एक थी मंन्नो- संगीता त्रिपाठी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  :अंधेरा घिर आया,अम्मा का अंतिम संस्कार कर सब लौट आये, अब तक सन्नाटे में डूबा “प्रेम -निवास “अचानक मुखरित हो चुका,

“मंन्नो दिखाई नहीं दे रही “मंन्नो के पति अजय ने बड़ी भाभी से पूछा।
अब तक सब अपने में गुम थे, बड़ी भाभी फोन पर मैके में रीति -रिवाज़ बताने में लगी थी, छोटी भाभी सबके जाने के बाद घर आंगन धो कर, जरा कमर सीधी करने लेटी तो कब आँखों झपक गई पता ना चला..।सबकी आवाज सुन जल्दी हाथ -मुँह धोने भागी।

बड़ी दीदी और मंझली दीदी, सिर जोड़े कानाफूसी में लगी थी, किसको क्या मिलेगा, पता नहीं भाभियाँ अम्मा के गहने बेटियों को देंगी भी..?
मंन्नो यानि मुनीता की तरफ किसी का ध्यान ही नहीं गया।सब मंन्नो को ढूढ़ने लग गये, अम्मा के कमरे की लाइट जलाई तो चारपाई के कोने में नीचे बैठी मंन्नो, सूनी आँखों से अपलक शून्य में देखे जा रही थी।बड़े भैया से रहा नहीं गया, आखिर सबसे छोटी अम्मा की ही नहीं सबकी लाड़ली थी मंन्नो.।

“मन्नी, यहाँ बैठ कर क्या कर रही, अम्मा तो चली गई, पर तेरे लिये हम लोग है “बड़े भैय्या ने भरे गले से कहा,आखिर उनकी बेटी परिधि जैसी ही तो है…।

बड़ी भाभी ने तिरछी आँखों से पति को देखते हुये आगाह कर दिया, ज्यादा भावुक होने की जरूरत नहीं है। कुछ कहने के लिये खुला बड़े भैया का मुख बंद हो गया, सर झुका वहां से निकल गये।

उनके निकलते ही छोटे भाई -भाभी भी निकल गई, पर तुरंत दोनों भाभियाँ अम्मा के कमरे में वापस आ गई, कल तक तो इस कमरे में झांकती भी नहीं थी, आज ननदें कुछ उठा ना ले जाये, इस संशय में आ गई।
“चलो दीदी, बाहर चलते है, कमरे में ताला बंद कर देते, सब काम निपट जाने के बाद रुपये और गहनों का बंटवारा कर लेगे”बड़ी भाभी की बात सुन, मंन्नो वहाँ से उठ कर बरामदे में पड़ी अम्मा की कुर्सी पर आ बैठी,।

कैसी विडंबना है, अम्मा के जाते ही उनका घर उनकी ही बेटियों के लिये पराया हो गया, उनके कमरे में बैठने का भी अधिकार अब बेटियों से छिन बहुओं के पास आ गया।

रात हो गई, सब खाने -पीने के बाद सोने की तैयारी करने लगे, लेकिन मंन्नो अम्मा की कुर्सी पर वैसे ही भावशून्य बैठी थी,मंन्नो की सूनी आँखों में आँसू का एक कतरा भी नहीं था, पति अजय पत्नी के मनोभाव समझ रहे थे, पास आये बोले,”मंन्नो, जो इस दुनिया में आया है, उसे एक दिन जाना है, यही जीवन का सच है, इसे स्वीकार करना ही पड़ेगा “
पति की बात सुन, मंन्नो ने एक दृष्टि अजय पर डाली, उस दृष्टि को देख, अजय ने सर झुका लिया, आखिर मंन्नो के अपराधी वो भी है।

अम्मा का फोन पा,जब मंन्नो अम्मा के पास जाने के लिये अनुमति मांगी तब अजय ने मना कर दिया था।
तब मंन्नो ने भरी आँखों से कहा भी, “एक बार अम्मा से मिल आने दो, अम्मा मुझसे मिलने को बेचैन है,मै दूसरे दिन ही लौट आऊंगी .”पर अजय, मंन्नो के आँसू अनदेखा कर ऑफिस के लिये निकल गये।

अजय को दोपहर में लौटा देख मंन्नो घबरा गई,”क्या हुआ, तबियत तो ठीक है “

अजय का मन पश्चाताप से भर उठा, उसने मायके जाने ना दिया पर वो उसके लिये परेशान है।,
“मंन्नो, अम्मा से मिलने चलना है, जल्दी से तैयारी कर लो, कुछ दिन रह कर आयेंगे,”अजय मंन्नो को सच बताने का साहस नहीं कर पाये।
ऑफिस में मंन्नो के बड़े भाई का फोन आया,”अम्मा नहीं रही, दोपहर तक पहुँच जाइये मंन्नो को लेकर “
अजय का मन उचट गया, एक साल पहले ही मंन्नो उनके पत्नी बन कर आई, कभी शिकायत का मौका उसने नहीं दिया, पर जाने क्यों मंन्नो का कम पढ़ा -लिखा होना, मित्र की पत्नियों की तरह व्यवहारिक ना होना, उनको रास नहीं आया, उसे तो अपनी कलीग सुरेखा पसंद थी,पर माता -पिता की जिद्द के आगे अजय की एक ना चली।उसकी भड़ास वो अक्सर मंन्नो पर निकालता..।

मंन्नो ने अपने निश्छल व्यवहार से सबका मन जीत लिया, जीता तो अजय का भी, पर जाने क्यों अजय कभी -कभी उसके प्रति निष्ठुर हो जाते,।

मंन्नो खुशी -खुशी तैयारी कर अजय के साथ चार घंटे का सफर कर मायके पहुँच गई, खुशी से अम्मा कहते जैसे ही घर में घुसी, आंगन में भीड़ और सफेद कपड़े में लिपटी अम्मा को देख , मंन्नो बेहोश हो गई, पानी के छींटे डाल उसे होश में लाया गया, तबसे मंन्नो अपने में ही गुम है। अम्मा को विदा करते समय भी आँसू का एक कतरा भी उसकी आँखों में ना था।
दस दिन बीत गये अजय मंन्नो को अकेला छोड़ अपने घर जाने का साहस नहीं कर पाये, जान गये थे एक निश्छल विश्वास दरक गया, जिसके दोषी वही है।
पंद्रह दिन मंन्नो, हर उस जगह को जी, जहाँ अम्मा बैठती थी, अपनी साँसो में अम्मा की महक, उनका स्पर्श सब बटोर लेना चाहती थी।

सारे काम -काज खत्म होने बड़ी भाभी ने आज अम्मा का कमरा खोला, सारे भाई -बहन अम्मा के कमरे में इकठ्ठा थे, मंन्नो भी थी, अम्मा का संदूक खोला गया,सबसे पहले छोटे होने के नाते मंन्नो से पूछा गया,क्या लेगी मंन्नो ने अम्मा की वो मैली सी डायरी और उनकी रामायण ले ली..।

मंन्नो के हटते ही सोने के मोटे कंगना, बाजुबंद, चंद्रहार, चूड़ियाँ सबका बंटवारा हो गया। शाम तक सब अपने घर लौट आये, मंन्नो भीआँखों में अम्मा का अक्स बसाये ससुराल वापस आ गई,आते समय बड़े भैया बोले, “मंन्नो अम्मा चली गई है, लेकिन अभी मै हूँ, तुम्हारा मायका जिन्दा रहेगा, जब मन करें निःसंकोच आना..”कहते बड़े भैया ने मंन्नो को गले से लगा लिया, जाने उस स्पर्श में क्या था अचानक मंन्नो बिलख -बिलख कर रो पड़ी,रो तो बड़े भैया भी पड़े…,पंद्रह दिन की बर्फ की सिल्ली भाई का स्पर्श पाते ही टूट गया। निश्छल प्रेम देख सबकी आँखों में आँसू आ गये…।

घर पहुँच एकांत पाते ही अजय ने मंन्नो के आगे हाथ जोड़ दिया, मंन्नो मै तुम्हारा बहुत बड़ा गुनहगार हूँ, जाने क्यों मै निष्ठुर बन अपना आक्रोश तुम पर उतारता था, उसदिन मै तुम्हे जाने देता तो शायद तुम अम्मा से आखिरी बार मिल लेती…, “

मंन्नो ने कुछ नहीं कहा, अजय मायूस हो गये, जानते थे पत्नी का प्यार और विश्वास पाना आसान नहीं, पर अपने व्यवहार में परिवर्तन ला कर ही दाम्पत्य जीवन ठीक कर पायेंगे… पति से लाख शिकायत होने के बावजूद मंन्नो ने सास -ससुर की सेवा में कोई कोताही नहीं बरती…। अजय को विश्वास था एक दिन मंन्नो का दिल जीत लेंगे….।

—संगीता त्रिपाठी
#आँसू

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!