एहसास के परे – खुशी : Moral Stories in Hindi

नेहा आज सुबह से ही परेशान थी।मालती के आते ही उसे काम बताया और बोली मालती वो पीछे वाले कमरे की अच्छे से सफाई करना और बिस्तर पर नई चादर बिछा देना अलमारी साफ करना अच्छे से मैं दिन मे फोन करूजी तो मुझे सब्जी,फल और घर में कुछ खत्म हो तो बताना ।फिर ऑफिस के लिए निकल गई।

5 मिनट बाद फिर आई मालती बोली क्या हुआ दीदी ।रोहन ने भी पूछा क्या हुआ मेरा नाश्ता हो गया है बच्चे चले गए हैं फिर वो बोली मालती फ्रिज साफ करके ड्रिंक्स की बोतल हटा देना ।रोहन इन्हें सही से रखना बहुत महंगी है नहीं तो आते ही लेक्चर और नेहा निकल गई।मालती बोली भैया जी कौन आ रहा है।

रोहन बोला कल की गाड़ी से गांव से मां पिताजी आ रहे है कुछ दिन हमारे पास रहने ।मालती बोली अब काम बढ़ जाएगा दिन भर आराम से रहती थी अब बूढ़ा बुढ़िया सर पर रहेंगे। अगले दिन सुबह गांव से रोहन के मां पिताजी आ गए।रोहन ले कर आया नेहा ने अनमने ढंग से पाव छुए और रसोई में चली गई।रोहन बोला मां पापा वो आपका कमरा है आप फ्रेश हो जा आओ तब तक नाश्ता लगता है।

मां बोली रोहन देख मै तेरी पसंद का क्या क्या लाई हूं मां बाद में देखता हूं पहले आप अंदर चले।रोहन जल्दी जल्दी समान अंदर रखता हुआ बोला ।मां पिताजी को अटपटा लगा पर ठीक है वो अपना नहाना धोना निपट कर वो नाश्ते के लिए आए।नाश्ते में अंडा था जो रोहन की मां पापा नहीं खाते थे।उन्होंने सिर्फ चाय पी

और बोले बहु दिन का खाना कम मसाले का रखना।  नेहा बोली आते ही शुरू हो गए।रोहन फोन ले कर बैठ गया और नेहा पार्लर चली गई।मां पिताजी उन्हीं से तो मिलने आए थे पर उन दोनों के लिए उनके पास समय नहीं था।मां सामान निकाल कर लाई और रोहन को बोली ले बाबू खा ले सब तेरी पसंद का है मां ये सब मैं अब नहीं खाता मां अपना सा मुंह ले कर रह गई।नेहा आई तो उसे बोली बेटी ये सब रख ले तुम्हारे लिए लाई हूं।नेहा बोली हम तो यह सब नहीं खाते आप रख दो मालती ये सब शाम को ले जाना और खाना लगाओ ।

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खाने में तेल मसाले ज्यादा थे।उन दोनों ने खाना भी ठीक से नहीं खाया। कमरे में आ कर मां रोने लगी।पिताजी बोले गायत्री रो मत जब बच्चे अकेले रहने लगते हैं तो उन्हें बड़े बुजुर्ग बंधन लगने लगते है।चलो मैं टिकट करवाता हूं हम वापस गांव चलते हैं।गायत्री बोली अभी तो आए हैं ऐसे जाएंगे तो रोहू को बुरा लगेगा।

पिताजी बोले कुछ बुरा नहीं लगेगा। शाम को वो उठे तब मालती उन्हें चाय दे गई और बोली भैया दीदी बाहर गए हैं आपके लिए खिचड़ी बनाई है आप खा लेना मै चली पिताजी बोले देखा।उन्होंने अपने दोस्त अमृत को फोन लगाया और बोले हमारा कल का टिकट करवा दो हम वापस आ रहे है ।

अमृत बोले कल का नहीं है परसो सुबह सुबह का है पिताजी ने कहा ठीक है करवा दे।जैसे तैसे उन्होंने वो खिचड़ी खाई और सो गए परंतु गायत्री जी जानती थी कि पिताजी को रात को दूध लगता है वो दूध का पूछने

रोहन के कमरे की तरफ बढ़ी तो नेहा की आवाज सुनाई दी यह  लोग कब जाएंगे मै बंधन में नहीं रह सकती ।रोहन बोला आज ही तो आए है कैसे पूछूं एक दो दिन जाने दो फिर पूछता हूं इनकी वजह से आज में घर में पी भी ना सका।मां को बहुत दुख हुआ वो आकर लेट गई।एक दिन उन्होंने जैसे तैसे निकला और तीसरे दिन वो अल सुबह अपने बेटे के नाम एक पत्र लिख चले गए 

बेटा हमने तुम्हें बंधन मुक्त किया हमारी तरफ से तुम आजाद हो।

रोहन चुप चाप खड़ा था और नेहा सोच रही थीं कि हम आज़ाद हो गए।

स्वरचित कहानी 

आपकी सखी 

खुशी

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