रमा जी आज पार्क में घूमने आई तो उनके हाथ में मिठाई का डिब्बा था।सैर करने के बाद जबगपशप का दौर चला तो उनसे पूछा कि किस खुशी में आज मिठाई खिला रही हो,।रमा जी मुस्कराते हुए कहने लगी एक गुड न्यूज़ है आज मन बहुत खुश है सोचा इस खुशी को अपनी सारी सखियों के साथ शेयर करूं।
दरअसल पार्क में घूमने का हम सखियों का करीब दस लोगों का गुरप है ।पहले सैर करते हैं फिर गप्पों का व जोक्स का सिलसिला शुरू होता है।जब भी किसी की मैरिज एनिवर्सरी या बर्थडे होती है वही सखी सवका मुंह मीठा कराया है।यह सिलसिला कई सालों से चला आ रहा है।सभी का कहना है सुबह की सैर व गपशप से पूरे दिन की बैट्री चार्ज हो जाती है।
रमा जी ने बताया कि उनके बेटे ने नोएडा के पॉश इलाके में एक घर लिया है,अभी कुछ समय उसमे काम चलेगा फिर वहां शिफ्ट हो जायेंगे,हम लोग।अरे ये क्या हम लोग तो आपकी कम्पनी को बहुत मिस करेंगे। शिफ्ट करने में अभी समय लगेगा क्योंकि घर में अभी काम चल रहा है।
अब तो जब भी सुबह रमा जी सैर करने आती उनका बेटा पुराण शुरू हो जाता अपने नए घर में बेटे ने हमारे लिए भी एक कमरा बनाया है जिसमें ब्रान्डडैड गद्दे पलंग टीवी सेट व फोन भी लगा दिया है।जिससे हम लोगों को कोई असुविधा न हो?सच में घर क्या है पूरा महल है ।
पूरे आठ कमरे हैं उ सके घर में , स्टडी रूम , टीवी रूम गेस्ट रूम बच्चों का रूम आदि आदि।धीरे धीरे काम पूरा होने पर वही बेटे वहां शिफ्ट हो गए। शायद मां बाप को साथ चलने को भी नही कहा।
दरअसल डीडीए के घर में इतनी जगह नही हो पाती कि बच्चों का कमरा अलग से बना दो । पढ़ाई करने के लिए अलग रूम तो चाहिए ही बच्चों को ,सो इसीलिए शिफ्ट कर रहे हैं वे लोग।
रमा जी की बात बेटे के फ्लैट की तारीफ से शुरू होकर वहीं से खत्म होती। बेटे के नोएडा के फ्लैट में शिफ्ट
होने के बाट हर शनिवार व इतवार रमा जी अपने बेटे के यहां चली जाती अपने पति के साथ।
हांलांकि उनके पति का वहां मन नहीं लगता,ऐसा उन्होंने बताया।भई मुझे तो बहुत अच्छा लगता है वहां जाकर।कितनी साफ सफाई रहती है सोसायटी के घरों में गंदगी को जरा भी देखने को नहीं मिलती।
हम लोग तो अपने रूम में ठाट से लेटें लेटे टीवी देखते रहते हैं काम तो कोई होता नही करने को।
लेकिन हवा का रूख छह महीने बाद बदल गया ,हुआ ऐसा कि सभी लोग डाइनिंग रूम में बैठ कर चाय पीरहे थे कि तभी रमा जी के हाथ से चाय का कप टेड़ा हो गया जिससे थोड़ी सी चाय डाइनिंग टेबल पर गिर गई। बस फिर क्या था,रमा जी की बहू सीमा ने कहा मम्मीजी आप लोग कल से अपने रूम में ही चाय नाश्ता व खाना खाया कीजियेगा।
आपके अंदाज़ भी है कि कितना कीमती टॉप है ये डाइनिंग टेबल का आपने तो अपनी लापरवाही से बहुत बड़ा नुकसान कर दिया हमारा।बहू बोलती रही जो भी उसके मन में आया ,लेकिन बेटे ने बहू को एकबार भी नही रोका कि चुप करों क्या हुआ जो जरा सी चाय फैल गई।
रमा जी के स्वाभिमान को जबरदस्त ठेस लगी,उनकी आंखों में नमी उतर आई जिसे उनके साथ बैठे पति ने देखा।उनके पति ने कहा चलो अब े रूम में चलेो लगता है तुम्हारी तबियत कुछ ठीक नहीं है।पूरे दस साल रही है ह माारे साथ शादी के बाद उसी डीडीए फ्लैट में अब बड़ा घर क्या लेलिया
उड़ने लगी है।सारा दोष तो हमारे बेटे का ही है खड़ा खड़ा सुन रहा था उसकी बकबास मजाल है उसे रोका हो उसने जब अपना ही सिक्का खोटा है तो किसी और का क्या दोष।
तुमको ही महल जैसे घर में रहने का ज्यादा शौक चढ़ा था तुम तो यहां शिफ्ट भी होना चाह रही थी वह तो मेरे रोकने पर ही तुम रू की बहू बेटे के घर आना जाना कम हो गया है।उनका कहना है कि #उनके महल से तो अपने घर की झोपड़ी में स्वाभिमान से रहने में बहुत सुकून मिलता है#
क्या करना है ऐसी विदेशी चीजों से सजे घर में जाकर जहां अपनापन ही महसूस न हो। बेटा अपना है लेकिन घर तो उसका है जिसकी मालकिन वहू है।हाई फाई सॉसायटी के तौर तरीके ही अलग हैं।बेटा तो सुबह ही निकल जाता है अपने ऑफिस और बहू की दिनचर्या भी व्यस्त है
सुबह योगा क्लास,फिर जिम जाना और आएदिन किटी पार्टी व माॉल में शॉपिंग आदि आदि। मरे अपने कमरे में पड़े पड़े ऐसा महसूस होता है जैसे किसी ने सोने के पिंजरे में बन्द कर दिया हो।
पूरे दिन कमरे में ही चाय नाश्ता व खाना पहुंचा दिया जाता है हम लोगों को।यदि अकेले ही चाय नाश्ता व खाना खाना है तो अपना घर ही क्या बुरा है। आसपास कोई घर भी नही है जो किसी से बातचीत कर सको।अब तो दम घुटने लगा है सो हम लोगों ने वहां जाना बहुत कम कर दिया है,घर बही होता है
जहां अपनापन व सुकून हो।मंहगी शोपीस से सजा घर किसी होटल से कम नही लगता।चलो देर से ही सही तुम्हारी आंखें तो खुल गई कि अपने ही बच्चों कालाइफ स्टाइल जिसे आधुनिकता कहते हैं जिसमें सिर्फ दिखावे के सिबाय कुछ नहीं। रिश्ते नाते तो सिर्फ नाम का रह गया है। अपना घर सजाबटी चीजों से भले ही भरा न हो सुकून तो है न। अच्छा हुआ तुम्हें समय रहतेआभास होगया कि #
सोने के पिंजरे में रहने से तो स्वाभिमान से अपनी झोपड़ी में रहना ही अच्छा है।
स्व रचित व मौलिक
माधुरी गुप्ता
नई दिल्ली