रामनगर का गांव हरिहरपुर मास्टर जी लकड़ी की कुर्सी पर बैठे हुए बच्चों को पढ़ा रहे थे सभी बच्चे जमीन पर टाट की पट्टी बिछा कर बैठे हुए थे आम के पेड़ के नीचे उसकी छाया में गुरु जी की क्लास लगती थी। सभी बच्चे मास्टर जी की बातों को ध्यान से सुन रहे थे। उन्हीं बच्चों के बीच में विद्या भी बैठी हुई थी उसे पढ़ने की बहुत लगन थी अभी वह मास्टर जी की बातों को ध्यान से सुन ही रही थी की स्कूल की घंटी बज गई और छुट्टी हो गई सभी बच्चे घर की ओर चल पड़े। विद्या भी घर की ओर चल पड़ी घर में आते ही उसने देखा की कोई मेहमान आया हुआ है विद्या ने झट से हाथ जोड़कर नमस्ते किया और सीधे अंदर चली आई फिर शरबत बनाकर लाई और भूजा रखकर दे आई। विद्या चार भाइयों में इकलौती बहन थी सभी की दुलारी थी। खासकर वैद्य जी जो उसके पिता थे वह उसे बहुत प्यार करते थे।
शरबत पीने के कुछ देर बाद वह बोले……वैद्य जी हमें आपकी बेटी पसंद है और मैं इलाहाबाद में आईटीआई कॉलेज में मास्टर हूं, मेरा बेटा अभी आठवीं कक्षा में पढ़ रहा है मेरे परिवार में मेरी दो बेटियां जिनका विवाह हो चुका है मैं और मेरी धर्मपत्नी और मेरा बेटा है यही है हमारा परिचय मैं चाहता हूं कि विवाह अगले वर्ष तक हो जाए पर गौना दो साल बाद ही करूंगा तभी बहू को ले जाऊंगा क्या मैं आपकी बेटी को अपने घर की बहू बना सकता हूं यदि आप की सहमति हो तो यह सुनते ही वैद्य जी ने हाथ जोड़कर कहा कि……
आपको कौन नहीं जानता यह मेरा सौभाग्य होगा कि मेरी बेटी आपके घर की बहू बनेगी यह कहते उन्होंने रजामंदी दे दी। अगले वर्ष उनका विवाह हो गया। दो साल बाद गौना होते ही मास्टर जी विद्या को लखनऊ ले आए। अब कुछ वर्ष पश्चात ओम इंजीनियर हो गये थे। मास्टर जी को पढ़ाने का बहुत शौक था और यह उनकी मेहनत का नतीजा ही था कि उनका बेटा इंजीनियर हो गया था
उनके गांव में जब यह खबर फैली तो उनका बहुत मान सम्मान हुआ सभी लोग उनको मास्टर जी ही कहते थे। समाज में उनको बहुत मान सम्मान दिया जाता। ओम की पोस्टिंग ओबरा में हुई थी तो मास्टर जी ने अपनी बहू विद्या को अपने बेटे के साथ ही भेज दिया परंतु दो वर्ष पश्चात उनकी पत्नी की तबीयत बहुत ज्यादा खराब रहने लगी तो उनका बेटा विद्या को लखनऊ छोड़ गया माँ की सेवा करने के लिए। विद्या अब लखनऊ में ही रहने लगी।विद्या ने धीरे-धीरे घर की सभी जिम्मेदारियों को अपने कांधे पर ले लिया था। पहले जहां पर वह अपने घर की लाडली थी और ज्यादा उम्र भी नहीं थी इसलिए उसे बहुत कुछ नहीं आता था परंतु धीरे-धीरे सीखते हुए वह हर काम को करने की कोशिश करती पर कुछ समय पश्चात विद्या की सासू मां का देहांत हो गया।
विद्या को पढ़ने का भी शौक था तो वह कभी-कभी जब घर के कामों से फुरसत मिलती तो पेपर लेकर पढ़ने बैठ जाती यह देख कर मास्टर जी ने बहू को पढ़ाने का निश्चय किया मास्टर जी ने बहू से कहा कि अगर तुम पढ़ना चाहो तो आगे अपनी पढ़ाई फिर से शुरू कर सकती हो और इसमें मैं तुम्हारी मदद करूंगा यह सुनकर विद्या बहुत खुश हुई। अब विद्या दो बेटियों की मां भी बन गई पर जब भी उसको समय मिलता वह अक्सर अपने ससुर जी से पढ़ने के लिए बैठ जाती है वह अक्सर घूँघट निकाल कर पढ़ाई करती तो एक दिन मास्टर जी ने समझाया की सबसे पहले तुम्हें घूँघट कम करना होगा अगर तुम्हे बड़ों का मान-सम्मान करना ही है तो सिर्फ सर पर पल्ला रखने से भी बड़ों का मान किया जा सकता है।
उस समय घूँघट ना करना एक बहुत बड़ी बात थी परिवार से लेकर बाहर तक खूब विरोध हुआ पर मास्टर जी ने बहु को समझा दिया था कि अगर तुम्हें अपनी पढ़ाई जारी रखनी है तो लोगों की बातों पर ध्यान मत दो तुम सिर्फ अपने लक्ष्य की तरफ ध्यान दो कुछ समय बाद उनके बेटे का ट्रांसफर भी लखनऊ हो गया। मास्टर जी ने अब मोहल्ले के बच्चों को भी पढ़ाना शुरू कर दिया था बस शर्त यह थी कि जिसको भी मुझसे कुछ पूछना है या पढ़ना है तो वह बैठने के लिए टाट पट्टी खुद लाएगा तो शाम होते ही उनके घर के सामने पढ़ने वालों का जमावड़ा लग जाता।
विद्या ने अपनी पढ़ाई जारी रखी। विद्या ने आठवीं कक्षा की परीक्षा दी और जब परिणाम निकला तो वह प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुई थी यह देख कर मास्टर जी बहुत खुश हुए उन्होंने बहू से कहा बहू तुमने प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होकर मुझे मेरी गुरु दक्षिणा दे दी। अब उन्होंने अपनी बहू के लिए मैगजीन भी मंगाना शुरू कर दिया। उस समय सरिता मैगजीन आती थी उसमें सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, व्यंजन और कहानियां काफी कुछ होता था। विद्या उन्हें पड़ती और उनसे कुछ ना कुछ देखती रहती, सीखने की लगन इतनी ज्यादा थी कि धीरे-धीरे जब भी घर के कामों से फुरसत मिलती कभी कढ़ाई करती तो कभी बिनाई कभी कोई कपड़ा लाकर अपनी बेटियों के लिए सुंदर-सुंदर फ्रॉक सिलने की कोशिश करती। एक स्त्री की यही तो खासियत होती है कि वह अगर चाह जाए तो क्या नही कर सकती बस कुछ करने का जज्बा और लगन होनी चाहिये। विद्या जब भी अपने ससुर जी के बारे में सोचती तो आदर से उसका सर झुक जाता। वह बहुत खुश होती कि उसे पिता जैसे ससुर जी मिले……आज उन्हीं की वजह से वह ऐसा कर पाई और जब भी वह बाबूजी की तारीफ करती तो उसके ससुर जी कहते……यह तुम्हारी सीखने की लगन का ही नतीजा है मैंने तो सिर्फ तुम्हें रास्ता दिखाया पर तुम आगे बढ़ी हो तो सिर्फ अपनी लगन और मेहनत के बलबूते।
कुछ समय पश्चात मास्टर जी का देहांत हो गया। विद्या बहुत ही दुःखी थी कि उसके सर पर से पिता जैसे ससुर जी उसे छोड़कर चले गए थे। पर आगे जो हुआ वह तो और हृदय विदारक घटना थी।
होली का आठवां दिन था विद्या गुजिया बना रही थी और उसके पति ओम नया स्कूटर लेने कानपुर जा रहे थे सुबह से ही विद्या को किसी अनहोनी की आशंका हो रही थी इसलिए वह बार-बार मना कर रही थी अपने पति को जाने के लिए पर वह नही माने और नई स्कूटर लाते हुए रास्ते में ही सड़क दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई। विद्या की आंखों के आगे अंधेरा छा गया उनकी दुनिया ही वीरान हो गई पर बच्चों के लिए जीना था अब उन्हे माँ के साथ साथ अपने बच्चों के लिए पिता बनकर भी फर्ज निभाना था, उन्होंने अपने आंसू पोंछे और अपने पति की जगह नौकरी पाने की कोशिश करने लगी।
परंतु आठवीं पास होने के कारण नौकरी मिलने में दिक्कत हो रही थी तो विद्या ने बच्चों को पालने के साथ साथ आगे पढ़ने का भी निश्चय किया और हाई स्कूल की परीक्षा दी और उत्तीर्ण होते ही कुछ समय बाद इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की आखिरकार ऑफिस में उन्हें लिखा-पढ़ी का काम मिल ही गया गांव की रहने वाली ने गांव से लेकर शहर तक काफी लंबा सफर तय किया और अपनी लगन और मेहनत के बलबूते परिस्थितियों से संघर्ष कर अथक परिश्रम करते हुए असम्भव को संभव कर दिया।
#संघर्ष
किरन विश्वकर्मा
लखनऊ