दुल्हा बिकता है -मीनू जायसवाल

आज जो मैं लिखने जा रही हूं, वो एक सामाजिक कुरीति हैं

                        “दुल्हा बिकता है”

जी हां जनाब दुल्हा बिकता है अच्छा खरीदार होना

चाहिए….

अब आप सब सोच रहे होंगे कि आज मुझे क्या हो गया है मैं ऐसा क्यों कह रही हूं, तो सुनिए जनाब कभी-कभी अपने ही आसपास देखने को मिल जाता है जिसे देखने के बाद मन में आ ही जाता है कि “दुल्हा बिकता है” बस खरीदने वाला चाहिए।

ऐसा नहीं है कि यह सब आजकल में ही शुरू हुआ है यह सदियों से चली आ रही इंसानों द्वारा बनाई गई एक कुरीति है जिसे “रीति-रिवाजों”का नाम दिया गया है, आप सब को यह तो पता ही है कि सदियों से पुत्र प्राप्ति की इच्छा लोगों में सदैव से रही हैं जिसे “वंश” चलाने का नाम दिया जाता है और साथ ही उसे बेचने की भी कुरीति चलाई जाती है जिस का दूसरा नाम है

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“बेटे की शादी”और घर में बहू के साथ दहेज का आना …..बस अब दहेज मांगने के तौर-तरीके बदल गए हैं अब बहू के साथ आया हुआ दहेज ‘दहेज’ नहीं होता, वह तो उसके परिजनों द्वारा दिया गया स्नेह होता है….. 

पहले ऐसा कहा जाता था, कि भले ही रूपए नारियल का रिश्ता हो पर लड़की सुंदर और सुशील होनी चाहिए।लेकिन अब समय बदल गया है बात करने के तौर-तरीके भी बदल गए हैं। आजकल तो यह देखा जाता है कि लड़की भले ही कैसी भी हो वह अपने साथ क्या-क्या ला रही है कितना दहेज ला रही हैं, इन सब बातों को कहने का तरीका यह होता है कि

“भगवान का दिया सब कुछ है, हमारे पास आपको जो देना है अपनी बेटी को दे दीजिए आप जो कुछ भी देंगे आपकी बेटी और दामाद ही तो इस्तेमाल करेंगे हमारे पास तो सब कुछ है” और सिर्फ इतना ही नहीं यह भी पूछा जाता है कि आपका शादी का बजट कितना है अगर उनका बजट लड़के वालों के अनुसार होता है तो आगे रिश्ते की बात चलाई जाती है अगर बजट ही उनके हक में ना हो तो वही बात खत्म कर दी जाती है


तो आइए आज आप के साथ एक किस्सा सांझा करती हूं एक लड़की जिसका नाम “उमा” था जो आजकल के समय के हिसाब से बहुत ही सीधी साधी और सुलझी हुई लड़की थी पर समय का कालचक्र कौन रोक पाया है ,उसकी अभी पढ़ाई चल ही रही थी कि उसके पिता जी अचानक बहुत बीमार हो गए ,

यू समझिए की अब वो दूसरो के मोहताज हो गए थे करीब २साल बाद उनका देहांत हो गया और अब घर की सारी जिम्मेदारी उसके भाई और उसकी मां पर आ गई और अब उसकी शादी की भी जिम्मेदारी भाई के कंधो पर थी

 ..थोड़ा समय बीतने के बाद उसके लिए लड़का देखा गया उसका नाम “आकाश” था वो पढ़ा लिखा और उसका अपना काम भी था.. बस ये सब देख कर उसकी शादी “उमा” के साथ तय कर दी गई मानो ऐसा लग रहा था जैसे चट मंगनी पट बिहा हो रहा हो.. तो अब चलो शादी भी हो गई थी लेकिन शादी के बाद आकाश का व्यवहार कुछ अलग ही लग रहा था शुरू शुरू मे तो आकाश उमा को लेकर उसके घर 15- 20 दिन पर चला जाता

था और जब वो वहां से वापस आता तो उमा की मां कभी तो विदाई में उसको 1000 या कभी 500 का टीका कर देती क्योंकि यह एक रिवाज़ है की जब भी बेटी दामाद घर आए तो उनको विदा करते समय यह मान सम्मान दिया जाए।और अब वह हर 7 दिन में कभी तो 8 दिन पर अपनी ससुराल उमा को लेकर चला आता था।ऐसा लग रहा था जैसे आकाश को उसकी आदत पड़ गई हो। 

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शुरू शुरू मे तो इन सब बातों पर ध्यान नहीं दिया गया परन्तु जब उसने उमा से उसके जेवर और उसके सभी डाक्यूमेंट्स ले लिए तो उमा ने  अपनी मां को यह बात बताई तो मां ने भी कुछ ज्यादा ध्यान नहीं दिया और उसे यही समझा कर बात खत्म कर दी कि वह तेरा पति ही तो है कोई बात नही जेवर उसके पास रहे या तेरे पास, क्या फ़र्क पड़ता है।

अब धीरे-धीरे समय यू ही बीतने लगा उसकी शादी को पांच साल हो चुके थे और अब उसके दो बच्चे भी हो गए थे लेकिन धीरे-धीरे आकाश अपनी जिम्मेदारियों से पीछे हट ने लगा और हर वक्त उमा से उसके घर से पैसे लाने के लिए बोलता रहता और अगर उमा उसका विरोध करती तो उसके साथ मार पीटाई भी करता और तो और उसे घर से निकल जाने को बोलता..



 एक दिन उमा को जब यह पता चला कि जो फ्लैट उसकी मां ने उसे शादी के समय gift किया था उसे आकाश ने धोखे से अपने नाम करा कर बेच दिया है तब  उसने अपनी मां से फिर एक बार इस बारे में बात की और उसके साथ हुए दुर्वहार के बारे मे भी बताया जो कि उसने अपने घरवालों को आज तक नही बताया था.. यह बात सुनने के बाद उन्हें शायद ये अहसास हो गया था

की अब उसका वहा रहना ठीक नहीं है तब उसके भाई और मां ने मिलकर फैसला लिया उमा और उसके दोनो बच्चों को अपने घर लेकर आ गए और ये सोचा कि शायद आकाश उमा और बच्चों से दूर होने के बाद सुधर जाए 

और इनका घर वापस बस जाए लेकिन तीन साल बीतने के बाद भी आकाश मे कोई सुधार नहीं आया और वो आए दिन शराब पी कर उसके घर आता और गली में खड़े होकर गाली ग्लोच करता इन सब से तंग आ कर उमा के घरवालों ने कोर्ट  कैस कर दिया पर आकाश को तो उमा और दोनो बच्चों को वापस घर लाना था

अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए ताकि उसे कभी भी पैसों की कमी न हो और वो उसके ज़रिए वहा से पैसा मंगवाता रहे। इसके लिए उसने बच्चों को बाहर ही मिलना जुलना शुरु कर दिया और उन्हें कभी चीज़ का लालच दे कर अपनी मीठी मीठी बातों में उनकी मां के खिलाफ कर दिया ।

काफी समय बीतने के बाद आकाश ने बच्चों की कस्टडी अपने ऊपर ले ली सिर्फ इसलिए ताकि उमा वापस आ सके लेकिन उमा और उसके घर वाले अच्छी तरह से जान चुके थे कि अब वहां जाना सही नहीं और अब उन्होंने तलाक का कैस कोट में डाल रखा है अगर इन सब बातों पर उमा के घरवालों ने पहले ही ध्यान दिया होता तो शायद आज यह दिन ना  देखना पढ़ता आज उमा और उसके बच्चों की जिंदगी किस मोड़ पर आ गई है कोई नहीं जानता….

“दुल्हा बिकता है” खरीदार होना चाहिए।

 

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