एहसास – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

अस्पताल के एक अच्छे से कमरे में सामने शून्य की ओर निहारती श्रुति आसपास कौन है इन सब से बेख़बर बस बिना पलके झपकाए उस शख़्स को देखे जा रही थी पर चेहरे पर कोई भी भाव नहीं था कोई देख ले तो यही कहेगा वो मर चुकी हैं पर आँखें खुली हुई है।

सामने खड़ा शख़्स श्रुति को इस हाल में देख कर परेशान ज़रूर हो रहा था पर सबके सामने श्रुति से कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था।

तभी नर्स ने सबको वहाँ से बाहर जाने को कहा.. सब बारी बारी वहाँ से निकलने लगे आख़िर में उस शख़्स रितेश ने धीरे से नर्स से पूछा,” क्या मैं दो मिनट इनसे बात कर सकता हूँ?” 

नर्स ने घूरते हुए रितेश को देखा और नहीं करने ही जा रही थी कि रितेश ने हाथ जोड़ते हुए प्लीज़ कहा।

नर्स सिर झुका कर हाँ कह कर बाहर आ गई।

“ ये क्या हाल बना लिया है तुमने…कभी सोचा है मेरा क्या होगा…. तुम्हारे ही विश्वास और प्यार से मैं हर मुक़ाम हासिल करता जा रहा हूँ और अब जब तुम्हारी सबसे बड़ी इच्छा पूरी करने जा रहा हूँ… तुम यहाँ इस हाल में पड़ी हो….माना मैं बहुत व्यस्त हो गया था नहीं कर पाया तुमसे बात पर इसका मतलब ये तो नहीं कि जो दुनिया कह रही है वो सच ही हो…पता है ये कलंक …तुम क्या कोई भी बर्दाश्त नहीं कर सकता पर खुद का ऐसा हाल कर लेना ये कहाँ तक सही है…. जीजू…कुहू और काव्य का ही सोच लिया होता।” कह कर वो रोने लगा

“ मामा अब आप यहाँ से चलो…..पापा को बहुत मुश्किल से मनाया है आपको यहाँ मम्मी से मिलने देने के लिए।” काव्य धीरे से रितेश के पास आ कर बोला

“बहुत अच्छा किया काव्य जो तुमने मुझे खबर कर दिया नहीं तो मैं अपनी ही गुरू को भूलकर अपने कैरियर बनाने पर लगा हुआ था ।” रितेश बोल कर अपने आँसू पोंछने लगा

“ मामा मम्मा ने हमसे कह रखा था अगर कभी भी मुझे कुछ हो जाए तो रितेश को कैसे भी खबर कर देना मरने से पहले उसे एक बार देखना चाहूँगी… हमें खुद समझ नहीं आ रहा है मम्मा इतनी क्यों घुट रही थी….सामने सब कुछ ठीक दिखता था पर उसके अंदर बहुत कुछ चलता रहता था जो हम दोनों भाई-बहन कभी समझ ही नहीं पाए…वैसे मम्मा एक डायरी लिखती हैं उसके पहले पन्ने पर लिखा हुआ है रितेश के लिए.. मैं आपको वो डायरी दे दूँगा… बस भगवान से प्रार्थना करिए मम्मा ठीक हो जाए …. कुहू का तो रो रोकर बुरा हाल है।” काव्य ने रोते हुए कहा 

रितेश उस पन्द्रह साल के लड़के के मुँह से ये सब सुन कर दंग था सामने इसकी मम्मा की हालत समझ से बाहर थी ना वो कुछ बोलती ना कुछ रिएक्ट करती पर एक बात हुई जब रितेश आया उसकी आँखों में एक अलग सी चमक दिखी ।

अस्पताल से निकल कर रितेश अपने होटल चला गया काव्य ने दूसरे दिन उसे वो डायरी दे दी।

रितेश जल्दी से बैठ कर डायरी के पन्ने पलटने लगा…

प्रिय रितेश,

जब से तुमसे मिली…मुझे अपनीं बेरंग सी ज़िन्दगी में रंग भरना आ गया था नहीं तो वही घर गृहस्थी और बच्चों के पीछे जीवन एक ही ढर्रे पर चल रही थी… मुझे आज भी याद है हमारे सामने वाले खाली घर में तुम जब रहने आए … तब पता चला ये तुम्हारे अंकल का घर है जो खुद विदेश जाकर बस गए और ये घर खाली पड़ा रहता था तुम अपनी  कॉलेज की पढ़ाई करने यहाँ आए थे और तुम्हारी रसोई से हमेशा अच्छी ख़ुशबू मुझे आकर्षित करती रहती थी बहुत बार बाज़ार जाते वक्त या बच्चों को स्कूल लाने छोड़ने के दौरान तुमसे नज़र टकरा जाती

तुम मुझे देख मुस्कुरा देते थे और मैं बस देख कर आगे निकल जाती… सबने यही कह रखा था जवान लड़का है दूर ही रहना…और मेरी दूरी से तुम्हारे चेहरे के भाव बता देते तुम्हें वो अच्छा नहीं लगता था… एक दिन तुम हमारे घर नमक माँगने आ गए…. मुझे बहुत आश्चर्य हुआ फिर तुमने कहा कल ही ख़त्म हो गया पढ़ाई करते करते नीचे जाकर लाने का ध्यान ही नहीं रहा अब सुबह कहाँ मिलेगा इसलिए आपसे माँगने आ गया अगर दे देगी तो अच्छा रहता मुझे खाना बनाकर कॉलेज भी जाना है ।

“ तुम खुद खाना बनाते हो?” मैं आश्चर्य से पूछी 

“हाँ दीदी… (पहली बार तुमने मेरे लिए ये शब्द कहे जिसे सुनकर मैं ये भी भूल गई कि तुमसे तो मैं अनजान जवान लड़का समझ बात ही नहीं करती थी) मुझे कुकिंग करना बहुत पसंद है।” तुमने कहा था 

“ वाह पहली बार देख रही हूँ किसी लड़के को कुकिंग का शौक़ है तभी रसोई से अच्छी ख़ुशबू आती रहती है ।” 

“कभी अपने हाथों का बना खाना खिलाऊँगा आपको फिर स्वाद बताना ।”तुमने कहा और मैंने तुम्हारे हाथ में नमक की कटोरी पकड़ा दी

मुझे तब जरा भी अंदाज़ा नहीं था पीछे विवेक खड़े थे… तुम्हारे जाते ही उन्होंने मुझे जम कर खरी खोटी सुनाई… तब पहली बार कलंक लगाने का काम कर रही हो का तोहमत लगा था…

एक दिन तो हद हो गई तुम कुछ बना रहे थे चाकू से तुम्हारी उँगली कट ग……तुम डिटॉल माँगने आ गए मैं जल्दी से कॉटन डिटॉल लेकर तुम्हारी उँगली पकड़ कर लगाते हुए बोली..ध्यान से किया करो…तुमने हँसते हुए कहा रसोई में काम करते हुए ये छोटी मोटी घटना तो होती रहती है कहकर तुम और मैं क्या हँसे सामने खुले दरवाज़े से गुजरते पड़ोसियों ने भी अजीब सी नज़रों से हमें देखना शुरू कर दिया…उसके बाद मैंने नोटिस किया तुम अब कम बात करने लगे थे उसके बाद कॉलेज का फ़ाइनल एग्ज़ाम देते हुए तुम जो गए

फिर लौट कर नहीं आए… ना कभी मुझसे बात किए… दीदी कहते थे ना फिर भी कभी तुम्हारा मन नहीं किया बात ही कर लो…तुम्हें पता है तुम्हारी रेसिपी किसी बुक में या अख़बार में जब भी आती मैं कटिंग रखती जाती थी ये सोच कर मेरा छोटा भाई कितनी तरक़्क़ी कर रहा है…जी करता था तुम सामने आओ तो ढेर सारा आशीर्वाद दूँ पर तुम्हारे दूर जाने से और लोगों के तानों से मैं आहत होती गई सबको लगता लड़का श्रुति को बेवक़ूफ़ बना कर चला गया…हमारे बीच ऐसा तो कुछ भी नहीं था पर लोगों की नज़रों ने जो देखा समझा …

.मैं कभी उसपर सफ़ाई देना ही नहीं चाही … हाँ मेरे बच्चों के लिए तुम मामा थे और रहोगे भी जब भी लोकल टीवी पर कोई कुकिंग शो होता और तुम होते तो दोनों मुझे बुला कर दिखाते… बहुत बार सोची रितेश ऐसे क्यों चला गया बिना मुझसे मिले… आज भी इस सवाल का जवाब ढूँढ रही हूँ एक बार मिलकर बताने आ जाना भाई ….

ढेर सारा प्यार 

तुम्हारी दीदी

रितेश की आँखों से झर-झर आँसू बह रहे थे… वो किस मुँह से कहता कि लोगों की उन बातों को सुनकर ही वो आप से दूर चला गया था ताकि आप पर कोई उँगली ना उठाएँ…और अब आपकी हालत ऐसी है कि चाहकर भी कुछ बोल नहीं सकता आप समझेंगी नहीं… कल मेरा एक बड़े चैनल पर इंटरव्यू है

काश आप उसे देख पाती मुझे सुन सकती। खुद में बुदबुदाते हुए रितेश कल अपने इंटरव्यू के लिए दूसरे शहर जाने के लिए निकल गया जाने से पहले उसने काव्य को फ़ोन कर अपना एक काम करने की विनती की ।

दूसरे दिन शाम के सात बजे अस्पताल के उस कमरे में विज़िटिंग आउर के दौरान  काव्य ,कुहू और विवेक श्रुति के कमरे में मौजूद थे… टीवी ऑन था और सामने रितेश का इंटरव्यू चल रहा था… बहुत सारे सवाल के बाद एक सवाल एंकर ने पूछा,” कहते हैं सभी की सफलता के पीछे एक स्त्री का हाथ होता है आपकी सफलता के पीछे?”

“ सही कहा मेरी सफलता के पीछे भी एक स्त्री का ही हाथ है जिनसे मैं बहुत प्यार करता हूँ..  इज़्ज़त करता हूँ…जब भी मुझे किसी चीज़ की ज़रूरत होती थी वो सामने होती थी…आज मैं जो कुछ भी हूँ उनकी ही प्रेरणा से नहीं तो हमारे घर में लड़कों को खाना बनाना नाक कटाने वाली बात होती है…

पर उन्होंने हमेशा कहा जिस काम को करने का दिल करें वही करना चाहिए और यक़ीनन उसमें सफलता मिलती हैं…. सुन रही हो ना आप श्रुति दी देखो तुम्हारा  भाई आज कहाँ पहुँच गया जहाँ तुम उसे देखना चाहती थी…आप मेरी दीदी ,गुरू ,माँ सब हो…माना मेरा आपका रिश्ता कोई खून का नहीं है फिर भी एक रिश्ता है हमारे बीच दिल का… तुम जल्दी से ठीक हो जाओ दी मुझे आपका आशीर्वाद चाहिए… मुझे अभी और आगे जाना है आसमान की बुलंदियों को छूना है पर आपके आशीर्वाद के बिना बिल्कुल नहीं।” कहते कहते रितेश रोने लगा और शो कट हो गया 

इधर अस्पताल में अपना नाम सुन कर श्रुति सामने टीवी पर देखती है उधर रितेश को देखते ही उसकी आँखों से आँसू बहने लगे…वो कुछ बोलना चाह रही थी पर आवाज़ गले से निकल ही नहीं रही थी…

“ मम्मा क्या हुआ तुम्हें कुछ बोलना चाहती हो तो बोलो…।” कुहू उसकी ये हालत देख रोने लगी

“ रिऽऽऽ तेऽऽऽश।” कहकर श्रुति बेहोश हो गई 

डॉक्टर जब आकर चेकअप किए तो बोले कोई पुरानी बात याद आ गई तभी ऐसा हुआ होश में आने का इंतज़ार करते हैं।

कुछ घंटों के बाद जब श्रुति को होश आया सामने खड़े विवेक को देख कर वो मुँह फेर ली।

“ मुझे माफ कर देना श्रुति मैंने रितेश को लेकर तुम्हें बहुत भला बुरा कहा…मर्द हूँ ना लग रहा था किसी अनजान लड़के के लिए कोई इतना परेशान क्यों होगा तुम उसके बाद गुमसुम रहने लगी तो मेरा शक बढ़ता गया…मैंने पाक रिश्ते को कलंकित कर दिया।” कहकर विवेक ने हाथ जोड़ लिया 

“ देखा मम्मा आपने रितेश मामा ने सबके सामने आपका नाम लिया और वो आपको मिलने आना चाहते है पर ..।” कहते कहते कुहू रूक गई 

“ काव्य रितेश को फ़ोन कर के बोल दो आकर अपनी दीदी  से आशीर्वाद ले लें ।” विवेक ने कहा 

फ़ोन पर बात होते ही चार घंटे की दूरी तय कर रितेश अपनी श्रुति दी से मिलने आ गया … दोनों का मिलन देख विवेक को खुद पर शर्मिंदगी महसूस हो रही थी क्यों इस पवित्र रिश्ते को समझ नहीं पाया ।

दोस्तों ये कहानी थोड़ी सच थोड़ी कल्पना पर आधारित है आपको कैसी लगी ज़रूर बताएँ ।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

# कलंक

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