नमिता के साथ वाले घर में सुबह से चहल-पहल थी। अरसे बाद उस खाली पड़े घर में कोई रहने आ रहा था। नमिता ने अपनी बालकनी से देखा सामान से लदा ट्रक बाहर खड़ा था।यह देखकर नमिता के होठों पर मुस्कुराहट तैर गई और मन में विचार आया
कि इसी बहाने वीरान पड़े घर की साफ-सफाई भी होंगी और रौनक भी आ जाएगी। कुछ देर बाद नमिता चाय लेकर उन्हें देने चली गई और पड़ोसी धर्म निभाते हुए रात के खाने का भी बोल आई।
नमिता एक अच्छे स्वभाव की महिला थी।पति रजत एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छे पद पर थे और उसके दो बच्चे थे जो कि नौंवी और छठी कक्षा में पढ़ते थे।नमिता के सास ससुर उसके जेठ जेठानी के साथ अहमदाबाद में रहते थे।पूरे परिवार में बहुत प्यार था…
त्योहारों पर इकट्ठे होने का वे सब बेसब्री से इंतज़ार करते।2 दिन बाद नमिता को उसकी पड़ोसन सुलेखा बाहर सब्ज़ी खरीदते वक्त ठेले पर मिल गई।बातों ही बातों में सुलेखा ने नमिता से वहां के बाज़ार और कामवाली बाई के बारे में जानकारी ले ली।
सुलेखा अपने पति और बेटी के साथ छोटे शहर से पहली बार दिल्ली जैसे बड़े शहर में आई थी।उसका पूरा परिवार गांव में रहता था और उसके पति एक बैंक में कार्यरत थे। गांव में उनकी अच्छी खासी ज़मीनें थी पर उसके पति मनोज को नौकरी ही पसंद थी।
वैसे तो वे अच्छे खासे खाते पीते लोग थे पर उनका रहन सहन साधारण था। नमिता और सुलेखा की जान पहचान धीरे-धीरे दोस्ती में बदल रही थी।बाज़ार से सब्ज़ी लानी हो या फिर शाम को पार्क में सैर करनी हो वो इकट्ठे ही करती।काॅलोनी की औरतें नमिता को कभी बोल भी देती,”आजकल खूब छन रही है नमिता तेरी सुलेखा से..दोस्ती कुछ देख कर की जाती है”।
नमिता को उन सब की बातों का कोई असर नहीं होता और वह मस्त रहती।दिन बीत रहे थे..एक दिन नमिता सुलेखा को अपनी किट्टी पार्टी में अपने साथ ले गई। सुलेखा ने मना भी किया था पर नमिता नहीं मानी।नमिता जानती थी कि सुलेखा के मना करने का क्या कारण था
पर वह चाहती थी कि उसकी अन्य सखियां भी सुलेखा के गुणों की पहचान कर पाएं।किट्टी में उन दोनों को देखकर एक पल के लिए चुप्पी छा गई थी। शिखा (जिसके घर किट्टी थी) उसने दोनों का आगे बढ़ कर स्वागत किया और सुलेखा का परिचय सबके साथ करवाया।
नमिता को महसूस हुआ कि वहां महिलाएं सुलेखा के पहरावे को लेकर दबी सी हंसी हंस रही थी और बीच-बीच में उसी को लेकर खुसर पुसर भी हो रही थी पर इन सब बातों से अनजान सुलेखा उसके पास से उठकर शिखा का हाथ बंटाने चली गई थी।
किट्टी खत्म होने से पहले ही सुलेखा को घर जल्दी जाना था क्योंकि उसकी बेटी के स्कूल से आने का समय हो गया था।
उसके जाते ही सबको जैसे मौका मिल गया हो।मिसेज़ कुलकर्णी बोली,” नमिता, बातचीत तक तो ठीक है पर तुम उस देहातन को किट्टी में ही ले आई।शालिनी ने भी आगे जोड़ा,” और क्या.. चाहे कितना भी पैसा हो..रहेंगे तो देहाती ही ना”।सब ने उनकी बातों में सहमति जताई।
नमिता जो बहुत देर से उन सब की बातें सुन रही थी बोली,” क्या किसी का पहनावा देखकर तय करना चाहिए कि उससे दोस्ती करनी चाहिए या नहीं।दोस्ती कभी कैलकुलेटेड नहीं होती..दोस्ती तो दिल से होती है। दोस्ती इस बात पर आधारित नहीं कि किसी का स्टेटस कैसा है.. दोस्ती न शक्ल देखती है ना ही रुतबा..यह तो दिलों का रिश्ता है और मुझे सुलेखा का दिल बिल्कुल साफ लगता है”, यह कहकर नमिता वापिस आ गई।
कुछ दिनों बाद नमिता के पति रजत को कंपनी में किसी ने झूठे फ्रॉड के केस में फंसा दिया।पूरी तफ्तीश खत्म होने तक रजत को घर में ही रुकना था।यह बात पूरी कॉलोनी में आग की तरह फैल गयी।नमिता की सखियों ने बस ऊपरी तौर पर उससे फोन पर हमदर्दी जता दी।मिलने कोई नहीं आया।नमिता इस समय खुद को बहुत असहाय समझ रही थी।
सुलेखा उन दिनों अपने गांव गई हुई थी।उसके आने पर जैसे ही उसे पता चला वह नमिता के पास पहुंच गई और उसे गले लगाते हुए बोली,” तुम चिंता मत करो.. रजत भैया की ईमानदारी पर कोई भी शक नहीं कर सकता और देखना तफ्तीश खत्म होने पर उस आदमी का सच सबके सामने होगा”।
अगले कुछ दिनों तक सुलेखा ने नमिता के घर की बागडोर संभाल ली थी। अपनी बेटी के साथ वो उसके बच्चों को भी स्टाॅप पर छोड़ आती और ले भी आती। रोज़ कुछ अच्छा बना कर उन सबको खिलाती…जानती थी कि नमिता का आजकल कुछ भी बनाने का मन नहीं करता होगा।
फिर एक दिन रजत के बॉस का फोन आया। तफ्तीश पूरी हो चुकी थी और रजत उसमें निर्दोष साबित हुआ था। दुख के बादल अब छंट चुके थे। नमिता ने सबसे पहले यह खबर सुलेखा को फोन कर बताई और फिर अपने जेठ जी को फोन कर उन्हें पूरी बात से अवगत कराया। उसने अभी तक उन्हें इस बात से दूर ही रखा था क्योंकि उसे पता था कि वो सब इस बात को लेकर बहुत चिंतित होंगे ।
जेठ जी ने बात पता चलते ही नमिता को यह बात ना बताने पर डांटा और और साथ ही खुशी भी जताई कि रजत अब उस जंजाल से बाहर निकल आया था। कुछ ही देर में सुलेखा और मनोज मिठाई के साथ नमिता के घर पर थे। सुलेखा के चेहरे की खुशी बता रही थी कि वह तो नमिता से भी ज़्यादा प्रसन्न थी। नमिता ने उसे पकड़कर गले लगा लिया..उसे सुकून था कि उसकी दोस्ती कैलकुलेटेड नहीं थी।
#दोस्ती_ यारी
स्वरचित एवं अप्रकाशित।
गीतू महाजन,
नई दिल्ली।