एक नया जीवन – हरीश श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

एक नवम्बर को महेश नारायण रिटायर हो गए और घर आ गए।दस नवम्बर को दीपावली थी और अबकी बार तीनों बच्चे साथ आए।देखकर खुशी के साथ साथ आश्चर्य भी हुआ।अपनी पत्नी कमला से बोले कि जरूर कोई बात है जो बिटिया भी पांच साल बाद आई है।

घबराइए नहीं सब पता कर लिया है।फिर वह उन्हें सब कुछ बताने लगीं जो बच्चे चाहते थे।

दीपावली बीत गई तब महेश नारायण बोले जिसका जो जो सामान है घर में या योगदान है उसे लेकर घर से चला जाय।

तब हमारा हिस्सा कैसे मिलेगा बाबूजी?

कौन सा हिस्सा?

मकान,जमीन?

ना तुम लोगों ने बनाया और ना तुम  लोगों ने जमीन खरीदी या पैसा दिया। तुम लोगों को पढ़ाया लिखाया तो तुम लोग हमारा हिस्सा दे दो तब जाओ।अपना सामान उठाओ,मेहरारू लो और चले जाओ।

माँ तू देख रही है चुपचाप।

ठीक तो कह रहे हैं।रोज रोज की यह कलह खतम करो।रात भर तुम लोग बहस करते रहे यहाँ आकर। मैैं सब सुन चुकी हूँ और ये बहुएँ ! इनकी बातों का तो जबाब नहीं।मैं नहीं समझती कि ये सुसंस्कृत परिवार की हैं।

महेश नारायण रिटायर होकर अब अपने घर आ गए थे।गाँव की दशा और शहर के वातावरण से भली भांति परिचित महेश जी ने जब दीपावली पर कलह देखी तो फैसला ले लिया।बेटे और बेटी ने सोचा था कि बाबूजी बटवारा कर देंगे तो अपना अपना हिस्सा बेच कर शहर में अपना मकान खरीद लेंगे।

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महेश जी ने अब शहर की भाषा शुरू कर दी।

तुम लोग अपने पिता को मूर्ख समझते हो क्या?बहुत मेहनत से बनाया है सब कुछ, बहुत कुछ गँवाया है मैने और कमला ने। जितनी जल्दी घर खाली कर दोगे उतनी जल्दी आराम मिलेगा।

  अब आपके बुलाने पर भी नहीं आएंगे बाबूजी।शायद कभी नहीं।

तो क्या दीपावली पर तुमको बुलाया था?तुम लोग अपनी मर्जी से आते थे।और इस लड़की को देख लो ! पिछले पांच वर्षों में एक बार भी माँ को देखने नहीं आई।तुम लोगों की मोबाइल कांफ्रेंसिंग रही होगी जो इस बार तीनों यहाँ इकट्टे आए।भूल गए तुम लोग कि मैं एडमिनिस्ट्रेशन देखता था।

कमला एक गिलास पानी पिलाओ और अपने कमरे में चले गए।

कमला चुपचाप पानी का एक गिलास लेकर कमरे में आ गई।

कमला कह उठी कि वैसे तो पुत्र मोह त्यागना बहुत कठिन काम है परंतु इनकी बातें सुनकर मोह भंग हो गया।हमारे खेतिहर ही हमारे अब पुत्र पुत्री रहेंगे।कितने हैं ही?

महेश नारायण ने पत्नी का हाथ थाम लिया।तुम सही मायने में सहधर्मिणी हो।

दोनो पुत्र एक साथ अपनी पत्नी को लेकर चले गए।शाम की गाड़ी थी बेटी की और भाइयो को जरा भी ख्याल नहीं आया कि बहन कैसे जाएगी?

महेश जी जब कमला के साथ बाहर आए तो बिटिया बाहर अकेली बैठी थी।

चले गए तुम्हारे भाई तुम्हे अकेला छोड़ कर,मां ने पूछा।

मेरी गाड़ी शाम की है।

उनकी तो रात की है।इसी बल बूते पर इतराती हो?ससुर से पूछा था हिस्सा मांगने के पहले?तुम इतनी नालायक कबसे हो गई? ठीक है लड़की हो तो खाना खाकर आराम करो,शाम को मांगेलाल जीप से बैठा आएगा ट्रेन में।

वह जानती थी माँ कों कि वह बहुत कठोर हृदय वाली स्त्री हैं।वह स्कूल में भी इसी तरह सजा देती थीं।

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महेश नारायण दोपहर को लौटे तो देखा बेटी बैठी है चुपचाप।एक पल रुके और फिर नजदीक आकर सर पर हाथ रख दिया। खाना लगने लगा।खाते खाते बोले कि तुम्हारे ससुर बहुत प्रतिभा सम्पन्न हैं और पति एक योग्य व्यक्ति।तुम्हे तो आवश्यकता नहीं होनी चहिये थी।

बहुत पारिवारिक कलह हो गया है वहाँ।हम सोचते थे अलग हो जाएं।

तुम लोग समाधान खोजने की बजाय ऐसे फैसले कर रहे हो।

आपने भी तो सुबह यही फैसला लिया।

हाँ लिया क्योंकि तुम लोग इसको बेंच कर हमारे लिए कुछ नहीं छोड़ने वाले थे परंतु वहां तुम नहीं कर पाओगे क्योंकि वह पुरखों की जायदाद है।सौ दावेदार हैं।यह केवल मेरी है और शायद हम दोनों के मृत्यु के उपरांत तुम लोगों की हो जाती पर अब वह भी नहीं होगी।

तुम मेरी प्यारी पुत्री थी पर शायद आज के परिदृश्य में तुमने वह खो दिया।तुम तीनों ने नहीं सोचा कि हमारे माता पिता कहां जाएंगे? यहाँ तक कि तुम लोगों ने वृद्ध आश्रम तक की बात सोच डाली। तुम्हारी माँ तो अभी भी हेड है हाइस्कूल की।मांगी दौलत फलित नहीं होती।पति के साथ मिलकर परिवार व्यवस्थित करोगी तो नाम और इज्जत मिलेगी।

कमला आ गईं और हाथ में छोटी डिब्बी थी।बेटी हो तो खाली हाथ नहीं जाना चाहिए।तुमको तो कुछ नहीं पर नतिनी के लिए ये तुम्हारा वही सोने का झुमका है जिसे पहन तुम नाचा करती थीं।

रोती रही और शाम को चाय पीकर चली गयी।

मांगेलाल ने खबर दी कि बिटिया को आराम से बैठा आया।

महेश नारायण रात के खाने पर कुछ उदास थे।कमला ने कहा कि उदास क्यों हो रहे हैं?दो एकड़़ जमीन है हमारी, तीन साल की नौकरी बची है हमारी,आपकी पेंशन है। राम और मांगे के लड़के शहर में मजदूरी करने जाते हैँ। कुछ नया सोचिए।

जब अपने नहीं हुए तो ये क्या होंगे?

इनको आपसे अपेक्षा रहेगी और वहां आपको बच्चों से अपेक्षा थी , यही फर्क है।ये मेहनत करेंगे जमीन पर और जब पचहत्तर प्रतिशत आप देंगे तो यह आपके कृतज्ञ रहेंगे।

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जानती हो तब ये अमीर हो जाएंगे और तब ये भूख नहीं सोचेंगे,ताकतवर होकर हमें बेदखल करने का प्रयास करेंगे।हाँ इनको उतना ही दो जितने से पेट भरा रहा रहे,प्यार दो , सम्मान दो ,मदद करो बस।

तो सोचिए।मांगेलाल की गाड़ी तो अभी चल रही है पर लड़का जाहिल है।किसी मिस्त्री के साथ काम करता है जब उसे काम मिलता है और राम का परिवार सब्जी वगैरह उगाता है हमारे जमीन के कुए के पानी से।शहर में या गाँव में बेचकर जीवन जीते हैं।

सुबह देखता हूँ कमला कि कौन कौन लंगोटिया है और कहां है।चलो चेंज करके नये जीवन की शुरुआत करते हैं।

अब बुढ़ौती में?

यही तो तीन चार साल रहते हैं जीवन जीने के।

समाप्त।।

हरीश श्रीवास्तव

मुंबई

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