इक दूजे की रजामंदी – मुकुन्द लाल

  ” हे ईश्वर यह क्या हो गया?… अब मेरी बेटी चित्रा का क्या होगा?” घर में प्रवेश करते ही सुनील ने कहा। “

 ” इतना घबराये हुए क्यों हैं? … क्या हो गया?… “

 ” किस्मत फूट गई… “

 ” कुछ साफ-साफ बोलिए… “

 ” होने वाले दामाद का बांया हाथ कट गया। “

  दो माह पहले ही नरेश के पुत्र राजन और सुनील की पुत्री चित्रा की मंगनी धूम-धाम से संपन्न हुई थी।

  एक दिन राजन कारखाना से ड्यूटी करके लौट रहा था, उसी क्रम में एक गाड़ी से उसकी बाइक की टक्कर हो गई। वह दुर्घटनाग्रस्त हो गया। उसे आनन-फानन में हौस्पीटल में भर्ती करवाया गया। उसकी जान तो बच गई लेकिन उसके बांँये हाथ की कलाई से हथेली तक का हिस्सा काट देना पङा उसकी जान बचाने के लिए।

  सुनील की पत्नी ने कहा, ” हम तो बेटीवाले हैं, इसका खामियाजा हमलोगों को भुगतना ही पङेगा। सारा लेन-देन हो गया, शादी की तिथि भी निश्चित हो चुकी है, सारी तैयारियाँ भी हो गयी, गहने-जेवर की खरीदारी भी हो गई, लेकिन होने वाला दामाद ही दिव्यांग हो गया।

 ” हमलोग गंभीर परिस्थिति में फंँस गये हैं, बिना सोचे समझे आगे कदम बढ़ाना, अपनी बेटी की जिन्दगी के साथ खिलवाड़ करना होगा” सुनील ने अवसाद भरे स्वर में कहा।

  आपसी बात-चीत और इस मुद्दे पर चिंतन-मनन करने के दौरान सुनील की पत्नी ने कहा था कि मंगनी(रिंग-सिरेमनी) के बाद दोनों घंटों आपस में बतियाते रहते थे। कभी-कभी दोनों के हंँसने की आवाजें सुनाई पड़ती थी।

  क्षण-भर रुककर उसकी पत्नी ने सुनील से धीमी आवाज में कहा, ” उनके संवाद यदा-कदा प्यार से सराबोर होते थे। इससे पता चलता है कि दोनों में अंतरंग संबंध थे।

  यह समस्या उनके लिए गले की हड्डी बन गई थी 

  सुनील जब राजन के पिताजी से मिला तब उसने विनम्रतापूर्वक कहा,” इसमें मेरा या मेरे पुत्र का क्या दोष है?”

 ” आपका दोष नहीं है, लेकिन मेरी बेटी की जिन्दगी का सवाल है… सोचिए!”


   ” तो क्या चाहते हैं आप?”

  ” मैं यह संबंध तोड़ना चाहता हूँ।”

  ” आपकी मर्जी!… किन्तु यह इतना आसान भी नहीं होगा। इस रिश्ते को खत्म करने में बहुत सारी कठिइयांँआएगी। मंगनी का रस्म कोई गुड्डों-गुङियों का खेल नहीं है “उसने बेबाकी से कहा।

 ” तो आप चाहते हैं कि मेरी बेटी एक अपंग लड़के के साथ शादी करके जिन्दगी साथ निभाने की शपथ ले ले”उसने तल्खी के साथ कहा। 

 ” सबसे पहले आपको अपनी पुत्री से इस संबंध में राय लेनी चाहिए कि वह क्या चाहती है?… आपकी बेटी सुशिक्षित, सुसंस्कृत और काफ़ी समझदार है। यह कैसे संभव होगा कि जिस लड़की की शादी होने वाली है, उससे बिना राय लिए मजबूती से जुड़े हुए रिश्ते को धागे की तरह तोड़ दीजिएगा… आप किस युग में जी रहे हैं भाई साहब! “

  अंत में सर्वसम्मति से लड़की और लड़का पक्ष के अभिभावकों व रिश्तेदारों ने फैसला लिया कि लड़की और लड़के को इस मुद्दे पर मिलकर बातचीत करने का अवसर दिया जाय कि वे क्या चाहते हैं। 

             राजन और चित्रा ने इस कठिन मुद्दे पर स्वार्थ से परे हटकर गहनता से विचार-विमर्श हर दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर 

किया। 

  इस क्रम में चित्रा ने कहा, ” हम लड़की वाले हैं, इसलिए लड़के के पक्ष की बातें व सुझाव दबाव में स्वीकार कर लेना मेरे स्वाभिमान के खिलाफ है लेकिन मानवता, त्याग और आपसी लगाव के परिप्रेक्ष्य में विचार करने पर इस समस्या का समाधान संभव मालूम पड़ता है” 

  राजन चित्रा की बातें मौन होकर सुनता रहा। 

  उसने राजन के विवशता से युक्त चेहरे को देखते हुए आगे कहा,” मेरी अंतरात्मा से एक आवाज आ रही है कि अगर शादी हो जाने के दो माह बाद यह घटना घटती तो क्या मैं अपने पति को दारुण दुख से पीड़ित अवस्था में घुट-घुटकर जीने के लिए छोड़ देती?… उनसे अपना पिंड छुड़ा लेती? नहीं न!… दुर्घटना किसी के साथ भी हो सकती है।” 


 उसके सकारात्मक विचारों को सुनकर उसका चेहरा हर्ष से दमकने लगा। 

चित्रा ने पुनः कहा,” हमलोग आपस में विचारों और संवादों के माध्यम से इतना घुल-मिल गये हैं कि किसी दूसरे का अब हाथ थामना, मेरी आत्मा कबूल नहीं करेगी। “

 ” ऐसा तुम क्यों कहती हो चित्रा? तुम मेरे कारण अपनी जिन्दगी को क्यों बदरंग करना चाहती हो?… अपने बारे में निर्णय लेने के लिए तुम स्वतंत्र हो, एक अपंग आदमी तुमको क्या सुख दे सकता है? मेरी किस्मत में अपंग होना लिखा हुआ था सो हो गया। “

 ” अपंगता की चिंता मत करो राजन, अगर तुम्हारा एक हाथ नाकाम है तो उसकी जगह मेरा दोनों हाथ हर वक्त सहयोग करने के लिए हाजिर रहेगा “उसने उसको विश्वास दिलाते हुए कहा। 

  कुछ मिनट के लिए वातावरण में सन्नाटा छा गया था, जिसको भंग करते हुए चित्रा ने आगे कहा,” प्रेम अपंग नहीं होता है राजन!… यह सागर की तरह विशाल और विस्तृत होता है, उसमें अपंगता जैसी तुच्छ बातों के लिए कोई जगह नहीं होती है।” 

  “मैं क्या कहूंँ, मैं तो किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में पहुंँच गया हू।” 

  ” इसमें अब कहने सुनने की अब कोई बात नहीं रह गई है। तुम्हारे जीवन पर मेरा भी कुछ हक है। मंगनी हो जाने के बाद मेरे हृदय रूपी मंदिर  में पति के रूप में तुम्हारा स्थान सुरक्षित है ” उसने धीमी आवाज में कहा। 

  उसने राजन के साथ जिन्दगी भर आपसी रजामंदी से साथ निभाने का निर्णय ले लिय।

  जब चित्रा ने राजन से कहा कि मैं अपने और तुम्हारे पापा-मम्मी व रिश्तेदारों के समक्ष समस्या के निदान कर लेने का निर्णय सुनाने जा रही हूँ, तब राजन के मुँह से अनायास ही निकल गया, ” तुम्हारी जैसी बेटियों के कारण ही महान परम्पराओं को समेटे हुए इस देश की सभ्यता, संस्कृति, गरिमा और मान-मर्यादा अक्षुण्ण है।” 

     स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित 

                 मुकुन्द लाल 

               हजारीबाग (झारखंड) 

                 12-07-2022

 

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