द्वेष – कविता झा’अविका : Moral Stories in Hindi

अंशिका बहुत ही उत्साहित थी जब उसे पता चला कि वो रेलवे की  परीक्षा में पास हो गई है और इंटरव्यू उस शहर में हो रहा है जहां उसकी अपनी बहन रहती है। 

वैसे भी बहुत दिनों से वो दीदी से मिलना चाह रही थी। पहले वो अपनी  पढ़ाई और प्रतियोगी परीक्षाओं में व्यस्त होने के कारण बहन से मिलने नहीं जा पाती थी ।

इंटरव्यू के बहाने ही वह कुछ दिन अपनी बहन के पास रह लेगी यही सोचकर उसने अपनी तैयारी शुरू कर दी। बहन की पसंद के सामान खरीद कर रखने लगी।

पहले तो उसने सोचा कि वो दीदी को सरप्राइज दे और बिना बताए ही उसके घर चली जाए लेकिन उससे यह खुशी साझा किए बिना मन नहीं मान रहा था।

अनामिका उसकी अपनी बड़ी बहन थी पर बचपन से अंशिका पढ़ाई में तेज थी जिस कारण उसके मन में जलन की भावना पनप गई थी। अनामिका का पढ़ाई में मन नहीं लगता था इसलिए उसकी शादी भी जल्द ही करवा दी थी उनके माता-पिता ने। उसके पति अच्छा कमाते थे पर वो अपनी बहन को आगे बढ़ता नहीं देखना चाहती थी। अनामिका गोरी और सुंदर थी और अंशिका का रंग श्यामला था । इस बात के लिए भी वह हमेशा अपनी छोटी बहन को चिढ़ाया करती थी।

 उसने दीदी को फोन लगाया.. 

” हेलो दीदी आप सब कैसे हैं।”

“हां हम सब  ठीक हैं । तुम बताओ आज कैसे फोन किया?”

” दीदी आपको एक खुशखबरी सुनानी थी।”

“अच्छा तेरी शादी फिक्स हो गई क्या? मम्मी पापा ने तो नहीं बताया इसके बारे में कुछ भी।”

” नहीं दीदी शादी नहीं मेरी नौकरी फिक्स हो गई है…

 मैंने जो रेलवे का फॉर्म भरा था ना उसकी इंटरव्यू की डेट आ गई है।”

“अच्छा! पर रेलवे का एग्जाम पास करना कोई बड़ी बात तो है नहीं  जो तू इतना उछल रही है‌। वह तो मुझको मौका ही नहीं मिला वरना मैं तो बहुत बड़ी अफसर बन जाती अगर पापा मम्मी ने मुझे तेरी तरह  पढ़ाया होता तो।”

“दीदी वो सब छोड़ो… असली खुशखबरी यह है कि मैं आपके पास आपके शहर आ रही हूं। यहीं पर मेरा इंटरव्यू है ।”

अनामिका को ऐसा लगा जैसे अंशिका उसके गालों पर चांटा मार रही है। उसने मन में ठान लिया कि वह अंशिका को अपने घर में रुकने की इजाजत नहीं देगी। तब वह यहां कहां रुकेगी। जिससे उसका इंटरव्यू तो छूटेगा ही साथ में उसे ये नौकरी कभी नहीं मिलेगी।

“अच्छा! लेकिन हम तो बाहर जा रहे हैं घूमने के लिए। 

कब है तुम्हारा इंटरव्यू?”

” दीदी अगले हफ्ते रविवार को है।”

” ओह सॉरी अगले हफ्ते तो हम यहां रहेंगे ही नहीं।” 

“कोई बात नहीं मैं कुछ और इंतजाम कर लूंगी।”

“क्या इंतजाम करेगी रेलवे स्टेशन पर रात बिताएगी। अब देख हम तो कल ही निकल रहे हैं… फिर इतने दिनों के लिए हम चाबी  पड़ोसी को देकर जा नहीं सकते हैं। वैसे भी तू यहां आकर क्या करेगी। हमारे गेट पर ताला ही लगा होगा। मैं तो कहूंगी तू ये इंटरव्यू का विचार ही मन से निकाल दे।  नौकरी करके ही क्या करेगी तेरे लिए रिश्ता तो पापा मम्मी ढूंढ ही रहे हैं ।  शादी के बाद कौन सा ससुराल वाले तुझे नौकरी करने देंगे?”

अंशिका को अपनी बहन से यह उम्मीद नहीं थी।

अंशिका की सहेली दीपिका कुछ  ही महीने पहले नौकरी करने उसी शहर में आई थी।

उसने उसे फोन किया वह बहुत खुश हुई यह जानकर कि अंशिका से वह मिलेगी। दोनों सहेलियां साथ समय बिताएंगी।

कुछ दिन बाद जब अंशिका इंटरव्यू के लिए पहुंची तो दीपिका ने उसका अपनी बांहें पसार कर स्वागत किया। अंशिका की आंखों में खुशी के आंसू भर आए। इस अंजाने शहर में विभिन्न अकेली नहीं है।

“दीदी को नहीं पता क्या कि तू आने वाली है?”

 “वह तो बाहर गई है ना… उन्हें बताया था मैंने।” 

“क्या बात कर रही है मैंने तो कल ही दीदी को देखा है। वो मुझे मिली थी जब मैं ऑफिस से लौटने के बाद मॉल में कॉफी पीने गई थी। अनामिका दीदी वहीं जीजा जी और बच्चों के साथ आई हुई थीं। “

“अच्छा कोई बात नहीं तुझे दिक्कत ना हो तो मैं आज तेरे पास ही रुक जाऊं कल इंटरव्यू है उसके बाद शाम की ट्रेन से ही वापस अपने शहर चली जाऊंगी।”

“अरे! ये कैसी बात कर रही है? तुझे पूछने की क्या जरूरत है ? मैं तो कहूंगी कम से कम हफ्ता 10 दिन  मेरे साथ रहना। वैसे ही तो यहां इस बड़े शहर में मैं अपनी नौकरी के कारण अकेली ही रहती हूं।”

अगले दिन उसका इंटरव्यू बहुत ही अच्छा गया। परिणाम कुछ दिन बाद ही आना था इसलिए उसने अपनी सहेली के साथ इसी शहर में रुकने का निर्णय लिया। इस बीच उसने कई बार अपनी बहन को देखा पर वह जान गई थी कि दीदी उससे मिलना नहीं चाहती है इसलिए उनके पास नहीं गई। 

अगले ही हफ्ते उसकी ज्वॉइनिंग थी इसी शहर में पर यह बात उसने अपनी बहन को नहीं बताई क्योंकि अब उसे अपनों की पहचान हो गई थी। खून के रिश्ते कभी बदल नहीं सकते पर जब यह राग द्वेष और जलन की भावना रिश्तों के बीच में आ जाती है तो ऐसे रिश्तों से दूरी रखने में ही भलाई है।

कविता झा’अविका’ 

रांची, झारखंड 

#अपनों की पहचान 

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