बेटे भूषण की करतूत के कारण ठाकुर सुरेश सिंह के उजियारे जीवन को दुख के बादलों ने पूरी तरह ढ़क लिया।उनके पूर्वजों की त्याग,तपस्या पलभर में जलकर खाक हो गई।
सारी इज्जत, मर्यादा मिट्टी में मिल गई। बेटे का भविष्य सुधरने की बजाय बदनामी के गर्त में डूब गया।बड़े अरमानों से उन्होंने बेटे का नाम भूषण रखा था,
जो उनके परिवार की इज्जत-मान को आगे बढ़ाकर सुशोभित करेगा,परन्तु विपरीत ही हो गया।
क्रोध और चिन्ता के मिश्रित भावों से ठाकुर सुरेश सिंह को ऐसा प्रतीत हो रहा था,जैसे हृदय की तेज धड़कन दौड़ते-दौड़ते अचानक रुक जाएगी।उन्हें इच्छा हो रही थी कि बेटे की काली करतूत के कारण खुद किसी कुएँ,नदी,तालाब में जाकर डूब मरें।
उनकी पत्नी रमा ने बड़ी हिम्मत से खुद को संभालते हुए पति से कहा -“आप इतना ज्यादा परेशान और दुखी न हों।एक दिन बेटे को खुद अपनी गल्ती पर पछतावा होगा।”
ठाकुर सुरेश सिंह ने तमतमाते हुए कहा -“रमा!कैसे न परेशान होऊँ?बेटे को पढ़ने के लिए भेजा था और वह गलत संगति में पड़कर गैर कानूनी काम करने लगा।पुलिस ने उसे और उसके साथियों को मासूम लोगों के साथ ठगी और लूटपाट के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया है!”
स्तब्ध सी रमा कहती है -” पता नहीं!उसके ऐसे कौन-से खर्च थे कि हम पूरी नहीं कर पा रहे थे,जिसके कारण उसे ऐसा काम करना पड़ा!”
सुरेश सिंह गुस्से से कहते हैं -” रमा!हम उसकी ऐय्याशी का खर्च नहीं पूरा कर पा रहे थे।जब कभी मिले तो उसे कह देना कि अपना मुँह मुझे कभी न दिखाएँ और जाकर चुल्लू भर पानी में डूब मरे।”
रमा गहरी साँस लेकर चिन्ता की मुद्रा में स्तब्ध-सी बैठी रही।उसे भी बदनामी के कारण कहीं जाकर डूब मरने की इच्छा हो रही है।
समाप्त।
लेखिका-डाॅक्टर संजु झा(स्वरचित)