जैसा कि आप सबने अभी तक पढ़ा कि राजू दुर्गा कोचिंग में मन लगाकर पढ़ने लगा है …. वो कोलेज भी जाने लगा है … उसका बातचीत का लहजा बदल चुका है …. भावना मैडम के मन में भी धीरे धीरे राजू घर कर रहा है …. होली का त्योहार है …. तीन दिन की छुट्टी में राजू अपने गांव आ चुका है … रास्ते में पड़ते निम्मी के घर पर राजू रुकता है …. वो निम्मी को आवाज लगाता है …निम्मी की छोटी बहन बाहर आती है … वो बोलती है … राजू भईया
… निम्मी दीदी तो….
अब आगे…..
हां बता बिट्टू…..कहां है निम्मी ??? दिख नहीं रही….. मेरी आवाज सुनके अब तक चहकती हुई आ ज़ाती…..
राजू बिट्टू से पूछता है ….
भईया … जीजी की तबियत बहुत खराब है …. 5 दिन से बुखार में है जीजी…. बुखार टूट ही नहीं रहा….
तो है कहां निम्मी ??? घर में ही तो होगी ना??
हां… राजू भईया…. 5 दिन से खाट पे ही है ….. उठी ही नहीं…..
हट … मुझे अंदर जाने दे बिट्टू …. निम्मी को देखने दे…..
राजू बिट्टू को साइड करता है …..
भईया…. वैद्य जी ने मना किया है निम्मी जीजी के पास जाने को…..बोल रहे …..सबको हो जायेगी ये बिमारी… इसलिये अम्मा ने उनकी खाट बाड़े में डाल दी है …. वो सामने है …..
राजू की आँखों में आंसू थे कि ऐसा क्या हो गया निम्मी को कि इतनी बिमार हो गयी….
वो भागते हुए अपना बैग वहीं छोड़ बाड़े की तरफ आया…..
निम्मी दर्द से कराह रही थी….
राजू निम्मी के पास उसकी खाट पे बैठ गया….
निम्मी की अम्मा , उसकी बहन मुंह पे कपड़ा रखे किनारे से खड़ी थी…..
राजू तू निम्मी के पास मत जा…. इसे छूत की बिमारी हो गयी है …. ज़िसका कोई ईलाज नहीं… देख कैसे दाने हो गए है इसके चेहरे और शरीर पर …… उल्टी होती रहती है मेरी लाली को… कुछ भी नहीं पचता…. बुखार टूटता नहीं…. वैद्य जी कह रहे कि अब ना सही होगी ये….. बस ज़ितना बखत गुजर रहा वही काट रहे….
निम्मी की अम्मा दूर से ही खड़ी बोलती जा रही थी….
चाची…. तुम ही निम्मी से ऐसी दूरी बनाओगी तो मर ही जायेगी ये ऐसे तो…. आपने अस्पताल में भर्ती क्यूँ ना कराया इसे….??
बिटवा राजू….. वैद्य जी से बड़ा कोई डॉक्टर है का गांव में… अस्पताल वाले ही का कर लेंगे….
चुप करो चाची….. मैं ले जा रहा निम्मी को अस्पताल….
राजू ने अपने बापू को फ़ोन कर प्रधान चाचा की किराये पे गाड़ी लाने को कहा ….
निम्मी राजू को थोड़ी थोड़ी आंखे खोल देख रही थी….
राजू तू मुझसे दूर बैठ….. तुझे तो अफसर बनना है ….. क्यूँ बिमारी ले रहा मेरी…..
निम्मी की आँखें डबडबा रही थी….
चुप कर तू ….. जब तू ही नहीं रहेगी तो अफसर बनकर क्या करूँगा बता ….. तेरे लिए ही तो अफसर बन रहा हूँ…. देख कैसी हो गयी है ….
राजू निम्मी के सर पर हाथ फेरता है ….
कितना तेज बुखार है री निम्मी तुझे…. चाची दवा कहां है बुखार की….??
निम्मी की अम्मा राजू को दवा देती है …..
राजू निम्मी को दवा पिलाता है ….
निम्मी तुरंत उल्टी कर देती है ….. राजू के सारे कपड़े खराब हो जाते है ….
चाची जल्दी से सारे ज़रूरी कपड़े , सामान रख लो थैला में…. इसकी तबियत ज्यादा खराब है ….
राजू निम्मी की अम्मा से बोला…..
इसके साथ तो शनिचर लगा ही रहता है …. त्योहार का बखत है … हर घर में पापड़ गुजिया बन रही… मेरे घर में मातम पसरा है ……
बुदबुदाते हुए निम्मी की अम्मा अंदर सामान रखने चली गयी…..
तब तक राजू का बापू भी गाड़ी लेकर आ गया…..
बापू ज़रा निम्मी को सहारा दो….. गाड़ी में बैठाना है इसे…
राजू बापू की तरफ देख बोला…..
राजू… लला… तुझे बताया ना का किसी ने… निम्मी को छूत की बिमारी है …. क्यूँ हाथ लगा रहा है …… मैं तो ना लगा रहा…. और भी बालक है घर में … उन्हे ना हो जायें जे बिमारी….
राजू का बापू गाड़ी में आगे की तरफ बैठ गया…..
राजू ने अकेले ही निम्मी को गोद में उठा गाड़ी में लिटा दिया… खुद भी निम्मी के सिरहाने बैठ गया…..
चाची तुम आगे बापू के पास बैठ जाओ….
बापू गाड़ी जल्दी चलाओ….
गाड़ी अस्पताल पे आकर रुकी…..
राजू ने ऊतरकर निम्मी के लिए स्ट्रेचर मंगवाया….
अंदर जाकर पर्ची कटायी ….
डॉक्टर ने निम्मी की हालत देख उसे भर्ती कर लिया …. निम्मी को बोतल लगायी गयी….. उसके खून की जांच हुई….. शाम को रिपोर्ट आयीं…. निम्मी को डेंगू हुआ था….
डॉक्टर साहब बोले….
आप लोग इतने दिनों से क्या कर रहे थे… पता नही ये बच्ची कितनी बिमार है …..पांच दिनों से इतनी प्लेटलेट्स डाउन है इसकी… किस आस में जी रही थी ये…… आप लोग इसे लेकर क्यूँ नहीं आयें…. आप गांव के लोग बच्चों को पैदा कर देते है पर कभी समय पर ईलाज नहीं करवाते …. ज्यादातर बच्चे बिना ईलाज के घर में ही दम तोड़ देते है ….. इतनी लापरवाही ….. बहुत गलत बात है ……
सर…. निम्मी ठीक तो हो जायेगी ना ….
राजू डॉक्टर साहब के हाथ जोड़ते हुए बोला……
अभी हम कुछ नहीं कह सकते…. पहले सोच लेते….. आप लोगों ने तो मरने के लिए छोड़ दिया है बच्ची को….. कहीं से पपीते के पत्ते , बकरी का दूध मिल जाये तो इसे दे….. शायद प्लेटलेट्स बढ़ जायें … यहीं उपाय है … बाकी दवा हम दे रहे है ……
डॉक्टर साहब बोले…..
डॉक्टर साहब चाची को बता दो कि डेंगू कोई छूत की बिमारी नहीं है …… ज़िससे ये निम्मी की अच्छे से देखभाल कर सके ….
राजू निम्मी की अम्मा की तरफ देख बोला…
किसने कहा डेंगू छूत की बिमारी है ….. ये तो मच्छर से फैलती है …..
डॉक्टर साहब इतना बोल बाहर आ गए……
चाची अब तो निम्मी को अच्छे से देख लोगी…. मैं अपनी बकरी का दूध ,,पपीते के पत्ते लेकर आता हूँ … अम्मा पे उसका जूस बनवा लाऊँगा……
राजू तू तो निम्मी के लिए हमेशा भगवान की तरह हाजिर हो जाता है ……. जा मैं देख लूँगी अपनी लाडो को… कोई दिक्कत हुई तो बताये दूँगी ….
निम्मी की अम्मा की आँखों में आंसू थे….
कुछ नहीं होगा निम्मी तुझे … इतनी हिम्मत रखी तूने तो बस थोड़ी और रख ले….
राजू निम्मी से इतना बोल गांव की तरफ निकल आया….
लगाकर दो दिन तक राजू ने निम्मी की दिन रात सेवा की… निम्मी की सेहत में सुधार हो रहा था….. उसका बुखार टूट गया था…..
प्लेटलेट्स बढ़ गयी थी….
आज़ होली थी… निम्मी अभी भी अस्पताल में भर्ती थी….. राजू निम्मी के पास आया…
ए रे राजू…. तू आज क्यूँ आया अस्पताल…. अब मैं ठीक हूँ. …. तू होली के लिए ही तो गांव आया….. जा रंग खेल…..
निम्मी राजू से बोली….
तेरे बिना कैसा त्योहार निम्मी …. सबसे पहले तो तुझे ही रंग लगाऊंगा ….
राजू ने अपने जेब से गुलाबी रंग निकाला… निम्मी को बेड पर सहारा दे बैठाया……
दोनों हाथों में गुलाबी रंग का गुलाल ले निम्मी के गालों पर बड़े प्यार से लगाया….
देख कैसी सुन्दर लग रही है तू निम्मी … हैप्पी होलो निम्मी ……
राजू बोला…..
ला अपने गाल आगे कर राजू….. मैं भी तो लगाऊँ तुझे रंग…..
निम्मी बोली…
राजू अपने गाल आगे करता है कि तभी राजू के फ़ोन पर भावना मैडम का फ़ोन आता है ……
आगे की कहानी जल्द…. तब तक के लिए श्री गणेशाय नमह
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एक प्यार ऐसा भी …(भाग -30) – मीनाक्षी सिंह : Moral Stories in Hindi
मीनाक्षी सिंह की कलम से
आगरा