एक औरत की जिम्मेदारियां कभी खत्म नहीं होती – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

क्या मम्मी इतनी देर हो गई अभी तक नाश्ता नहीं बना क्या,अरे बेटा बना रही हूं आज जरा उठने में देर हो गई रात में नींद नहीं आई थी ,बस सबको सबकुछ समय पर ही चाहिए जरा से आगे पीछे हो जाए तो सब सुनाने लगेंगे क्या कर रही थी अभी तक ये काम नहीं हुआ वो काम नहीं हुआ। जैसे पूरे घर की जिम्मेदारी उठाने का जिम्मा हमने ही लिया है । कोई भी जरा सी मदद नहीं करता ।कितना करूं मैं अकेले ।अरे संगीता जरा सुनो मेरे टूथब्रश में ज़रा पेस्ट लगा कर दें देना तो ,अब तुम ये भी काम नहीं कर सकते क्या ।

कभी तौलिया दे दो , कभी अंडरवियर दे दो कुछ काम तुम भी कर लिया करो अपने आप संगीता बोली पति जतिन से ।अरे देखो घर के कामों की और घर की जिम्मेदारी तो पत्नी की ही होती है ‌‌। हमसे नहीं होता है ये सब ।मैं तो भी रिटायर हूं अब सुकून से जिंदगी बिताना चाहता हूं बहुत कर लिया काम धाम। हां हां सुकून तो बस तुम लोगों को ही चाहिए क्योंकि तुम तो रिटायर हो और हम लोग तो कभी रिटायर होते नहीं है, न कभी थ कते हैं ,न हमारा मन उबता है काम करते करते । जिम्मेदारी यों में तो हम औरतें इस क़दर जकड़े रहते हैं कि सांस लेने की भी फुर्सत नहीं मिलती।हमारी  भी उम्र हो रही है लेकिन नहीं जिम्मेदारी बस जिम्मेदारी।

                       दिनभर बस यही हाल था संगीता का , चकरघिन्नी बनी घूमती रहती है।ठंड है तो पतिदेव धूप में बैठे हैं अब वही पर चाय की प्याली भी चाहिए और नाश्ता भी ।हमारी क्या मजाल कि थोड़ी देर भी धूप सेंक लें।रात है तो रजाई में बैठे हैं वहीं खाना चाहिए और गर्मी है तो एसी में खाना पीना चाहिए भाई गर्मी  बहुत है ठीक है हम लोगों को कहां गर्मी लगती है ।खा पीकर बर्तन वहीं कमरे में रखे हैं क्योंकि बर्तन उठाने का काम तो पत्नी का है न ।सुबह से शाम तक सबकी जिम्मेदारी उठाते उठाते संगीता थ क जाती है ।

सोचती है सबकुछ देखना सुनना हमारी जिम्मेदारी है तो कभी मेरी भी जिम्मेदारी कोई समझता है  कभी कोई मेरा ख्याल रखता है ।मैं भी थोड़ा सुकून की जिंदगी जी पाऊं ये ख्याल है किसी को। जबसे इस घर में ब्याह कर आई हूं बस जिम्मेदारी ही तो निभा रही हू । ससुराल आते ही पति के साथ सांस ससुर की जिम्मेदारी ।दो जिठानी थी मेरे आते ही सांस ससुर को मेरे हवाले करके अपनी जिम्मेदारी से किनारा कर लिया ।अब ये तुम्हारी जिम्मेदारी है संगीता हम लोगों ने बहुत कर लिया।

                   विचारों का जो वेग मस्तिष्क में चला तो बस चलता ही गया। शादी के बाद एक लड़की के ससुराल आते ही सारी जिम्मेदारी उसके सिर डाल दी जाती है।घर की बच्चों की उनका पालन पोषण पढ़ाई लिखाई फिर नौकरी फिर शादी, शादी हां बेटे की शादी करके जिम्मेदारी से मुक्त हो जाऊंगी।हर नारी की यही सोच रहती है पर क्या मुक्त हो पाती है। तभी बेटे आकाश ने आवाज लगाई मम्मी मेरी शर्ट प्रेस कर दी की नहीं मुझे देर हो रही है। हां हां कर दी संगीता मन ही मन बड़बड़ाने लगी। सोचा था बेटे की शादी हो जायेगी तो

बेटे की जिम्मेदारी से तो कम से कम मुक्त हो जाऊंगी।पर नहीं वो महारानी अपनी कुछ जिम्मेदारी उठाती ही नहीं है बेटे की ।और बेटा वो भी हर काम मम्मी से ही कहता है ।ये नहीं कि बीबी से बोले कि जाओ ज़रा चाय नाश्ता बना दो मम्मी को भी दे दो एक कप चाय।जब से बहू रानी आई है यही देख रही है कि सब जिम्मेदारी मम्मी ही उठाती है तो मम्मी ही करती रहेगी खुद नहीं करेगी कुछ।और जिस हक़ से बेटा मम्मी से कह देगा काम के लिए उस हक़ से बीबी से तो नहीं कह सकता न अभी बीबी आंख दिखाएंगी तो सब भूल जाएगा काम धाम कहना।

                 अभी बहू की डिलीवरी हुई तो बेटा बहू को लेकर डिलिवरी के दो महीने पहले घर आ गया लेकर । संगीता ने भी सोचा कि चलो भाई खुशी का माहौल है तो जी जान से संगीता ने ध्यान रखा।सारी जिम्मेदारी के साथ ये एक बड़ा सा अलग से जिम्मेदारी आ गई है ।सब हंसी खुशी से निपटाया लेकिन जब डिलिवरी हो गई तो बहू बच्चे को लेकर मायके चली गई और आकाश से बोला कि तुम्हारी मम्मी ठीक से हमारा और बच्चे की जिम्मेदारी नहीं उठा पा रही है।

सुनकर संगीता को बहुत दुख हुआ कि अच्छा अभी दो महीने से तुम्हारी तुम्हारे पति की और पूरे घर की जिम्मेदारी उठा रही थी उसका क्या। संगीता सोचने लगी कितनी आसानी से गलत इल्ज़ाम लगा कर चले जाते हैं कि ठीक से जिम्मेदारी नहीं उठा रही हूं ।और यहां जो आकाश का चाय नाश्ता  खाना कपड़ा सब कर रही है उसका क्या वो तो हमारा काम है क्योंकि वो हमारा बेटा है।

             और दोपहर को  खाना निपटते निपटते चार बज जाते हैं उसके बाद थोड़ा रसोई समेटा और फिर थोड़ा सोचा कि लेट जाऊं थोड़ी देर तभी बेटे की फरमाइश आ गई कि मम्मी चाय बना दो ।सोचता है कोई मेरे बारे में कि मुझे भी आराम की जरूरत है। बाकी सबका ख्याल रखो लेकिन तुम्हारा कोई ख्याल नहीं रखेगा।

             ये कैसे र्शट आलमारी से निकाल रहे हैं आप एक र्शट खींच कर निकाला उसके साथ साथ चार र्शट और निकल कर गिर पड़ी सबकी प्रेस खराब हो गई संगीता ने पति जतिन से कहा,तो ठीक से रखो न कपड़े आलमारी में अब ये भी नहीं कर सकती क्या । कपड़े ठीक से रखे रहें तो निकालने में आसानी रहे तुम ठीक से रखती नहीं हो । नहीं तो  तुम ही निकाल कर दो जतिन ने संगीता से कहा । हां हां सब जिम्मेदारी मेरी ही तो है आप लोगों की कहा कोई जिम्मेदारी है ।ये हर घर का किस्सा है ।

                 सच बताएं एक आदमी तो रिटायर मेट के बाद जिम्मेदारी से मुक्त हो जाता है  और वो ये सोचता है कि मैंने बहुत काम कर लिया अब तो मैं बस आराम करूंगा और अपनी सेवा कराउंगा। लेकिन एक औरत अपनी जिम्मेदारी से कभी मुक्त नहीं हो पाती ।बस समय के हिसाब से उसकी जिम्मेदारी यों के रूप बदल जाते हैं । ईश्वर ने धरती पर नारियों को भेजा ही शायद इसी लिए है कि जिम्मेदारी यों को वहन करों और ताउम्र जिम्मेदारी यों के बंधन में जकड़ी रहो।

   क्यों बहनों क्या मेरी बात सही है ये हमारी सभी बहनों को साथ होता है । कुछ ग़लत तो नहीं लिखा है न ‌‌। धन्यवाद

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

19 अक्टूबर

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