अपने लिए अपने देश के लिए कुछ करना चाहिए। आखिर इस दिल और दिमाग की कसमकश में दिल की विजय हुई और वे अपनी नौकरी छोड़कर भारत आ गए। जैसी ही वे अपने घर  पहुँचे परिवार वाले उन्हें अचानक आया देख हैरान रह गए। मां  तो उन्हें गले लगा रो पड़ीं कारण पूरे तीन वर्षो  बाद वे अपने  बेटे बहू को देख रहीं थीं। उन्होने जैसे ही पिता के पैर छुए  आशीर्वाद  देते ही एक प्रश्न  दागा, अचानक आने का कारण क्या है बेटा।

 आकाश पापा हमने नौकरी छोड दी है****अभी वह पूरा बोल भी नहीं पाया था कि पापा को एक झटका का सा लगा। क्या कहा नौकरी छोड़ दी दोनों ने। ऐसी बढ़िया लाखों वेतन देने  वाली नौकरी छोड दी। इतना बड़ा फैसला लेने के पहले तुम दोनों ने हमसे पूछना भी उचित नहीं समझा अब  बैठ  कर भजन कीर्तन करने का  इरादा है क्या। 

आकाश पापा हम अपना ही कोई काम शुरु करेंगे ।

क्या काम ऐसे ही शुरू हो जाता है उसके लिए पैसे चाहिए होते हैं ,तुम क्या अडाणी, अंबानी  हो  जो बिजनेस शुरू कर दोगे।  असल में आकाश का परिवार निम्न मध्यवर्गीय था । उसके पापा ने  उसकी पढ़ाई के लिए  एवं बेटी की शादी के लिए कर्ज लिया था ।वह अब धीरे-धीरे अपने पैसों से एवं आकाश द्वारा भेजे गए पैसों से उन्होंने  चुकता किया था। अब धीरे-धीरे घर की रंगत बदल रही थी मरम्मत करा रंग रोगन कराया था। रहन सहन का स्तर मी ठीक होने लगा था।बेटे के नौकरी छोड देने से उन्हें अब ऐसा लग रहा था कि वे ही पुराने परेशानी भरे दिन वापस लौट आयेंगे। सो वे  बहुत ही निराश हो बेटे बहू  के  खिलाफ  थे।  लगी लगाई नौकरी छोडना उन्हें  उचित नहीं लग रहा था। 

 

तभी मां  बोली क्या तुमने बच्चों के आते ही यह बहस  छेड़ दी,थके हुए आयें हैं उन्हें आराम करने  दो उन्हें कुछ खाने पीने दो ये बातें बाद में भी कर लेना। चलो चाय नाश्ता तैयार है।

चाय नाश्ता, करते करते मां  ने उनसे हालचाल पूछा। फिर नौकरी छोडने का कारण जानना चाहा। 

आकाश बोला माँ ऐसा कुछ नहीं होगा हमने बहुत सोच समझ कर निर्णय लिया है और हमारे पास थोड़ा पैसा भी है जिससे हम अपना काम शुरू कर सकें। 

माँ क्या काम करने का सोचा है। 

आकाश मां हमने आर्गेनिक  खेती करने का सोचा  है। हम फल और सब्जियां उगायेंगे। 

माँ उसकी बात सुन सन्न रह गई। ये क्या कह रहे हो बेटा तुम खेती करोगे। तुम्हे पता है न कि कैसे हमने तुम्हें पढा लिखा कर काबिल बनाया था ताकि तुम अच्छी नौकरी पा सको, और तुम यह किसानी करना चाहते हो यह तो तुम बिना पढे लिखे भी कर सकते थे फिर पढ़ाई में इतना  खर्च कराने की क्या जरूरत थी। 

माँ हम नये  वैज्ञानिक तरीके से यह कार्य करेंगे जिसमें हमें अच्छा फायदा होगा।

 पर बेटा लोग क्या कहेंगे इंजीनीयर बेटा खेती कर रहा है। सब हंसेंगे तुम पर। बहू तुमने भी इसे नहीं समझाया उल्टे खुद भी नौकरी छोड दी।

 अवनी – नहीं मां जी ये हम दोनों की ही योजना थी इस काम को करने की। हमने  

बहुत सर्वे किया है रिसर्च किया तब जाकर इस काम को करने का निर्णय लिया है। हम पढ़े-लिखे हैं  बेहतर तरीकों से काम करेंगे। विश्वास रखिये मां सब अच्छा होगा। केवल आप और पापाजी हमें मन से आशीर्वाद दीजिए।

 जिसे भी पता चलता वही कहता शम्भू का बेटा तो निरा मूर्ख है  इतना पढ लिख कर खेती करेगा। कोई कहता इतनी अच्छी नौकरी छोड कर हल चलायेगा बबुआ और देखो उसकी पत्नी निराई- गुडाई करेगी। जितने मुँह उतनी बातें।

 

आकाश ने दो तीन दिन बाद ही जमीन देखना शुरू कर दिया किसानों से बात करी । सब्ज़ियों ,फलों के बारे में जानकारी ली। सब उससे यही कहते काहे इस सब जंजाल में फंस रहे हो बबुआ आसान नहीं है यह काम शहर  में नौकरी करो और मस्त रहो।

 

आकाश ने पापा से पूछ कर अपने ही खेत इस काम में लेने चाहे। पहले तो वे हिचकै किन्तु समझाने पर मान  गए ।बाद में उसने  आसपास के और खेत उचित कीमत देकर खरीद लिए। फिर किसानों का एक ग्रुप बनाकर सब्जी उगाने का काम शुरू किया। ना कोई  केमिकल वाली खाद न पेस्टीसाइड का उपयोग किया। सब्ज़ियों  के लगाने के बाद अब उसने  फलों के पेड भी लगवाये। तैयार सब्जियां  बाजार में बिकवाने भेजीं। बाजार में आर्गेनिक सब्जियों की मांग थी।  कुछ पेड़ों में दो साल बाद फल भी आने लगे। धीरे-धीरे उनका व्यवसाय बढता गया उसने और भी जमीन ली उनपर भी फलों के पेड लगवाए। कई लोगों को गाँव में काम मिल गया। लाखों का कारोबार चल निकला । उनके फलों का निर्यात बाहर होने लगा कारण गुणवत्ता में वे अव्वल नंबर पर थे सो मांग अधिक थी। 

सात आठ साल में उनका टर्न ओवर  करोड़ों में पहुंच गया। हजारों लोग काम में लगे थे। अब रोजगार गाँव में ही मिलने से लोग खुश थे। जो हंसते थे खिलाफ थे वे ही लोग  अब तारीफ करते नहीं अघाते  थे। पिता का सीना गर्व से चौड़ा हो गया था। जहां  बैठते बेटे-बहू की सोच की तारीफों के पुल बांध देते। बड़े ही खुश होकर बताते कैसे मैं  शुरू में बेटे-बहू के  खिलाफ था किन्तु  नई जनरेशन की सोच काम करने का तरीका अलग ही है। काम के प्रति उनका नजरिया भले ही हमसे मेल नहीं खाता, किन्तु वे सही है।

 अवनी भी कंधे से कंधा मिलाकर काम में लगी  थी।

 

आज वे अपने मन का काम अपने लिए,अपने देश में कर के आत्म सन्तुष्टि का अनुभव कर रहे थे, और जो लोग उनके  खिलाफ थे वे आज उनके मुरीद हो गए थे।

शिव कुमारी शुक्ला

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित

1 thought on “फैसला – शिव कुमारी शुक्ला: Moral stories in hindi”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!