एक स्त्री माँ बनने के बाद ही सम्पूर्ण होती हैं – संगीता त्रिपाठी 

लो बहन लड्डू खाओ, आज मेरे पुन्नू का जन्मदिन है। विमला जी  काँपते हाथों से वृद्धाआश्रम में लड्डू बाँट रही थी। उसके लाडले पुन्नू यानि पुनीत का जन्मदिन है। सब ने उसे बधाई दिया। किसीने पूछा भी -तुम्हारे बेटे ने ही तुमको यहाँ भेजा। मिलने भी नहीं आता कभी,फिर भी तुम उसका जन्मदिन याद रखी हो…, लड्डू बाँट रही हो..?

कैसे भूल सकती हैं वो बेटे का जन्मदिन…दस जुलाई का दिन, जब वो सुन्दर से गोल -मटोल पुन्नू की माँ कहलाई थीं।जब इसी तरह बादलों की आँखों -मिचौली और रिमझिम बरसात में वो अस्पताल गई थी।बीस घंटे का लेबरपेन सहने और दस घंटे की अनवरत बारिश थमने के बाद ही पुन्नू पैदा हुआ।उन दिनों आजकल की तरह ना दवाइयां थी ना सुविधा। पुन्नू के बाद और कोई और संतान ना हुई।नन्हे हाथों को चूम कर माथे लगा ली थी विमला जी । संपूर्णता का अहसास उनको गर्वित कर गया। सही कहा गया, एक स्त्री माँ बनने के बाद ही सम्पूर्ण होती हैं। पति सुमेर और सास की आँखों की प्रसन्नता, उनके कठोर चेहरे को सरल कर गया। पोते को देखते सास अघा नहीं रही थी। शादी के दस बरस बाद पुन्नू हुआ था। कोई स्त्री दस साल तक माँ ना बन पाये तो समाज और रिश्तेदार क्या हाल करते हैं, जगविदित है। विमला जी  ने भी बहुत ताने -उलाहने झेले थे। वंश बेल आगे बढ़ाने के लिये पति की दूसरी शादी की तैयारी चल रही थी। खून के आँसू रोती विमला जी  पर ईश्वर ने तब दया की। विमला जी  के गर्भवती होते ही घर में खुशियों की बाढ़ आ गई। कल तक जो पति विमला जी  को बाँझ मान दूसरी शादी के लिये तैयारी कर रहे थे अचानक विमला जी  पर प्यार लुटाने लगे।

पुन्नू के जन्म के बाद, विमला जी  भी अशुभ से सौभाग्यवती हो गई। समाज का ये दस्तूर है, उगते सूर्य को सब प्रणाम करते हैं। पुत्रवती होने के बाद विमला जी  का सम्मान घर में थोड़ा बढ़ गया। आखिर वंशबेल जो बढ़ा दी।

पुन्नू की परवरिश में विमला जी  और सुमेर ने कोई कमी ना छोड़ी। इकलौता होने के नाते उसकी हर जायज और नाजायज इच्छा पूरी की। जब भी विमला जी  पति को पुन्नू की गलत बात का समर्थन करते देखती। समझाती ये उसके विकास के लिये ठीक नहीं हैं। आज वो छोटा हैं, उसे हम अच्छा -बुरा का भेद नहीं बताएँगे तो वो कैसे अच्छी -बुरी बातों का अंतर समझेगा। उसकी गलतियां बताना उतना ही आवश्यक हैं जितना उसकी अच्छी बातों की सराहना करना।पर पुत्र -.मोह में पड़े सुमेर, पुत्र की गलतियां छुपाने से बाज नहीं आते। विमला जी  अकेले में बेटे को समझाती। पर पुन्नू जब प्रेम से मेरी सुपर मॉम कह उनके गले लगता। विमला जी  सब कुछ भूल जाती।




पुन्नू बड़ा हो गया। इंजीनियर बन एक मल्टीनेशनल कंपनी में ऊंचे पद पर आ गया। पुन्नू ने अपने साथ पढ़ने वाली विजातीय लड़की से शादी की जिद पकड़ ली। यहाँ रूढ़िवादी पिता पुन्नू के विरुद्ध हो गये। जिद्दी पुन्नू ने कोर्ट में जा शादी कर ली। इकलौते पुत्र के इस कदम से सुमेर का दिल टूट गया। वे बिस्तर पर पड़ गये। पुन्नू अपनी नव विवाहिता को लेकर अलग हो गया। सुमेर बेटे की इस बेरुखी को सहन नहीं कर पाये। ह्रदय आघात ने उनकी साँसो की डोर तोड़ दी। जब समय होता हैं तो हम समझ नहीं पाते क्या सही हैं क्या गलत। समय बीत जाने के बाद जब गलती समझ में आती तब सुधारने का रास्ता बंद हो जाता।यही जीवन का सार है।

पिता की मृत्यु में पुन्नू को आना पड़ा। रिश्तेदारों के अपने साथ ले जाने के लिये जोर देने,पर माँ को वृद्धाआश्रम में छोड़ गया। उसकी विजातीय पत्नी ने साफ कह दिया था।वो उसकी कम पढ़ी -लिखी माँ के साथ नहीं रह सकती।जिस पुन्नू को बचपन में अपनी माँ से ज्यादा बुद्धिमान कोई दिखता नहीं था आज उसी पुन्नू ने पत्नी के कहने पर माँ को अनपढ़ मानने में एक मिनट की देर नहीं लगाई।सचमुच बेटे इतनी जल्दी बदल जाते हैं क्या..?

जिंदगी की किताब के पन्ने पढ़ते -पढ़ते” विमला जी  के आँसू छलक आए.. “शायद जीवन ऐसा ही खट्टे -मीठे अनुभवों का सबक होता हैं। बरामदे में बैठे, अपनी जीवन दर्शन को बांचते कब सूर्य ढलने लगा पता नहीं चला। खटाक से किसीने बिजली का स्विच ऑन कर दिया। सर्वत्र प्रकाश फैल गया। हाथ जोड़ पुन्नू के अपराधों की क्षमा मांगते हुये, विमला जी  ने ऑंखें बंद की, तभी उसे कंधे पर स्पर्श हुआ। पुन्नू कहते विमला जी  ने ऑंखें खोल दी। सामने आज पांच साल बाद पुन्नू खड़ा था। माँ अपने बेटे के आने की आहट, हवाओं में भी सुन लेती हैं।उजड़े बाल और बिगड़ी सेहत के साथ खड़े पुन्नू को देख विमला जी   विकल हो उठी। आखिर माँ थी उसकी।बेटे की हालत  देख विचलित हो गई।

कमरे में ला, उसको पानी पिलाया, तब पुन्नू कुछ कहने योग्य हुआ। पुन्नू को कैंसर हो गया। उसकी बीमारी को देख, विजातीय पत्नी उसे छोड़ चली गई तब पुन्नू को माँ की याद आई। माँ तो माँ होती हैं। बच्चे के लिये यमराज से भी भिड़ जाती हैं। पुन्नू को पास रख विमला जी  ने जी जान से बेटे की सेवा की। एक दिन पुन्नू की बीमारी ने भी माँ की सेवा से हार मान ली। पुन्नू स्वस्थ हो गया। पत्नी फिर वापस आ गई पर पुन्नू ने माँ के बिना जाने से इंकार कर दिया। विमला जी  ने पुन्नू के साथ जाने से इंकार कर दिया। उसका इसी वृद्धाआश्रम में मन लगने लगा। वो इन्ही में खुश हैं। पुन्नू को समझा -बुझा कर वापस भेज दिया।

सच में, ये माँ कुछ अजीब नहीं होती, बच्चा कितना भी अपराध करें वे तुरंत क्षमा कर सीने से लगा लेती ।माँ बन ही जाना वो सूक्ष्म सूत्र जो बच्चे से हर पल, हर अवस्था में जुड़ा रहता है।

–संगीता  त्रिपाठी

 

 

 

 

 

 

 

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