भला कोई इतना नीचे कैसे गिर सकता है, सोच रहा था राजन । दिशा उसे सताने के लिए किस हद तक जा सकती है, ये आज उसने अपनी आंखों से देख लिया । दिशा और राजन के विवाह को अभी दो बर्ष ही हुए थे । पर इन दो बर्षो में ही उसे क्या कुछ नहीं देखना और सहना पड़ गया था, ये कोई राजन से पूछता।
दिशा ने उसकी हंसती – मुस्कुराती जिंदगी का जैसे रुख ही बदल दिया था । दिशा एक बहुत ही उग्र स्वभाव की व आत्मकेंद्रित युवती थी । वह अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझती थी, घमंड और स्वार्थ उसमें कूट कूट कर भरा था। विवाह होते ही सबसे पहले उसने राजन को अपने माता – पिता व परिवार से अलग कर दिया। हर दिन के होने वाले झगड़ों से तंग आकर राजन के मां – बाप ने ही उन्हें अलग रहने को कह दिया। इतने पर भी दिशा अब राजन को भी परेशान करने लगी । पता नहीं उसके दिमाग में क्या फितूर था कि वह राजन को एक कठपुतली बनाकर नचाना चाहती थी ।
दिशा की इच्छा के विरूद्ध यदि राजन एक कदम भी उठा लेता तो वो रौद्र रूप धारण कर लेती। उसे लगता था कि राजन बस हर समय उसी के आगे – पीछे घूमे….ना किसी और से बात करें ना किसी और की तरफ देखे भी । दिशा शक्की स्वभाव की भी थी।
यद्यपि वह पढ़ी – लिखी आज के समय की लड़की थी पर पता नहीं वह किस कुंठा से ग्रस्त थी कि कुछ करना भी नहीं चाहती थी, कोई जौब वगैरह। उसे बस अपनी सोच के बनाए दायरे में रहना ही पसंद था । अपने पति को अपनी मुट्ठी में बंद करके रखना चाहिए…..ऐसा उसका मानना था ।
आज भी कुछ ऐसा ही हुआ, राजन अपने आफिस की सहकर्मी रुचि से फोन पर कुछ आवश्यक बात कर रहा था और दिशा ने सुन लिया और झगड़ने लगी । जब बात ज्यादा ही बढ़ गई तो राजन को भी क्रोध आ गया । बस फिर क्या था, दिशा ने खुद को ही चोट पहुंचाई और आंखों पर व होंठों पर खुद को ही नाखूनों से खरोंच कर घर से बाहर निकल कर बेतहाशा चिल्लाने लगी कि ,” देखो, देखो मेरे पति ने मुझ पर हाथ उठाया ।”
आस – पास के घरों से लोग बाहर निकल आये और राजन को भला बुरा कहने लगे । वैसे भी हमारे समाज में पुरुषों को ही कुसूरवार माना जाता है, पर हर बार पुरुष अत्याचारी और स्त्री बेचारी नहीं होती ।
राजन की बात किसी ने नहीं सुनी, बल्कि उन्हीं पड़ोसियों में से किसी ने पुलिस को भी फ़ोन कर दिया, और दिशा ने भी रो – रोकर राजन पर ही घरेलू हिंसा का केस दर्ज कर दिया ।
अब राजन ये ही सोचता रहता है कि दिशा इस हद तक नीचे कैसे गिर गई कि उसने पति पत्नी के रिश्ते के कोई मर्यादा नहीं रखी । वो जिसने अपना घरबार अपने माता पिता सबको छोड़ दिया केवल इसलिए कि अपनी पत्नी का हर हाल में साथ निभाये, उसी ने केवल अपनी ज़िद और शक के चलते उसे जेल तक पहुंचा दिया ।
स्त्रियों के ऊपर जब जुल्म होता है तो उनका साथ देने के लिए कानून और समाज दोनों तैयार हो जाते हैं और सबकी सहानुभूति उनके साथ होती है पर कभी पुरुष भी पीड़ित हो सकते हैं ऐसा कोई मानने तो क्या सोचने के लिए भी तैयार नहीं होता।
ऐसा क्यों ?????
नूतन सक्सेना
बहुत ही संवेदनशील कहानी बहुत बधाई