हमारी एक पड़ोसन थी,, बहुत अच्छी कढ़ाई करती थी,, डिज़ाइनें भी जाने कहाँ से लाती थी,, बड़ी सुंदर सुंदर,,
यह उन दिनों की बात है जब मोबाइल नहीं हुआ करते थे,, आजकल तो जो चाहो, अलादीन के जिन की तरह पल में हाजिर हो जाता है,, उसमें भी इतनी वैरायटी होती है कि घर बैठे आप अच्छे से अच्छा डिज़ाइन पसंद करके बना सकते हैं,,
हाँ तो उस समय हम 9th में थे,, किसी काम से गये पड़ोस में,, उनका मेटी का टेबल क्लॉथ देखकर तो आँखें चिपक गई उससे,, इतना खूबसूरत कि बता नहीं सकते,, कॉर्नर बेल बनी हुई थी, रंग बिरंगे फूलों वाली,,
पर उनकी बेटी गज़ब की घमंडी थी,, वो अपने डिज़ाइन किसी को नहीं देती थी और हमारा तो यह हाल कि सपने में भी वही नज़र आये,, बड़ा जुनून था उन दिनों कढ़ाई का,,
मम्मी को बताया तो उन्होंने भी जाकर देखा,, बड़ा पसंद आया पर न सुनना उनको भी अच्छा नहीं लगता,, करें तो क्या करें,,पगलाये जा रहे थे उसे पाने के लिए,, सोचा कोई जुगाड़ लगाते हैं, शायद सफल हो जाये,,
हमने एक कॉपी खरीदी,, ग्राफ बनाने वाली,, उसके चार पेज़ फाड़कर चिपका लिये,, यानि बेल पूरी छप जाये, इतनी व्यवस्था कर ली,, फिर गये उनके यहाँ,,
आंटी ये टेबल क्लॉथ बड़ा सुंदर लग रहा है आपका,, मैंने मम्मी को बताया था तो उन्होंने कहा,, मुझे भी देखना है,, आप दे दो,,
वो बोलीं,, ठीक है पर तुरंत ही वापस कर जाना,,
बस आंटी गई और आई,, घर जाकर फटाफट उस डिज़ाइन की आउटलाइंस ट्रेस की,, फूलों के कलर लिखे और दे आई,, आंटी खुश कि जल्दी ही ले आई,,
क्यों कि डिज़ाइन बनाने में कम से कम पूरा दिन लग जाता,, अब वो क्या जाने कि हम कितने छुपे रुस्तम निकले
दूसरे दिन सुबह मेटी मंगा कर अगली सुबह तक तो बना डाला,, सारी रात सोये नहीं,, ऐसी थी हमारी दीवानगी और समर्पण कढ़ाई के लिए
कुछ दिनों बाद आंटी आईं हमारे घर तो टेबल क्लॉथ देखकर चौँक गई,, अरे ये डिज़ाइन तुम्हारे पास कहाँ से आ गई,,वो सोच भी नहीं सकती थी कि कोई इतनी जल्दी कॉपी कर सकता है,,
हमने भी कह दिया मेरठ से,, उनका भ्रम बने रहने देना चाहते थे हम,, मन तो कर रहा था कि कह दें,, आपका ही है आंटी,, पर कह भी देते तो यकीन नहीं होता उन्हें,, इसलिए सोचा राज़ को राज़ ही रहने दें,, इसी में भलाई है
कमलेश राणा
ग्वालियर