एक भूल …(भाग -3) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral Stories in Hindi

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पता नहीं किस ब्रत, उपवास, अनुष्ठान या यज्ञ का प्रभाव था या कुलदेवी का आशीर्वाद फलीभूत हुआ कि महाराज की आकांक्षाओं के कल्पतरु में ऋतुराज का आगमन हुआ।

प्रजा के कामना – कानन में पुष्पों का सौरभ महकने लगा तथा महारानी के नेत्रों में भी मातृत्व का गौरव लहराने लगा।

पूरे राज्य और राजमहल में खुशी और प्रसन्नता की मन्दाकिनी बहने लगी।

प्रसूति समय की उंगलियों पर गणना की जाने लगी। प्रतीक्षा के क्षण सभी के लिये युगों के समान प्रतीत हो रहे थे।

सभी उस क्षण की प्रतीक्षा में प्यास से व्याकुल चातक से हो रहे थे। सबके मन में एक ही अभिलाषा थी कि  यथाशीघ्र  वह क्षण आ जाए जब वह अपने राजकुमार या राजकुमारी के दर्शन कर सकें।

महारानी प्रसूति कक्ष में पीड़ा और वेदना से  तड़प रही थीं और  महाराज कुलदेवी के समक्ष करबद्ध नेत्र बन्द किये बैठे थे।

अपने पीछे पदचाप सुनकर बिना पीछे मुड़े ही बोले – ” महारानी सकुशल हैं ना।”

” जी महाराज। महारानी और राजकुमार दोनों  सकुशल हैं।” महाराज अखिलेन्द्र कुलदेवी के चरणों में झुक गये। उनके नेत्रों से निकले अश्रुओं ने देवी मॉ को अर्घ्य अर्पित कर दिया।

प्रसूति कक्ष के बाहर महाराज कुलगुरू के साथ खड़े थे। महारानी की सखी समान दासी सुकीर्ति ने जब हॅसते हुये नव किसलय से सुकुमार राजकुमार को महाराज के  अंक में देना चाहा तो वह सहमकर पीछे हट गये –

” क्या हुआ महाराज? अपने आत्मज को अपने अंक में लेकर अपनी चिर काल से अभीप्सित अभिलाषा को पूर्ण कीजिये।”

” नहीं सुकीर्ति, शस्त्रों का संचालन करने वाले मेरे कठोर हाथों से इसकी सुकुमार त्वचा घायल होकर क्षत – विक्षत हो जायेगी।” यह कहते हुये धीरे से शिशु के सिर का हल्का सा स्पर्श किया उन्होंने साथ ही आह्लाद से छलकते हृदय का कुछ अंश नेत्रों में भी छलक आया। कुलगुरू ने शिशु को आशीर्वाद दिया।

महाराज और महारानी की प्रसन्नता का पारावार न रहा। राजमहल और प्रजा आनन्द सागर में आकण्ठ डूब गये। उत्सव, राग – रंग में सभी बावरे हो रहे थे। राज्य में पूरी प्रजा को एक वर्ष के लिये राजकीय कर और लगान मुक्त किये जाने की घोषणा कर दी गई। प्रजा के लिये सात दिन तक राज्य की ओर से भोज की व्यवस्था की गई।

सभी मग्न थे लेकिन पूरे राज्य में एक व्यक्ति ऐसा था जो चिन्ता और दुख से व्याकुल था। यहॉ तक कि वह अस्वस्थता का बहाना करके किसी उत्सव में भी सम्मिलित नहीं हुआ था।

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एक भूल …(भाग -4) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral Stories in Hindi

बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर

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