शीतल नौ महीने बाद पहली बार मुस्कुराई थी, अपनी नन्हीं सी गुड़िया का चेहरा देखकर उसकी सारी शिकायतें, दर्द, और मायूसियाँ जैसे एक पल में खत्म हो गईं। ऐसा लगने लगा था जैसे उसकी जिंदगी में एक नई सुबह आई हो, जिसने उसके जीवन को फिर से खुशियों से भर दिया हो।
शीतल की शादी दो साल पहले रीतेश से हुई थी। रीतेश और शीतल की पहली मुलाकात एक पारिवारिक समारोह में हुई थी, जहां रीतेश की माँ ने पहली बार उसे देखा था। रीतेश और शीतल की बातचीत हुई, और धीरे-धीरे दोनों के दिलों में एक-दूसरे के लिए विशेष जगह बन गई। घरवालों की सहमति से उनकी शादी तय कर दी गई, और दोनों के जीवन में खुशियाँ आ गईं। शादी के बाद, रीतेश ने शीतल से वादा किया कि वे अपनी पहली शादी की सालगिरह पर एक विशेष यात्रा पर जाएंगे। लेकिन किस्मत ने कुछ और ही तय कर रखा था।
पहली सालगिरह पर रीतेश को ऑफिस के एक जरूरी काम की वजह से छुट्टी नहीं मिल पाई, और वह अपने वादे को उस समय पूरा नहीं कर पाया। उसने शीतल से वादा किया कि वह अगले सालगिरह पर उसे जरूर ले जाएगा। अगले साल, अपनी दूसरी सालगिरह पर, रीतेश ने अपने वादे को निभाया और शीतल को घुमाने के लिए बाहर ले गया। दोनों खुश थे, उनका जीवन मानो स्वर्ग सा प्रतीत हो रहा था। लेकिन जैसे ही वे घर लौट रहे थे, किस्मत ने एक भयानक मोड़ लिया। उनकी कार का एक भयानक एक्सीडेंट हो गया।
इस दुर्घटना में रीतेश ने वहीं दम तोड़ दिया, और शीतल बेहोश होकर अस्पताल में भर्ती कर दी गई। दस दिनों तक शीतल को होश नहीं आया, और जैसे ही उसे होश आया, उसने अपने जीवन की सबसे बुरी खबर सुनी। रीतेश, उसका जीवन साथी, अब इस दुनिया में नहीं था। यह खबर सुनकर उसके दिल पर गहरा घाव हुआ। उसकी सारी दुनिया मानो उजड़ गई थी। लेकिन ईश्वर की एक अद्भुत लीला थी कि इस विपदा के समय में उसने शीतल को जीवन में एक नया आश्रय दिया। वह गर्भवती थी, जो उसकी जीवन की एक नई उम्मीद थी।
शीतल ने बड़ी मुश्किल से खुद को संभाला। उसके सास-ससुर ने इस दुखद समय में उसका भरपूर साथ दिया और उसे सहारा दिया। अपने पति की मौत के बाद शीतल के पास जीने की एकमात्र वजह उसकी होने वाली संतान थी। उसने तय किया कि वह इस बच्चे के लिए खुद को मजबूत बनाएगी और अपने जीवन में फिर से खुशियाँ लाएगी। नौ महीने तक, वह इस उम्मीद में जीती रही कि उसकी संतान उसका सहारा बनेगी और उसके जीवन में नई रोशनी लेकर आएगी।
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समय बीता और शीतल ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया। जैसे ही उसने अपनी बिटिया का चेहरा देखा, उसके सारे दर्द, सारी तकलीफें जैसे एक पल में मिट गईं। उसे ऐसा लगा जैसे रीतेश की कुछ यादें इस बच्ची में समा गई हों। उसने अपनी नन्हीं सी गुड़िया को अपनी बाहों में लेकर अपने जीवन का सबसे बड़ा सहारा पाया। उसकी सास-ससुर भी इस नन्हीं परी के आगमन से बहुत खुश थे। शीतल ने इस बच्ची के साथ अपने नए जीवन की शुरुआत करने का संकल्प लिया।
उस दिन, जब वह अपनी बेटी को लेकर पहली बार घर लौटी, तो उसने अपने सास-ससुर के साथ गृहप्रवेश किया। घर में कई दिन बाद खुशियों का माहौल था। सबकी आंखों में नमी थी, लेकिन एक सुखद संतोष भी था। शीतल को देखकर उसका परिवार बेहद खुश था कि उसने अपनी तकलीफों से लड़कर अपनी बेटी को जन्म दिया और खुद को संभाला।
जैसे ही वह घर में पहुंची, आसपास की कुछ महिलाएं भी उसे बधाई देने और मिलने आ गईं। उन महिलाओं में से कुछ ने उसे सहानुभूति दी और कुछ ने उसकी तारीफ की कि उसने इतनी हिम्मत दिखाई। लेकिन कुछ ऐसी भी थीं जो शीतल की इस खुशी में दुख का रंग घोलने में पीछे नहीं रहीं। उनमें से एक ने ताने मारते हुए कहा, “भगवान ने बेटा दिया होता तो कुछ बात थी। बेटी से तो बस परेशानी ही बढ़ गई। बेटी तो पराई होती है, एक दिन छोड़कर चली जाएगी।”
इस बात को सुनकर शीतल का मन विचलित हो उठा। उसे लगा कि उसकी जिंदगी में आए इस छोटे से सुख को भी ये लोग शांतिपूर्वक नहीं देख सकते। जो महिलाएं खुद को समाज की हमदर्द समझती हैं, वही आज उसकी भावनाओं पर नमक छिड़क रही थीं। शीतल के मन में बहुत से सवाल उठने लगे। क्यों समाज में बेटियों को कमतर समझा जाता है? क्या बेटी का जन्म किसी के लिए खुशी का कारण नहीं बन सकता? क्यों लोगों को हमेशा बेटों की जरूरत होती है, जबकि बेटियां भी परिवार का सहारा बन सकती हैं?
शीतल ने मन ही मन यह निश्चय किया कि वह अपनी बेटी को इतनी आत्मनिर्भर बनाएगी कि समाज के सारे ताने बेकार साबित हो जाएं। उसने यह संकल्प लिया कि वह अपनी बेटी के जीवन को खुशियों से भरेगी, उसे वह सबकुछ देगी जो एक बेटे को दिया जाता है। शीतल को अब अपने जीवन में एक नई राह मिल गई थी। वह जान गई थी कि उसकी बेटी ही उसका भविष्य है और उसका सहारा है।
समाज की बातों और तानों के बीच शीतल ने यह समझ लिया कि लोग चाहे जो भी कहें, उसका ध्यान अब सिर्फ अपनी बेटी की परवरिश और उसके भविष्य को संवारने में होगा। उसने मन में ठान लिया कि वह अपनी बेटी को एक मजबूत, आत्मनिर्भर और साहसी महिला बनाएगी, ताकि किसी और को उसकी बेटी पर सवाल उठाने का मौका न मिले।
उसके सास-ससुर ने भी शीतल के इस फैसले में उसका पूरा समर्थन किया। वे भी अपनी पोती को एक बेटे की तरह पालने के लिए पूरी तरह से तैयार थे। इस घटना के बाद शीतल ने अपने आप से वादा किया कि वह हर उस ताने को अपने मजबूत इरादों से जवाब देगी। उसने यह भी सोचा कि वह अपनी बेटी को ऐसे संस्कार और मूल्य देगी, जिससे उसकी बेटी हर मुश्किल का सामना कर सके।
शीतल के लिए आगे की राह आसान नहीं थी, लेकिन उसकी बेटी की एक मुस्कान उसे हर तकलीफ और ताने से ऊपर उठा देती थी। उसने अपनी बेटी को जीवन का एक नया उद्देश्य बना लिया। वह बेटी के साथ अपनी जिंदगी को एक नई दिशा में ले जाने के लिए पूरी तरह से तैयार थी।
शीतल के लिए यह बच्ची एक नयी शुरुआत थी, एक ऐसी शुरुआत जिसमें उसने अपने सपनों और आशाओं को फिर से जिंदा किया।
मौलिक रचना
मधु झा,,