एक हाथ से ताली नहीं बजती – उमा महाजन : Moral Stories in Hindi

‘मैं कोई अनपढ़, गंवार और पिछड़ी पृष्ठभूमि से आने वाली तुम्हारी मोहताज नहीं हूँ कि तुम मुझे किसी के भी सामने डांट-फटकार लगा दो।  तुम्हारा हमेशा ही यही रवैया रहता है। मैं एक पढ़ी-लिखी मॉडर्न पत्नी हूँ, आत्मनिर्भर हूं, सामने वाले का व्यवहार और उचित-अनुचित का अंतर खूब समझती हूँ। इस प्रकार बार-बार‌ मुझे सबके सामने अपमानित करके तुम मेरे स्वाभिमान को ठेस नहीं पहुंचा सकते ।’ 

   रुचि ने डायनिंग टेबल पर डिनर के दौरान सभी पारिवारिक सदस्यों के समक्ष डांटते हुए अपने पति विवेक को उसकी बात पूरी होने से पहले ही तपाक से जवाब दिया। 

      ‘पहले तुम अपने व्यवहार को संयमित करो। अपनी ही बात के विपरीत जाते हुए अब क्या तुम सबके सामने मेरा अपमान नहीं कर रही हो ? इसका तो यही अर्थ हुआ न कि तुम मॉडर्न हो, पढ़ी-लिखी हो,किंतु मैं अनपढ़-गंवार हूं और मुझे ही विवेक-अविवेक का ज्ञान नहीं है। तुम मेरी पत्नी हो,पत्नी होने तक ही सीमित रहो।’

      रुचि पलटकर कुछ और कहती कि बेटे-बहू के विवाद को अनुचित मोड़ लेते देखकर अब ममता जी रुक न पाईं। अब तक तो बहू-बेटे के मध्य हस्तक्षेप न करने के शिष्टाचार के वशीभूत वे मूकदर्शक बनी सब कुछ सुन रही थीं, किंतु अब चुप न रह सकीं, 

      ‘बच्चो !  कभी भी ‘एक हाथ से ताली नहीं बजती।’ दरअसल तुम दोनों ही एक-दूसरे के दोषी हो। मार्डन बनने के लिए सर्वप्रथम तुम दोनों को अपने-अपने अहं का त्याग करना होगा। अतः: शिक्षा के नाम पर तर्क-कुतर्क करते हुए नहीं, अपितु मतभेदों में भी सामंजस्य बिठाते हुए आगे बढ़ने का प्रयास करो। अभी तो तुम दोनों ने अपने वैवाहिक जीवन की यात्रा में कदम मात्र ही रखा है और उचित अनुचित का ध्यान न रखते हुए तुम दोनों के ही‌ कदम डगमगाने लगे हैं। और हां, ‘मॉडर्न’  बनने के लिए सबसे पहले अहंवादी सोच का परित्याग आवश्यक है क्योंकि हमारी सोच और व्यवहार ही हमें माॅडर्न अथवा बैकवर्ड बनाते हैं।

 रुचि और विवेक दोनों निःशब्द हो चुके थे, लेकिन तभी एकाएक दोनों एक साथ मां के चरणों में झुक गये ।

उमा महाजन 

कपूरथला 

पंजाब।

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