Moral stories in hindi :
नताशा जानी मानी काउंसलर थी जो लोगों की पारिवारिक समस्याएं तो सुलझाती थी वही अपनी सलाह से कई परिवारों का विघटन रोकने में भी कामयाब हो सकी थी। आज काफी दिन के बाद वो थोड़ा आराम से बैठी चाय पी रही थी क्योंकि पिछला पूरा सप्ताह काउंसलिंग की वर्कशॉप और सेमिनार में बीत गया था।
आज वो पूरा समय अपने परिवार को देना चाहती थी। अभी चाय का प्याला रखा ही था कि उसके फोन की घंटी बजी,देखा तो किसी प्रसिद्ध साहित्य मंच से फोन था उन्होंने नताशा को ससुराल विषय पर आयोजित गोष्ठी में अतिथि वक्ता के रूप में आमंत्रित किया था।
नताशा ने उस गोष्ठी के लिए हां कह दिया था क्योंकि आयोजक का कहना था कि आज की लड़कियां ससुराल और शादी के बंधन में नहीं बंधना चाहती। जबकि विवाह जैसी परंपरा हमारे समाज का अभिन्न अंग है। नताशा के प्रभावशाली ढंग से अपनी बात कहने पर शायद कुछ लोगों में भी परिवर्तन आ जाए तो समाज के लिए अच्छा संदेश होगा।
नताशा ने गोष्ठी के लिए हां तो कह दिया था पर उसके खुद के मन में उथल-पुथल मच गई थी। नताशा परिवार के साथ समय बिताने के बाद जब बिस्तर पर सोने आई तब भी उसके मन में शांति नहीं थी क्योंकि आज नताशा को अपनी शादी के बाद के ससुराल में बिताए कुछ कड़वे पल याद आ गए।
उसको याद आया कैसे शादी के बाद उसकी सास-ननद और परिवार की अन्य महिलाएं उसकी हर बात और उसके हर काम को आलोचनात्मक तरीके से देखती थी। कई बार तो ऐसे होता था कि वो कुछ भी पहन ओढ़ कर आती तो लगता कि ससुराल की अन्य स्त्रियों की आंखों में एक्सरे की कोई मशीन फिट हो गई हो जिससे उसको अंदर तक पूरा चेक किया जा रहा हो।
कहीं जाना होता तो उसकी पसंद-नापसंद तो कोई मतलब रखती ही नहीं थी बल्कि उसकी सास और ननद ही एक-दूसरे से फोन पर सलाह करके अपने अनुसार तैयार होने को कहती। दूसरों लोगों के सामने भी जब देखो उसके घर के काम ना आने उसके माता पिता को किसी समान ना देने पर तरह तरह के उलाहने सुनाए जाते।
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ससुराल का माहौल उस दिन और भी खराब हो जाता जब ननद अपनी ससुराल में हुई किसी बात की लगाई बुझाई सास के साथ करती। हालांकि उसकी ननद की शादी को ज्यादा समय नहीं हुआ था पर बेटी के साथ कुछ भी होने का गुस्सा बहू पर निकाला जाता था। कई बार तो वो खुद ऐसी बातों को समझ नहीं पाती थी।
ये सब चल ही रहा था तभी उसे गर्भवती होने का पता चला। बेटी होने के बाद भी ननद और सास के कुछ ना कुछ कटाक्ष जारी रहे। उसके सब्र का पैमाना तब छलका जब बेटी का पहला जन्मदिवस आया। वो अपनी बेटी के इस क्षण को बहुत धूमधाम से मानना चाहती थी पर उसकी सास ने पहले से ही घर में यह कहकर कि लड़कियों के क्या जन्मदिन मना करते हैं,बहुत हंगामा किया।
अब नताशा ने भी ठान लिया था,उसने कहा कि बेटी का जन्मदिन तो वो मना कर ही रहेगी क्योंकि उसका आना मेरी जिंदगी के लिए बहुत उल्लासपूर्ण क्षण था। वैसे भी इसमें वो किसी और से खर्चे की उम्मीद नहीं कर रही है। इस तरह उसने बिना किसी दबाव के बिटिया का जन्मदिन धूमधाम से मनाया। अब उसे समझ आ गया था कि जरूरत से ज्यादा सहना किसी समस्या का हल नहीं है।
खुद से परेशान होने से अच्छा है कि क्यों ना ससुराल को दूसरी पाठशाला मान जीवन में आगे बढ़ा जाए। बस वो दिन था और आज का दिन है उसने अपनी बेटी की खातिर अपनेआप को बदला और अपने लिए स्वयं आवाज़ उठानी शुरू की।
आज आयोजक के साथ हुई बातों से उसको ये भी लग रहा था कि उसकी शादी को तो अब पंद्रह साल हो गए थे पर आज इतना आधुनिक समाज होने के बाद भी लड़कियां शादी शब्द से घबराएं जो ठीक नहीं है।
वैसे भी आज की लड़कियां आत्मनिर्भर होती हैं और शादियां भी अब पहले से देर से होती हैं जिससे वो थोड़ी परिपक्व होती हैं। ऐसे में ससुराल वाले उन पर अपनी मनमानी थोपे तो बात बिगड़ सकती है। समाज को भी थोड़ा तो बदलना पड़ेगा। वो ये सब सोच ही रही थी कि कब उसे नींद आ गई पता ही नहीं चला।
अब अगले दिन वो नियत समय पर तैयार होकर गोष्ठी में पहुंच गई।वहां उसने सबके सामने यही कहा कि मेरे लिए तो ससुराल दूसरी पाठशाला है जिसकी बदौलत आज मैं यहां हूं क्योंकि जो बात आपको कई बार मधुर वाणी नहीं सीखा पाती वो कड़वे शब्द सीखा देते हैं। हर किसी के साथ ऐसे नहीं होता क्योंकि कई बार कुछ लड़कियों के लिए ससुराल एक कड़वा अनुभव बन जाता है,ऐसे में ससुराल वालों को चाहिए कि वो जो लड़की उनके घर में आ रही है उसके साथ शुरू से ही प्यार भरा व्यवहार करें क्योंकि किसी भी पौधे को भी जब एक जगह से दूसरी जगह लगाया जाता है तो उसको समुचित खाद और पानी की आवश्यकता होती है।
किसी भी रिश्ते को प्यार से चलाने के लिए शुरुआत के चार पांच साल बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। नताशा ने यहां एक बात और कही कि हमारे समाज में शादी लड़का-लड़की ही नहीं अपितु दो परिवार का भी मिलन होती है। लड़की के घर वालों को भी शुरू से लडकियों के मन में ससुराल की नकारात्मक छवि नहीं बनानी चाहिए और उनको ये विश्वास दिलाना चाहिए कि वो पराया धन नहीं हैं। जब भी उनको आवश्यकता होगी उनके माता-पिता उनके साथ खड़े होंगे
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इसके साथ-साथ उन्हें लड़की की ससुराल में बेवजह की दखलअंदाजी से भी बचना चाहिए क्योंकि आवश्यकता से अधिक कुछ भी अच्छा नहीं होता।इन सबके बाद भी अगर किसी लड़की को कुछ झेलना पड़ता है तो उसे ससुराल को दूसरी पाठशाला मान अपने आत्मसम्मान की रक्षा स्वयं करनी चाहिए। उसके इतनी बातें कहते ही वहां तालियां बजने लगी और अधिकतर महिलाएं नताशा की बात से सहमत लगी।
दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी? आज के समय में जब हम चंद्र यान और मंगल यान की बातें करते हैं तब भी लड़कियों से ससुराल में अपने मायके की सभी आदतों को छोड़कर एक ही दिन में बदलने की उम्मीद की जाती है। मेरे को लगता है कि आज की पीढ़ी की लड़कियां आत्मनिर्भर और समझदार हैं अगर उनके साथ संतुलन बैठाना है तो बदलाव अपनी तरफ से पहले दिखाना होगा।
डॉ पारुल अग्रवाल,
नोएडा
#ससुराल