दुरूपयोग या खिलवाड़ ? – एम.पी.सिंह : Moral Stories in Hindi

महानगर के कॉलेजों में पढ़ाई के साथ साथ ओर बहुत सी एक्टिविटीज़ होती हैं, जो पैसे वालो की हैसियत के हिसाब से अलग अलग होती है। कुछ को कारो में लड़कियों को घुमाना,

कुछ को लड़कियों संग राते बिताना,  कुछ को दोस्तों संग बार / पब में मौज मस्ती करना, ड्रग्स लेना वगैरह वगैरह। अधिकतर छोटे शहर की मिडिल क्लास लड़कियां मौज मस्ती के लिए उनका साथ देती हैं। कुछ जाल में फॅस जाती हैं और कुछ फॅसा लेती हैं। 

ऐसे ही असम की रहने वाली एक लड़की माहिता, पढ़ाई के लिए मुंबई आई, उसके गोरे रंग और तीखे नैन नक्श ने कॉलेज में एक पैसे वाले लड़के को अपने प्यार में फंसा लिया।

उनका रिस्ता काफी आगे बढ़ गया ओर फिर शादी कर ली। कुछ दिन तो मौज मस्ती में गुजर गए फिर धीरे धीरे प्यार का भूत उतरने लगा। फिर आये दिन लड़ाई झगड़े ओर नोबत तलाक तक पहुंच गई।

अदालत में जाने पर माहिता को मालूम हुआ कि अदालत तो महिलाओं की है, जो चाहो इल्जाम लगा दो, उसने इस अवसर को कैश करने का प्लान बनाया। घरेलू हिंसा, शरीरिक प्रताड़ना, मानसिक टॉर्चर, दहेज की डिमांड, सेक्सुअल हैरासमेंट आदि आदि

कई आरोप लगा दिये। कोर्ट से पूरी सहानुभूति मिलती रही और पति बेचारा काम धन्धा छोड़ के कोर्ट के चक्कर लगाते लगाते परेशान हो गया। आखिर हार कर 50 लाख रुपए देकर उसने माहिता से तलाक फाइनल करवा लिया।

माहिता की तो जैसे लॉटरी लग गई। जिसने सारी उम्र 50 हजार रुपए नहीं देखे, आज 50 लाख की मालकिन बन गई। तलाक के बाद उसने शादी को अपना बिजनेस बना लिया ओर शिकार की तलाश में रोज अलग अलग पब / बार में जाना शुरु कर दिया।

उसने नये नये दोस्त बनाकर अगले 5 साल में 2 ओर शादी, फिर तलाक लेकर 2 करोड़ की मालकिन बन गई। पैसा आ जाने के बाद वापस असम जाकर नई जिंदगी शुरू कर ली।

पैसा इंसान को सम्मान, शोहरत सब दिला देता है पर किस तरीक़े से कमाया गया है, ये कोई नहीं पूछता।

हमारा कानून महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने के लिये बनाये गऐ थे, पर कुछ महिलाओं ने इसे एक हथियार बना लिया है, जिसकी आड़ में न जाने कितने मासूम परिवार पिस रहे हैं

ओर कितने अपने लाडलो को खो चुके है। कानून इंसाफ के लिये बनाये जाते है पर माहिता जैसी न जाने कितनी ही महिलाये इसे अपना बिजनस बनाकर कानून का मजाख उड़ाती हैं।

अब आप ही बताये कि ये कानून का दुरुपयोग है या क़ानून के साथ  खिलवाड़ ???

लेखक

एम.पी.सिंह

(Mohindra Singh)

स्व रचित, अप्रकाशित, मौलिक 

10 Dec. 24

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