दूर के ढोल सुहावने – डा. मधु आंधीवाल

आजकल शौर्य का व्यवहार बिलकुल उजड्ड होता जा रहा था । बात बात पर गुस्सा होना और मां रीना और पापा उमेश से उल्टा सीधा बोलना । रीना और उमेश का अकेला बेटा था शौर्य । एक मध्यम वर्गीय परिवार बस दोनों की तमन्ना थी कि शौर्य अच्छी तरह पढ़ ले किसी अच्छी लाइन में निकल जाये  पर यहाँ तो शौर्य की मांगे बढ़ती जा रही थी । रीना और उमेश दोनों सोच नहीं पा रहे थे कि इतना बदलाव  शौर्य में कैसे आगया ।

        जब पता लगा कि उसके सब दोस्त उन अधिकारियों के बेटे है जिनकी निगाह में रु का कोई महत्व नहीं था ।  उनके पास कीमती कपड़े थे ,कीमती जूते थे उनके ड्राइवर उन्हें गाड़ियों में छोड़ने आते । बस ये शौर्य में आये बदलाव का कारण था । वह उमेश से लगातार जिद कर रहा था कि मुझे लैपटौप चाहिये वह भी अच्छी कम्पनी का ।



रीना उसे लगातार समझा रही थी कि अभी तुम्हें इसकी जरूरत नहीं बस कमरे की किबाड़ बन्द करके बैठ गया था । उमेश जी भी आफिस से आगये बहुत समझाने पर बाहर आया । उमेश जी ने उससे वायदा किया कि वह एक दो दिन में ला देंगे । दूसरे दिन शौर्य  दोपहर में साइकिल दौड़ाता आया और चीखने लग मां तुम कहां हो । रीना कमरे से बाहर निकल कर आई शौर्य उससे चिपट कर रोने लगा बोला मां मुझे नहीं चाहिये लैपटाप ।

रीना बोली ऐसा क्या हुआ वह रोते हुये बोला मां मेरे दोस्तों के जो पापा अधिकारी थे आज रिश्वत लेते पकड़े गये और किसी की सूचना पर आय से अधिक सम्पति की शिकायत पर छापा पड़ा । पुलिस ने उनको अरेस्ट करके घर सील कर दिया । आज दोनों परिवार सड़क पर हैं । मां आज मुझे सब समझ आगया कि वह गलत काम करके अमीर थे । मेरे पापा ईमानदारी से पैसा कमाते हैं वह सही हैं । रीना बोली बेटा अब तुम्हारी समझ में आया दूर के ढोल सुहावने होते हैं।

स्वरचित

डा. मधु आंधीवाल

अलीगढ़

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!