आज शहर में एक घर दुल्हन की तरह सजा था…घर क्या कोठी कहिए।
कोठी की हर दीवार दरवाजे खिड़की सब जगह फूल और लाईटें लगी थी। घर का कोना कोना रोशन था। तभी गेटके सामने एक लम्बी सी कार आकर रुकी। गाड़ी से एक ख़ूबसूरत हैंडसम नौजवान बाहर आया , ये आयुष एक बडी कंपनी का मालिक है!उसने उतर कर कार की दूसरी तरफ का दरवाजा खोलकर हाथ देकर एक महिलाको बड़े अदब से गाड़ी से उतारा उसकी आंखों पर रुमाल की पट्टी बंधी थी। ये पार्वती है आयुष की माँ!
आयुष एक हाथ से पार्वती का हाथ पकड़े था दूसरा हाथ कंधे से पकड़ कर धीरे धीरे घर की तरफ बढा घर के गेट पर पहुंच कर पार्वती से बोला, “माँ अब आँख से पट्टी खोलिये!”
पार्वती ने पट्टी हटाई और बड़े आश्चर्य से घर देखा और पूछने लगी,”आयुष ये तू मुझे कहां ले आया है, ये किसका घर है?!”
“माँ ये आपका घर है !”आयुष ने माँ को गले लगाते हुये कहा।
“मेरा नही-नही इतना बडा घर मेरा कैसे हो सकता है !!” पार्वती को यकीन ही नहीं हो रहा था।
“मेरा घर तो बस्ती में है एक कमरे वाला तू मेरे साथ मजाक कर रहा है, देख आयुष ऐसा मजाक मुझे पसंद नहीं। चल मुझे मेरे घर ले चल” इतना कह कर पार्वती वापस जाने के लिए मुड़ी!
तभी आयुष ने प्यार से दोनों कंधो को पकड़ कर माँ को गेटके अंदर ले जाने लगा और माँ कें कदमों में सिर झुकाकर कहा,” माँ पहले आप गृहप्रवेश करो ये घर आप के इस बेटे ने दस सालों की मेहनत से आपके लिये बनाया है!”
माँ ने बेटे का माथा चूमा और बेटे का हाथ पकड़ कर गृहप्रवेश किया I
घर का सबसे बड़ा कमरा माँ का था आयुष माँ का हाथ पकड़े हुए पूरा घर दिखा रहा था। पार्वती आश्चर्य मिश्रित खुशी से पूरा घर देख रही थी। कभी घर देखती कभी आयुष को देखती ,उसे अपने बेटे पर बहुत गर्व हो रहा था! उसे वो घर किसी राजमहल से कम नही लग रहा था और वो अपने आप को महारानी महसूस कर रही थी और उसका बेटा उसे राजकुमार लग रहा था।
वैसे सच मे आयुष लंबा,छरहरा, सुंदर,हैंडसम नौजवान था इस महल जैसे घर मे वो राजकुमार की लग रहा था!
आयुष पार्वती को उसके कमरे में बडे से पलंग पर बिठा कर बोला” माँ आप आराम करो मैं रसोईये से कह कर खाने का प्रबन्ध करता हूँ।
पार्वती सिरहाने तकिया लगा कर आराम सें बैठ गई … उसने आंखे बंद कर ली!
“माँ… माँ … माँ कहाँ हो तुम देखो माँ आज मेरे दोस्तों ने मेरी कमीज फाड़ दी अब मैं कल स्कूल क्या पहन कर जाऊँगा,” दस साल के आयुष ने रोते हुए कहा!”
“कोई बात नही बेटा मैं इसे सिल दूंगी तब तुम कल पहन कर चले जाना।” इतना पार्वती ने बेटे को सीने से लगा लिया।
पति के गुजरने के बाद पार्वती के पास गुजारा करने के लिये कोई सहारा नहीं था वो घरों में काम करके और जो समय बचता उसमे सिलाई मशीन से लोगो के कपड़े सिलकर कुछ पैसे जुटा लेती। आयुष अब दस साल का हो गया था। पार्वती उसे अच्छी शिक्षा देकर सम्मानित जिंदगी देना चाहती थी! वह नही चाहती थी कि बड़ा होने पर उसकी जिंदगी अपनी माँ की तरह अभावों से भरी हो !
वो अभी जवान थी और सुंदर भी, उसे घरो में काम करते हुये उस घर के मर्दो की गंदी नजरों को भी सहना पड़ता था। कोई-कोई तो उससे गलत डिमांड भी करते इस वजह से कई घर छोड़ चुकी थी। वह अच्छे चरित्र और संस्कारों वाली महिला थी। उसे अपनी मेहनत से पैसे कमाकर अपने बेटे को उच्च शिक्षा दिलाना हीउसके जीवन का एक मात्र उद्देश्य था।
दुनिया के तानो और गंदी नजरों से परेशान होती वो अपने उस खोली नुमा घर में आकर आंसू बहा लेती। आयुष के पास स्कूल यूनिफार्म की एक ही कमीज थी, पार्वती रोज धोकर सुखा कर सुबह के लिए तैयार कर देती। आज वही कमीज स्कूल के बच्चों ने फाड़ दी थी। वो कमीज सिलती जा रही थी और उस की आंखो से आँसू टपक रहे थे।
स्कूल में बच्चे रोज ही आयुष की गरीबी का मजाक उड़ाते, पर आयुष कभी अपने साथ हुये व्यवहार को माँ से नही बताता था। क्योंकि वह माँ को दुखी नही करना चाहता था।
एक दिन की बात है आयुष गली मे कुछ लड़कों के साथ खेल रहा था, पार्वती किसी के घर से काम निपटा कर आ रही थी! उसने देखा वो लड़के आयुष के साथ बदतमीजी कर रहे थे। वो चुपचाप खड़ी होकर देखती रही, निखिल आयुष की टीशर्ट पकड़ कर खींचता है और जोर से हंसता हुआ कहता है,” आयुष तेरे पास क्या एक ही टीशर्ट है तू एक साल से यही पहन रहा?”
इतने में आरव दाँत निपोरते बोला,” नही है तो मेरे से ही ले ले मैं तो वैसे भी भिखारियों को दे देता हूँ!”
“अरे तुम सब को पता नहीं है, इसकी माँ घरों में झाडू पोछा करती है ये बेचारा गरीब है ना!” शिरिश मुँह टेढ़ा कर के कहता है और सब ही ही कर के हंसने लगे।
फिर सब मिलकर उसे घेरे में ले लेते हैं और कोई उसके बाल पकड़ कर खींचता है कोई पेट मे घूंसा मारता है तो कोई टंगड़ी मारकर गिरा देता है! आयुष सब सहता रहता है। पर माँ के बारे में
आयुष सह नहीं सका और माँ के बारे में सुनकर उसे बहुत गुस्सा आ रहा था। वो चाहता तो उन सब को घूसे मार-मार कर मुँह तोड़ देता वो अमीर घर के लड़कों से ज्यादा ताकत रखता था। पर वो ऐसा नहीं कर सका क्योंकि उसकी माँ ने उसे अपनी कसम दे रखी थी। कि वो किसी से कभी मारपीट नही करेगा! किसी पर हाथ नही उठायेगा।
आयुष चुप चाप घर आ कर औंधे मुंह चारपाई पर पड़ रहा।
कुछ ही देर में पार्वती घर आई उसने आयुष को ऐसे पड़ा देखकर पूछा,”क्या हुआ बेटा ऐसे क्यूँ पड़ा है कुछ हुआ है क्या?”
नही माँ नही तो कुछ तो नही हुआ, आप ऐसा क्यूं पूछ रही हैं?” कहता हुआ आयुष हड़बड़ा कर उठ बैठा!
“नही बस तू ऐसे औंधे मुंह पड़ा था ना इसलिये मुझे लगा कुछ हुआ है क्या?” पार्वती कहते हुए सोच रही थी मेरा बेटा कितना कुछ सहता है पर माँ से कुछ नहीं कहता कि माँ परेशान होगी! ये सोचकर उसकी आंखें आंसूओं से भर गई
वो जल्दी से रसोई में चली गई है और अपने आंसू पोंछने लगी! उसे बहुत कुछ याद आ रहा था। वो अपने अतीत में इस तरह खोई थी कि उसे इस समय कहां है इसका भी भान नही था। उसका चेहरा आंसुओं से तर था। और सामने ना जाने कितनी देर से आयुष खड़ा अपनी माँ को देख रहा था, माँ को रोता देख आयुष परेशान हो उठा उसने माँ …माँ कई बार पुकारा पर माँ तो अपने अतीत से बाहर ही नहीं आ रही थी।
उसने माँ का कंधा पकड़र हिलाया पार्वती एकदम से चौंक गई,
वो माँ के कदमों में बैठ गया और माँ के गोद में सिर रख कर बोला,
“क्या हुआ माँ आप रो क्यों रही हैं मुझसे कोई भूल हो गई क्या?”
“नही बेटा तू तो मेरा सबसे अच्छा और प्यारा बेटा है तुझसे कोई भूल हो ही नही सकती!”
आयुष पार्वती के गालों पर ढुलके आसुओं को पोछते हुए बोला,” माँ अब ये आंसू कभी नही बहेंगे मैंने इन आंसुओं का कर्ज ब्याज सहित चुका दिया है! अब ये आप की आंखो मे कभी नही आने चाहिये!”
पार्वती ने अपने बेटे का माथा चूम लिया।
आयुष ने कोर्निशि बजा लाने( झुक कर सलाम करना) की मुद्रा में खड़े होकर कहा, “माते अब इन आंसुओं से कह दो ये आपकी आंखों में तशरीफ ना लायें और हाँ ऐ आंसुओं अब मैंने “माँ के आंसुओं का हिसाब” कर दिया है! कृपया आप यहाँ से तशरीफ ले जायें आइंदा कभी न आने के लिये! धन्यवाद!”
आयुष की इस तरह से करते देख पार्वती भी खिलखिला कर हंस पड़ी!!!
(स्वरचित)
सुनीता मौर्या “सुप्रिया”