अब आगे •••••••
महारानी के समक्ष विकट परिस्थिति अट्टहास करने लगी। वह मौन हो गई और उनके नेत्रों से अश्रु झरने लगे। उनकी स्थिति देखकर महाराज भी द्रवित हो गये –
” विश्वास करिये और हृदय की ऑखों से देखिये कि सन्दलपुर से अधिक प्रेम और सम्मान आपकी पुत्री को अन्य कहीं नहीं मिल पायेगा। अपनी पुत्री महाराज और राजकुमार के मृत प्राणों की संजीवनी हैं। यदि यह विवाह न हुआ तो अनर्थ हो जायेगा।
यदि हम पहले ही इस विवाह के लिये अपनी असहमति व्यक्त कर देते तो शायद वे लोग विधि की विडम्बना समझकर स्वीकार कर लेते लेकिन उस समय आपने ही कहा था कि सब ठीक हो जायेगा। इसी कारण आपने राजकुमारी को भी सत्य से अवगत नहीं कराया था।”
” मुझे ज्ञात नहीं था कि राजकुमार के स्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं आयेगा।”
” जब आगामी काल का हमें ज्ञान ही नहीं है तो जो रहा है होने दीजिये। समझ लीजिये कि यही हमारी पुत्री का भाग्य है जिसे परिवर्तित करने में हम असमर्थ हैं।”
” परन्तु विवाह के समय भी यह रहस्य क्या रहस्य रह पायेगा? “
” हॉ रह पायेगा क्योंकि राजकुमार स्वयं नहीं चाहेंगे कि किसी को भी उनके वास्तविक स्वरूप के दर्शन हों। राजकुमार मेरे और तुम्हारे उन्हीं अनुचरों के सम्पर्क में रहेंगे जिन्हें हमारे रहस्य प्राणों से अधिक प्रिय हैं। वैद्यराज राजकुमार के लिये ऐसे लेप तैयार कर देंगे
जिससे उनकी त्वचा का वर्ण कुछ दिनों के लिये गौरवर्ण हो जायेगा।”
विवाह की तिथि के सम्बन्ध में ज्ञात होने पर जहॉ एक ओर राजकुमारी मोहना माता, पिता और स्वजनों से बिछड़ने की कल्पना से दुखी हुई वहीं राजकुमार से मिलन की कल्पना ने उसके मन को रसासिक्त कर दिया। उसका हृदय प्रसन्नता से मिलन और संयोग के गीत गाने लगा।
विवाह के समय महाराज देवकुमार की अतिरिक्त सतर्कता के कारण मणि पुष्पक को स्वर्णाभूषणों, पुष्पों और बहुमूल्य परिधानों से इस तरह सुसज्जित कर दिया गया कि राजकुमार के अप्रतिम शारीरिक सौष्ठव के दर्शन तो हुये परन्तु
उनके मुख के दर्शन किसी को नहीं हुये। महारानी यशोधरा ने एक पल के लिये भी राजकुमार को अकेला नहीं छोड़ा। छाया की तरह महारानी के साथ रहने के कारण कोई भी राजकुमार के समीप न आ सका। राजकुमारी की सखियॉ राजकुमार की झलक तक न देख सकी।
महारानी को देखकर राजकुमार के नेत्र अपनी माता की स्मृति में सजल हो उठे। महारानी ने भी अपने वात्सल्य और ममत्व से राजकुमार को इतना स्नेह दिया कि वह अभिभूत हो गयो।
कोहबर में भी जब महारानी ने राजकुमार का साथ न छोड़ा तो राजकुमारी की एक चंचल सखी बोल पड़ी -” महारानी माता आप तो राजकुमार के अंगरक्षकों से अधिक कर्तव्य परायण हैं। कुछ देर तो हम सखियों को भी राजकुमार से हॅसी – परिहास कर लेने दीजिये।”
” मैं जानती हूॅ कि हमारे राजकुमार बहुत सरल और लज्जावान हैं और तुम सब चपल चंचल बालिकायें उन्हें अपनी शरारतों से तंग करोगी। अब वह भी मेरे पुत्र समान हैं, इसलिये उनका ख्याल रखना मेरा कर्तव्य है। ” महारानी ने कृत्रिम मुस्कराहट बिखेर दी।
इसके बाद भी सखियों के चंचल परिहास का राजकुमार उचित उत्तर देते रहे और सखियों से एक गीत के लिये आग्रह करने पर राजकुमार के मधुर कंठ और वीणा वादन ने तो जैसे पूरे अन्त:पुर में प्रकाश कर दिया।
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एक भूल …(भाग-11) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral Stories in Hindi
बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर