तेज मुसलाधार बारिश हो रही थी।सुमि का बावरा मन आज फिर मचल रहा था,उस नदी को तैरकर पार करने के लिए मगर एक ऐसी बेड़ी थी,जो उसे जकड़े हुए थी।मन में एक बवंडर सा उठ रहा था।वह समझ नहीं पा रही थी कि उसके साथ क्या हो रहा है।
तभी
‘लोट जाओ सुमि, आगे एक कदम भी न बढ़ाना।’तेज बारिश में नदी की ओर बढ़ते सुमि के कदम को एक झटका लगा।
यह आवाज तो बिल्कुल विप्लव जैसी थी, मगर विप्लव अब कहां है….याद आते ही सुमी की आँखे भर आई। शायद मेरे मन का भ्रम हो, कोई आवाज नहीं थी।सुमी ने एक कदम और नदी की और बढ़ाया।तभी फिर आवाज़ सुनाई दी – ‘तुम उतनी ही जिद्दी हो सुमी, मैं जानता हूँ, तुम नदी के उस पार तैर कर जाना चाहती हो, नदी बहुत गहरी है, मैं आज तक उसके तल तक नहीं पहुंचा हूँ। बहाव बहुत तेज है, डरता हूँ, कहीं तुम्हें कोई लहर बहाकर न ले जाए जिद न करो लौट जाओ, तुम मेरी खुशी हो, याद करो तुमने वादा किया था, कि तुम अकेली कभी भी बारिश में नदी के किनारे नहीं आओगी,लौट जाओ ….मेरी दोस्त, लौट जाओ।’ सुमि ने स्पष्ट सुना ।वह बुदबुदाई यह आवाज विप्लव की ही थी, पर कैसे…..? इसके बाद सुमी ने एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाया,कुछ देर वह उछलती, शोर मचाती नदी को देखती रही,उसे नदी का,बादल की गड़गड़ाहट का कोई शोर सुनाई नहीं दे रहा था,उसके अंदर का शोर इस शोर से कहीं ज्यादा था।
उसे अपनी नादानी पर गुस्सा आ रहा था, उस समय वह कॉलेज में पढ़ती थी ।बारिश के दिन थे,एक हठी और जिद्दी लड़की, नया-नया तैरना सीखा था, और जिद पकड़ ली थी कि वह बारीश में उफनती इस नदी को तैर कर पार करेगी। विप्लव हमेशा समझाता,नदी बहुत गहरी है, बहाव बहुत तेज होता है,कब कोई लहर किसे कहाँ ले जाए,कुछ नहीं कह सकते। विप्लव उसके साथ पढ़ता था, और दोनों की अच्छी दोस्ती थी।
उस दिन वह बहुत खुश थी,उसका रिश्ता अर्जुन के साथ तय हो गया था,जिसे वह बहुत चाहती थी।यह खबर उसने सबसे पहले, विप्लव को सुनाई।विप्लव भी खुश था कि उसकी दोस्त को मनचाहा साथी मिल गया।उस दिन दोनों ने एक साथ होटल में भोजन किया, बरसात का मौसम था और तेज बारिश हो रही थी, दोनों के घर पास-पास थे,और दोनों के परिवार का आपस में अच्छा सामंजस्य था।
दोनों एक ही छतरी में पैदल घर जा रहै थे, रास्ते में नदी उफान पर थी, और हवा सनन-सनन बह रही थी,छतरी उड़ गई ,और सुमी के ऊपर तो जैसे पागल पन सवार था, वह नदी में कूद गई,तैर कर उस पार जाना चाहती थी। विप्लव की समझ में कुछ नहीं आया,एक तेज लहर में सुमी बहने लगी,विप्लव उसे बचाने के लिए नदी में कूद गया, बड़ी मुश्किल से सुमी को किनारे तक लाया और…. और स्वयं एक लहर की चपेट में आ गया। बहुत कोशिश की मगर ….वह बच नहीं पाया,पता नहीं कौन सी लहर उसे निगल गई। बहुत ढूंढा मगर उसका कोई अता-पता नहीं मिला।बस वह यही कहता हुआ लहरों में खो गया कि सुमी वादा करो अब कभी बरसात में यहाँ नहीं आओगी और नदी पार करने की जिद नहीं करोगी।
‘मैंने अपना वादा तौड़ दिया,नहीं रख पाई मैं विप्लव के बलिदान का मान।’ सुमी लगभग चीख पड़ी।
‘क्या हुआ सुमी ? क्या कोई बुरा सपना देखा? अर्जुन की आवाज से सुमी की तन्द्रा टूटी, ‘तो क्या मैं नदी किनारे नहीं गई थी? तो फिर वो आवाज़….?’
‘कैसी आवाज ? यहाँ कोई नहीं है, तुम मेरे साथ हो,शायद कुछ सोचते हुए सो गई, और वहीं ध्यान में रह गया। तुम विप्लव को दिया वादा तोड़ ही नहीं सकती,इतना मुझे विश्वास है।शांत हो जाओ। मुझे जरूर अपना वादा निभाना है जो मैंने विप्लव के मम्मी-पापा से किया है,कि मैं हमेशा एक बेटे की तरह उनका ध्यान रखूंगा,विप्लव के जाने के बाद वे दोनों बिल्कुल अकेले रह गए हैं।हो सकता है उन्हें हमारी आवश्यकता हो,कल हम दोनों विप्लव के घर चलेंगे।
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित