डॉक्टर साहब का नाम उनके कस्बे में बहुत इज्ज़त और आदर से लिया जाता था। चालीस वर्षों से उनकी प्रैक्टिस का डंका बजता था। लोग उनकी ईमानदारी और ज्ञान की प्रशंसा करते नहीं थकते थे। लेकिन समय के साथ, उनकी प्रैक्टिस धीमी होने लगी। पहले जहां दिनभर में बीस-तीस मरीज आते थे, अब पांच-छह मरीज ही बचे थे।
उनकी बेटी नीतिका, जिसने डॉक्टर बनने का सपना अपने पिता को देखकर देखा था, हाल ही में पढ़ाई पूरी करके उनके ही क्लीनिक में प्रैक्टिस शुरू की थी। नीतिका अपने पिता के पदचिन्हों पर चलकर चिकित्सा सेवा में नाम कमाना चाहती थी। लेकिन जो बात डॉक्टर साहब के लिए एक रहस्य बनी हुई थी, वह यह थी कि उनकी बेटी की प्रैक्टिस दिनोंदिन इतनी बढ़ रही थी कि उनके क्लीनिक में अब रोज़ाना साठ-सत्तर मरीज आने लगे थे।
एक ओर जहां यह सब देखकर डॉक्टर साहब गर्व महसूस कर रहे थे, वहीं उनके मन में आशंकाओं ने भी जन्म लेना शुरू कर दिया। आखिर ऐसा क्या कर रही थी उनकी बेटी, जो उन्होंने अपने चालीस वर्षों की प्रैक्टिस में नहीं किया था?
डॉक्टर साहब ने कई दिनों तक यह सब सोचते हुए बिताया। उन्होंने देखा कि जो महिलाएं पहले उनके पास थकी हुई और असंतुष्ट सी आती थीं, वे अब बहुत प्रसन्न और उत्साहित लग रही थीं। उन्होंने सोचा, “क्या मेरी बेटी मुनाफे के चक्कर में कोई गलत इलाज तो नहीं कर रही? कहीं वह मरीजों को स्टीरॉयड या ऐसे दवाइयों का इस्तेमाल तो नहीं कर रही, जो उनके लिए नुकसानदेह हो सकती हैं?”
अंततः, उन्होंने खुद सच्चाई का पता लगाने का फैसला किया और क्लीनिक में अचानक जाकर नीतिका की प्रैक्टिस को देखने का निश्चय किया।
उस दिन डॉक्टर साहब सुबह-सुबह क्लीनिक पहुंचे। उन्होंने देखा कि क्लीनिक में हलचल मची हुई थी। मरीजों की भीड़ लगी थी, और हर कोई नीतिका की तारीफ करता नहीं थक रहा था।
वे वही महिलाएं थीं, जो पहले छोटी-मोटी बीमारियों का बहाना बनाकर डॉक्टर साहब के पास आती थीं और जिन्हें डॉक्टर साहब खानपान और दिनचर्या सुधारने की सलाह देकर वापस भेज दिया करते थे। अब वे महिलाएं न केवल प्रसन्न थीं, बल्कि अपने स्वास्थ्य में सुधार को लेकर भी आश्वस्त लग रही थीं।
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थोड़ी देर बाद, जब नीतिका अपने काम से फ्री हुई, तो डॉक्टर साहब ने उससे बात की। उन्होंने सीधे सवाल किया, “बेटा, तुम मरीजों का इलाज कैसे कर रही हो? मुझे समझ में नहीं आ रहा कि इतने सारे मरीज तुम्हारे पास क्यों आ रहे हैं। कहीं तुम मुनाफे के चक्कर में स्टीरॉयड या ऐसी दवाइयों का तो इस्तेमाल नहीं कर रही हो?”
नीतिका ने मुस्कुराते हुए कहा, “नहीं पापा, ऐसा कुछ भी नहीं कर रही। आप तो जानते हैं, मैंने आपकी ही शिक्षा और सिद्धांतों पर काम करना सीखा है। मैं किसी भी गलत तरीके का सहारा नहीं ले सकती।”
डॉक्टर साहब ने फिर पूछा, “तो फिर इतना फर्क कैसे आ रहा है? जो महिलाएं पहले मेरे पास आती थीं, वे अब इतनी स्वस्थ और खुश क्यों दिख रही हैं?”
नीतिका ने धीरे से जवाब दिया, “पापा, इन महिलाओं को देखकर आपको क्या लगता है?”
डॉक्टर साहब ने कहा, “वे सभी पहले की तुलना में स्वस्थ और प्रसन्न लग रही हैं। लेकिन ये महिलाएं पहले भी मेरे पास आती थीं। उनकी बीमारियां भी गंभीर नहीं होती थीं।”
नीतिका ने समझाया, “पापा, यही बात तो है। इन महिलाओं को कोई बड़ी बीमारी नहीं है। ये बस अपनी दिनचर्या और एक ही तरह के जीवन से ऊब चुकी हैं। इन्हें केवल थोड़ा ध्यान और देखभाल चाहिए।”
डॉक्टर साहब थोड़ा उलझन में पड़ गए। उन्होंने पूछा, “ध्यान और देखभाल से क्या मतलब है? मैं तो हमेशा उन्हें अच्छा खानपान और संतुलित जीवन जीने की सलाह देता था। क्या यह काफी नहीं था?”
नीतिका ने मुस्कुराते हुए कहा, “पापा, आप बिल्कुल सही कहते थे। लेकिन कभी-कभी लोगों को अपनी समस्या का समाधान तुरंत चाहिए। मैं इन महिलाओं की जांच करती हूं और उनकी स्थिति के अनुसार उन्हें आयरन या बी12 के इंजेक्शन देती हूं। अगर कमजोरी होती है, तो ग्लूकोस या सलाइन चढ़ा देती हूं। ये छोटे-छोटे कदम उनके शरीर को तुरंत ऊर्जा देते हैं और उनके मनोबल को भी बढ़ाते हैं।”
“लेकिन बेटा, क्या ये सब करना जरूरी है? और इससे उन्हें क्या खास फायदा मिलता है?” डॉक्टर साहब ने पूछा।
“पापा, हमारे देश में घरेलू महिलाएं अक्सर अपनी सेहत को अनदेखा कर देती हैं। वे पूरे परिवार का ध्यान रखती हैं, लेकिन अपने खानपान और स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं देतीं। इन छोटे-छोटे कदमों से उन्हें लगता है कि वे खुद के लिए कुछ कर रही हैं। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है। और जब उनका कोर्स पूरा होता है, तो मैं उन्हें खानपान और संतुलित दिनचर्या का महत्व समझाती हूं।”
नीतिका की बात सुनकर डॉक्टर साहब को अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने महसूस किया कि वे इतने सालों तक इन महिलाओं की नब्ज़ को नहीं पकड़ पाए थे। वे हमेशा दवाओं और सलाह पर ध्यान देते रहे, लेकिन कभी यह नहीं समझा कि इन महिलाओं को सबसे ज्यादा जरूरत ध्यान और देखभाल की थी।
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उन्होंने अपनी बेटी के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा, “तुमने बहुत अच्छा काम किया, बेटी। मैं अब समझ गया कि इलाज केवल दवाइयों से नहीं होता। यह भावनात्मक और मानसिक देखभाल से भी होता है। तुमने सचमुच इन महिलाओं की ज़िंदगी में नई रोशनी लाई है।”
धीरे-धीरे, डॉक्टर साहब की यह समझ उनके गर्व का कारण बन गई। उन्होंने महसूस किया कि नीतिका ने जो तरीका अपनाया था, वह न केवल इन महिलाओं के लिए फायदेमंद था, बल्कि यह चिकित्सा के क्षेत्र में एक नई दृष्टि को भी उजागर करता था।
नीतिका के क्लीनिक की लोकप्रियता बढ़ती गई। मरीजों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई। जो महिलाएं पहले छोटी-मोटी बीमारियों का बहाना बनाकर डॉक्टर साहब के पास आती थीं, वे अब स्वस्थ और प्रसन्न होकर अपनी ज़िंदगी को बेहतर तरीके से जी रही थीं।
दोस्तों चिकित्सा केवल दवाइयों तक सीमित नहीं है। एक डॉक्टर को न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना चाहिए। नीतिका ने अपनी समझदारी और संवेदनशीलता से यह साबित कर दिया कि मरीजों की नब्ज़ को समझना और उनके साथ सही तरीके से संवाद करना ही एक सफल डॉक्टर की पहचान है।
डॉक्टर साहब ने अपनी बेटी के प्रयासों पर गर्व करते हुए अपने क्लीनिक की कमान पूरी तरह से नीतिका को सौंप दी। उन्होंने महसूस किया कि चिकित्सा के क्षेत्र में एक नई पीढ़ी का नेतृत्व शुरू हो चुका है, और यह नेतृत्व सही दिशा में है।
मूल रचना
वर्षा गर्ग