आज पूरे ८ वर्षों के बाद वह, इस गाँव वापस आया था। इसे एक संयोग ही समझना चाहिए, कि जिस विद्यालय से उसने ८ वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की, उसी विद्यालय में वह सहायक शिक्षक के पद पर नियुक्त होकर आया था।यह उसकी पहली पोस्टिंग थी। रेलवे स्टेशन से गाँव दूर नहीं था,उसने अपने बेग को कंधे पर लटकाया और पैदल ही गाँव की ओर चला। इन ८ वर्षों में गाँव में बहुत परिवर्तन आ गया था। ज्यादातर मकान पक्के बन गए थे। सड़कें भी पक्की बन गई थी। कुछ दूर बढ़ने पर उसने देखा उस स्थान को जहाँ झोपड़पट्टी में वह रहता था, वहाँ दुकानें बन गई थी। सभी कुछ बदल गया था, कुछ देर रुककर उसने देखा, पुरानी स्मृतियां ताजी हो गई।उसने देखा सड़क के किनारे बनी वह छोटी सी पुलिया, जिस पर बैठ कर वह दोस्तों के साथ चंग चोपड़ा खेलता था,आज भी मौजूद है।वह उस पर बैठ गया, उसे लगा किसी ने उसे गज्जू कहकर पुकारा, मगर यह उसका भ्रम था। स्मृतियों ने आँखों को नम कर दिया था।उसने अपने सिर को झटका दिया, घड़ी में देखा साढ़े दस बजे गए थे, उसे ग्यारह बजे तक विद्यालय में पहुंचना था, वह तेज कदमों से चल पड़ा।
विद्यालय की इमारत दो मंजिला बन गई थी, और वह हाईस्कूल बन गया था। प्राचार्य के ऑफिस में जाकर, उसने अपना कार्यभार संभाला, प्राचार्य महोदय ने पूरे स्टाफ से उसका परिचय कराया और कहॉ- ‘ये गजेन्द्र सिंह है, जो सहायक शिक्षक के पद पर नियुक्त हुए हैं। और आज से कक्षा ७ का कार्यभार सम्हालेंगे।
कक्षा दूसरी मंजिल पर थी। कक्षा में जाते हुए उसकी नजर बाहर उस लड़की पर पड़ी, जो कचरा निकाल रही थी। एक पल के लिए वह चौंका, लगा जैसे बिन्नी हो। दूसरे ही पल सोचा बिन्नी यहाँ कचरा क्यों निकालेगी? उसकी तो अच्छे घर में शादी हो गई होगी।मन में एक उधेड़बुन चल रही थी,स्मृति में बसे उसके स्वरुप को वह भूल नहीं पाया था, नजरें उसे पहचान गई थी,मगर दिल मानने को तैयार नहीं था। वह कक्षा में गया, बच्चों को पढ़ाया।सोचा नीचे जाऊँगा तब देख लूंगा। वह नीचे उतरा तबतक वो जा चुकी थी। उसने विद्यालय के पास ही एक कमरा किराए से लिया और अपना सामान उसमें रख दिया। खाना बाहर भोजनालय में खाया और सोने के लिए बिस्तर लगाया।
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मगर उसे नींद नहीं आ रही थी, बार-बार उसे वह चेहरा याद आ रहा था। वह अपनी अतीत की स्मृतियों में खो गया। उसे याद आया, जब उसने बिन्नी को पहली बार देखा था। वह ५ साल की थी गोरे रंग की, गोल मटोल नाम तो उसका बिंदिया था,मगर सब उसे प्यार से बिन्नी कहते थे। गजेन्द्र ने जब पहली बार उसे देखा बस्ता कंधे पर लटकाएं, वह और बच्चों के साथ स्कूल जा रही थी,सड़क कच्ची थी, बारिश के कारण सड़क चिकनी हो गई थी, उसका पैर फिसल गया,वह गिर गई, उसके कपड़े गन्दे हो गए,वह रोने लगी, बच्चे उसे चिढ़ा रहै थे। गजेन्द्र उस पुलिया पर बैठा था, वह दौड़ कर गया,उसे हाथ पकड़ कर उठाया, पास के हेण्डपम्प पर उसके हाथ-पांव धुलाए, उसका बस्ता उठाकर उसे घर छोड़ने गया।गाँव बहुत छोटा सा था। बिन्नी के पापा की
किराने की बहुत बड़ी दुकान थी। बहुत बड़ा मकान था, बिन्नी उनकी इकलौती लाड़ली बेटी थी। सेठ दीनानाथ को सारा गांव आदर की दृष्टि से देखता था। बिन्नी ने रो रो कर घर सिर पे उठा लिया कि वह स्कूल नहीं जाएगी। कह रही थी सब बच्चे गंदे हैं, हँसते है। दीनानाथ जी ने कहा देखो बेटा, यह बच्चा कितना प्यारा है, तुझे घर तक छोड़ने आया ना।’ ‘पर यह स्कूल कहाँ जाता है।’ दीनानाथ जी ने कहा-‘क्यों बेटा स्कूल क्यों नहीं जाते हो? क्या नाम है तुम्हारा?’ ‘मेरा नाम गजेन्द्र है, मैं पढ़ना चाहता हूँ पर पढ़ाई के पैसे नहीं हैं। मैं मजदूरी करता हूँ, मेरे माँ बाप नहीं हैं, घर में बूढ़ी दादी है,वे बिमार रहती हैं।’ कहते हुए वह रो दिया। दीनानाथ जी ने कहॉ – ‘अगर मैं तुम्हें किताबें लाकर दूं,और तुम्हारी फीस की व्यवस्था कर दूं तो क्या तुम पढ़ाई करोगे?’ ‘जरूर करूंगा’उसकी आँखों में चमक आ गई थी।
दीनानाथ जी ने पूछा – ‘अच्छा बिन्नी अब तो स्कूल जाओगी।’ ‘हाँ गज्जू के साथ स्कूल जाऊँगी।’ यहाँ से गजेन्द्र की पढ़ाई का सफर शुरू हुआ। किताबें दीनानाथ जी ने दिला दी और उसकी स्कूल फीस मॉफ करा दी। वह हमेशा बिन्नी का ध्यान रखता । वह पढ़ने में बहुत होशियार था।जब वह ७ वी में था, उसकी दादी शांत हो गई। बिन्नी के माता – पिता उसे बहुत प्यार करते थे। ८वीं के बाद सरकार की तरफ से उसे स्कालरशीप मिलने लगी। आगे की पढ़ाई के लिए उसे दूसरे गाँव जाना पड़ा, इस गाँव में बस ८ वीं तक ही स्कूल था, जब वह जा रहा था, बिन्नी बहुत रोई,उसे उसके माता-पिता ने बहुत मुश्किल से समझाया। यह सब सोचते-सोचते उसे नींद आ गई। सुबह जल्दी उठकर अपने सारे काम निपटाए। साढ़े दस बजे वह विद्यालय पहुंच गया।
ग्यारह बजे से उसको कक्षा में पहुंचना था।उसने देखा वही लड़की बाल्टियों से मटकी में पानी भर रही थी।उसके दिल में कुछ खटका,वह ध्यान से उसे देख रहा था।उसे इस तरह देखते हुए देखकर रामू जो विद्यालय में घंटा बजाता था बोला – ‘ मास्टर जी ये दीदी बहुत दु:खियारी हैं। इनके पिता गाँव के बहुत बड़े किराना व्यापारी थे। सेठ दीनानाथ जी के नाम से जाने जाते थे। ७ वर्ष पूर्व सेठानी जी का किसी बिमारी में निधन हो गया। सेठ जी ने दूसरी शादी की मगर ये सेठानी बहुत लड़ाकू प्रवृत्ति की है।घर की शांति भंग हो गई। इन्होंने कभी इन दीदी को नहीं चाहा, हमेशा लड़ती हैं, इस क्लेष के चलते पिछले साल सेठजी भी भगवान को प्यारे हो गए।तभी से ये दीदी यहाँ काम करती है,किसी से कुछ कहती नहीं,मगर लोग कहते हैं कि अगर ये काम न करें तो सेठानी जी इन्हें खाना भी न दे। सेठ जी बहुत दयालु थे, कहते हैं मरते समय उनके मुख पर एक ही नाम था वे किसी गज्जू को याद कर रहै थे।
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११ बज गए थे,रामू घंटा बजाने के लिए गया। गजेन्द्र ने आँखों में आए आँसू को मुश्किल से नियंत्रित किया, और कक्षा में गया।उसने मन ही मन प्रण किया, कि वह बिन्नी के जीवन में खुशियाँ लाकर रहेगा।
दूसरे दिन जब बिन्नी विद्यालय में थी, वह उसके घर गया। गजेन्द्र ने दरवाजे पर दस्तक दी, सौदामिनी ने दरवाजा खोला पूछा आप कौन हैं? सौदामिनी बातें करने में माहिर थी।
गजेन्द्र ने कहॉ – ‘मैं यहाँ विद्यालय में शिक्षक हूँ।’ सौदामिनी ने सोचा आज तो घर बैठे गंगा आई है,उसका पुत्र सुन्दर ४ साल का हो गया था और वह उसे विद्यालय में डालने का सोच ही रही थी। उसने कहॉ – ‘आप आइये, बैठिए सुंदर से बोली बेटा नमस्ते करो।’ बालक ने हाथ जोड़े। वह नाम के अनुरूप ही सुन्दर था। गजेन्द्र ने कहॉ – ‘आप मुझे नहीं जानती, मैं बचपन में यहाँ बहुत बार आया हूँ। सेठ दीनानाथ जी मुझे अपने बच्चे की तरह मानते थे। मेरी इच्छा है कि मैं बिन्नी के विवाह का सारा खर्च स्वयं करूँ। वह मेरी भी बहन है मैं अपना फर्ज पूरा करना चाहता हूँ।’
सौदामिनी ने घड़ियाली आँसू बहाते हुए कहॉ- ‘सेठजी के जाने के बाद कमाई का जरिया नहीं रह गया, सुंदर अभी छोटा है, मजबूरी में बिन्नी काम करने जाती है।’
अब आप चिंता न करें, मैं आ गया हूँ, बिन्नी की शादी की जिम्मेदारी आप मुझ पर छोड़ दें। मुझे तीन महिने का समय दीजिए, आप तीन महिने उसे काम पर न भेजें, वरना अच्छा लड़का मिलने में समस्या होगी। गजेन्द्र ने होशियारी से कहॉ- ‘इस साल बच्चों की परीक्षा होने वाली है,अगले साल सुंदर को भी स्कूल में भर्ती करवाएंगे,बड़ा प्यारा बच्चा है।’ सौदामिनी का मन प्रसन्न हो गया उसने सोचा तीन महिने की बात है,शादी होने के बाद बिन्नी का कांटा भी निकल जाएगा, सुंदर भी विद्यालय जाने लगेगा। वैसे भी बिरादरी में उसका नाम खराब हो रहा था। कुछ सोचकर उसने कहॉ – ‘ जैसा आप ठीक समझें, मैं बिन्नी को काम पर जाने से मना कर दूंगी। आप चाय पानी क्या लेंगे ?’
‘नहीं ! अभी कुछ नहीं, मुझे देर हो रही है। अब तो आता रहूँगा फिर कभी ले लूंगा। बहुत-बहुत धन्यवाद।’ गजेन्द्र उसके कमरे पर चला गया।उसे इन्तजार था विनोद के परीक्षा परिणाम का। विनोद उसका मित्र था जिसने उसके साथ बी. काम की परीक्षा पास की थी, और उसने बैंक की परीक्षा दी थी।वह पढ़ने में बहुत होशियार था,उसके घर में सिर्फ उसकी माँ थी। १५ दिन बाद विनोद का फोन आया वह बैंक की परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया था, और उसकी नौकरी लग गई थी। गजेन्द्र की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने विद्यालय से अवकाश लिया और उससे मिलने उसके घर गया।उसकी माँ के सामने विनोद की शादी के लिए बिन्नी का प्रस्ताव रखा।उसकी फोटो दिखाई और बिन्नी के बारे में बताया। दोनों को रिश्ता पसंद आया,मगर विनोद ने कहॉ- ‘गजेन्द्र अभी मैं विवाह करने की स्थिति में नहीं हूँ, मेरी आर्थिक स्थिति अभी ठीक नहीं है, वह इतने बड़े बाप की बेटी है।’ गजेन्द्र ने कहॉ – ‘भाई तू उसकी चिंता मत कर, विवाह बहुत सादगी से करेंगे। गजेन्द्र के विश्वास दिलाने पर दोनों तैयार हो गए। गजेन्द्र ने सारी स्थिति जाकर सौदामिनी को बताई, वे सहर्ष तैयार हो गई। गजेन्द्र ने फिर बिन्नी से बात की,वह भी खुश थी।
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अगले महिने पूरणमासी के दिन विवाह सम्पन्न होना तय हुआ। गजेन्द्र ने विवाह की पूरी तैयारी की उसने सौदामिनी से कहॉ-‘ विवाह आपके घर से ही सम्पन्न होगा,सारी रस्में आपको करनी है, आप माँ है बिन्नी की।खर्चे की चिंता आप बिल्कुल न करें। नियत दिन आर्य समाज पद्धति से दोनों का विवाह सआनन्द सम्पन्न हो गया। जाते समय बिन्नी गज्जू से मिलकर बहुत रोई। सौदामिनी का हृदय भी पसीज गया, उसने आगे बढ़कर बिन्नी को गले से लगा लिया।गज्जू ने जो वचन सेठ दीनानाथ जी को दिया था उसे निभाया।हर वर्ष रक्षाबंधन पर बिन्नी आती, हवेली में पहले गज्जू को राखी बांधती, फिर छोटे भैया को। सौदामिनी के व्यवहार में परिवर्तन आ गया था। एक दिन रक्षाबंधन पर वह गजेन्द्र से बोली क्या तुम मुझे माँ कहकर बुला सकते हो, सुंदर तुम्हारा छोटा भाई है।’ ठीक है माँ, मेंरी माँ मुझे बचपन में ही छोड़कर चली गई थी।आज मुझे भी एक परिवार मिल गया है।’ कुछ रिश्ते ऐसे अनमोल होते हैं।
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित
#मासिक_कहानी_प्रतियोगिता_अप्रैल
अप्रैल २०२३
कहानी नं. २
बहुत मर्मस्पर्शी कहानी है साधुबाद आपके रचनात्मकता को