डॉक्टर साहिबा – अनुपमा

राधे के पिताजी गांव के बड़े जमींदार थे बहुत ही कड़क स्वभाव के थे ठाकुर महेंद्र सिंह , काफी मन्नतों के बाद उनके पुत्र हुआ था जिसका नाम उन्होंने राधे रखा था , बच्चे तो उनके और भी हो सकते थे पर हुए नही क्योंकि उनको दुनिया मैं आने से पहले ही अलविदा कर दिया गया था एक लड़की होने के कारण से ।

राधे की शादी हो गई थी और उसकी पत्नी भी गर्भवती थी , राधे को समझ नही आ रहा था की वो क्या करे , जब से उसे पता चला था की शीनू के पेट मैं लड़की है उसको पता था की पिता जी का क्या फैसला होगा ,अपनी मां के दर्द को उसने भी देखा था , डॉक्टर को विश्वास मैं लेकर अभी तो उसने झूठ बोल दिया था पर आखिर कब तक वो ये बात छुपा पाता और गांव मैं तो डॉक्टर के अलावा बड़े बुजुर्ग भी गर्भवती स्त्री की चाल ढाल से अनुमान लगा लेते है के लड़का होगा या लड़की ! 

जबसे राधे को पता चला था की शीनू के लड़की है तब से वह अपने दोस्त की मदद से कुछ व्यवस्था मैं लगा था ।



शीनू का सातवां महीना लग गया था , अभी तक एक भी अनुभवी आंखों ने पिताजी को लड़के होने का आश्वासन नही दिया था इसलिए पिताजी बहुत चिंतित थे , मां और मुझे बुलाया गया और साफ साफ शब्दों मैं फैसला सुना दिया गया की अगर लड़की होती है तो उसको मरना ही होगा ! मैने मां की तरफ देखा पर वो तो बस सुनती ही आई थी आजतक इस घर मैं ,पर मैं अपनी संतान को कैसे मरने दूं।

शीनू को जरूरत का सारा सामान रखने को बोल तैयार होने को बोलकर राधे कुछ इंतजाम करने बाहर चला गया । आधी रात होते ही शीनू को लेकर राधे गांव से बाहर निकल आया और अपने दोस्त की मदद से शहर आ गया । 

आज राधे और शीनू की बेटी ऊर्जा डॉक्टर बन गई है और राधे को उसपर बहुत अभिमान है , ऊर्जा अपनी जन्म से जुड़ी हर कहानी से वाकिफ है इसलिए वो वापिस उसी गांव मैं डॉक्टर बन कर जाना चाहती है और वहां बच्चियों की जिंदगी संवारना चाहती है ।

ऊर्जा गांव मैं डॉक्टर बन कर आ जाती है , गांव ऐसा लगता है की इतने सालों से वही रुका हुआ है कुछ भी नही बदला है । अभी महेंद्र  सिंह की सोच अभी भी वैसी ही है , लड़के वहां के सब आवारा है क्योंकि ज्यादा महत्व मिलने से कुछ लोग असल जिंदगी महत्वहीन ही रह जाते है ।



महेंद्र सिंह अभी भी सरपंच है  उनका इकलौता बेटा भाग चुका था इसलिए अपनी गद्दी पर अभी भी वो ही काबिज है ।

गांव मैं नई लेडी डॉक्टर आ तो गई है पर उससे इलाज कोई मर्द कराने नही आता है फिर भी ऊर्जा ने अपने आपको सभी स्त्रियों के बीच काफी मशहूर कर लिया है और वो अब उसके पास अपनी बीमारी का इलाज कराने के साथ साथ छुटपुट सलाह के भी आती है । 

गांव मैं महामारी फेल जाती है  ऊर्जा सभी को महामारी के प्रति सचेत करती है और उससे बचने के तरीके सभी स्त्रियों को सिखाती भी है पर महेंद्र सिंह उसकी चपेट मैं आ जाते है , पर वो अपनी जिद्द के कारण ऊर्जा से इलाज कराने को राजी नहीं होते है । महेंद्र सिंह की पत्नी ऊर्जा के पास आकर उससे फिर भी उनका इलाज करने को कहती है । ऊर्जा किसी तरह से उनकी जान बचा लेती है और उसकी सतर्कता और जागरूकता की वजह से गांव से कुछ दिन मैं ही महामारी का सफाया हो जाता है ।

अब ऊर्जा को सभी गांव मैं मान सम्मान देते है और महेंद्र सिंह भी उसे गांव के लिए इतना कुछ करने के लिए धन्यवाद देते है और अपने किए हुए पर अफसोस करते है । ऊर्जा पूरे गांव के सामने उन्हे दादा और दादी कह कर पुकारती है और सच से अवगत कराती है ये सुनकर मैं महेंद्र सिंह ऊर्जा को गले लगा लेते है और अपनी गलती के लिए पछताते है, सारे गांव के सामने महेंद्र सिंह कहते है की बेटियां बोझ नहीं हमारा स्वाभिमान होती है तथा राधे और शीनू को गांव वापस बुलवा लेते है और राधे को सब सौंप कर निश्चिंत हो जाते है ।

#बेटी _हमारा_स्वाभिमान

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