इतनी सवेरे सवेरे आज फोन किया है भाई.. क्या बात है.. राजीव का फोन रिसीव करते ही वीणा के मुंह से निकला!
वह.. थोड़ा रुक कर.. फोन पर नहीं बता सकता.. आज तो तेरी छुट्टी होगी ना.. टाइम निकाल कर घर आ जा!
राजीव की आवाज में काफी संजीदगी थी.. उसने अनमने सारा काम निपटाया.. और पहुंच गई भाई के घर!
पहुंचते से ही.. बिना भूमिका बांधे.. हां बोलो अब क्या बात है!
बात वह यह है कि.. उसके मुंह में कुछ अटक सा गया.. वहीं बुत बनी खड़ी अनीता को चाय बनाने के लिए बोल.. फिर थोड़ा अपने आपको सहज करने की कोशिश की!
तुम्हें तो मालूम है.. पिछले साल से मां की तबीयत ठीक नहीं रह रही है.. बार बार उनका आवाज लगाना.. और फिर दोनों जवान होते बच्चों के साथ.. उनकी देखभाल करना अनीता के लिए आसान नहीं है!
यहीं शहर में.. एक अच्छा सा सुविधाजनक ओल्ड एज होम देख आया हूं.. वहां मां को कोई दिक्कत नहीं होगी.. और अपने बराबर की..
आगे की बात को वीणा ने पूरा ही नहीं करने दिया.. इसकी कोई जरूरत नहीं है.. मां मेरे साथ रहेंगी!
बस तुम उनका सामान पैक करवाने में मेरी मदद कर दो.. मैं आशुतोष से कार लाने के लिए कहती हूं!
इस कहानी को भी पढ़ें:
पर तुम एक बार जीजा जी और बच्चों से बात तो कर लेती.. आजकल बढ़ती उम्र के बच्चों को किसी की दखलअंदाजी..
किसी से क्या पूछना.. मां मेरी है.. अगर उनको कोई दिक्कत आएगी तो अपना बंदोबस्त कर लेंगे!
और दख़ल अंदाजी! वह मेरे घर में रह रहे हैं.. मैं उनके घर में नहीं.. भाई की बात को बीच में ही काटते हुए बोल उठी थी!
मां बीमार जरूर थी.. नासमझ नहीं.. सामान पैक होता देख.. उन्हें माजरा समझने में देर ना लगी!
थोड़ी देर में कार चल पड़ी.. मां की आंखों से अश्रु धारा बह निकली और पीछे का सब कुछ साफ-साफ दिखाई देने लगा!
राजीव और वीणा जुड़वा भाई बहन थे.. जहां राजीव बिल्कुल सामान्य था पढ़ाई में.. तो वीणा एक मेधावी छात्रा!
वीणा ने कई बार मां को अपने डॉक्टर बनने की तीव्र इच्छा जताई पर उन्होंने हमेशा टाल दिया.. बेटी है.. कल पराये घर चली जाएगी.. इतने पैसे किसलिए लगाना!
और अपने इसी बेटे को.. प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला दिलाने के लिए.. सारी जमा पूंजी को खर्च करते वक्त तनिक न सोचा.. बेटा है.. सूद सहित कमा कर देगा!
खैर! वीणा मतलब ही मां सरस्वती का वाद्य.. सदैव उनके हाथ में विराजमान.. ज्ञान का वरदान लेकर ही पैदा हुई थी साथ में.. उसे भला कौन रोक सकता था.. आगे जाने से!
एम ए किया.. शादी के बाद डबल एम ए.. पीएचडी.. फिर रिसर्च और ना जाने क्या-क्या!
इस कहानी को भी पढ़ें:
आज शहर के सबसे प्रतिष्ठित कॉलेज में प्रिंसिपल के पद पर कार्यरत थी.. नाम पैसा इज्ज़त शोहरत.. सब कुछ तो हासिल किया था उसने.. पर अपने बलबूते पर!
जब वीणा की मां पर नजर पड़ी.. तो वह उनकी बांह पर हाथ रखते हुए बोली.. प्लीज़ रोओ मत मां.. मैं तुम्हें घर की याद नहीं आने दूंगी!
नहीं बेटा.. मुझे तो तुम दोनों के बीच.. अपने द्वारा किए हुए फर्क पर रोना आ गया!
वीणा को बात समझते देर लगी.. पर तुम ही तो कहा करती थी मां.. रात गई बात गई!
देखो.. घर आ गया है.. दोनों बच्चे बाहर खड़े नानी की राह देख रहे थे!
स्वरचित व मौलिक
चांदनी खटवानी