दर्शना जी और उनके पति दीपक जी मेज़ पर बैठे नाश्ता कर रहे थे। उनके दोनों बेटे नाश्ता कर और टिफिन लेकर फैक्ट्री के लिए निकल चुके थे।बड़ी बहू नीरजा उन्हें परांठे परोस रही थी और छोटी बहू काजल ने चाय चढ़ा रखी थी।
दर्शना जी का संयुक्त परिवार था। दोनों बेटे अपने पापा के साथ फैक्ट्री संभालते और अब तो दीपक जी कम ही फैक्ट्री जाते थे। बेटों ने व्यवसाय को अच्छी तरह से संभाल लिया था। उनके दोनों बेटों के एक एक बच्चा था। बड़े बेटे की एक बेटी थी और छोटे बेटे का एक बेटा। दोनों बच्चे स्कूल जा चुके थे।
“नीरजा बेटा, परांठे तो बहुत अच्छे बने हैं”, दीपक जी ने कहा तो नीरजा मुस्कुरा उठी।
“तुम दोनों भी अपना नाश्ता ले आओ जल्दी से”, दर्शना जी बोली।
“मम्मी जी, मुझे थोड़ा सिर दर्द है तो मैं अभी दवाई खाकर लेटने जाऊंगी”, नीरजा ने कहा।
“ठीक है बेटा.. अभी आराम कर लो”।
इसी तरह दोपहर हुई…दर्शना जी अपनी तरफ से बहुओं की हर संभव मदद कर देती थी। दोपहर को भी खाने की मेज़ पर ना नीरजा बैठी और ना ही काजल। दोनों के बच्चे भी स्कूल से आ चुके थे और अंदर ही अपने अपने कमरे में बैठे खाना खा रहे थे पर.. ऐसा रोज़ नहीं होता था। रोज़ तो बच्चे सब के साथ ही खाना खाते और स्कूल की अपनी पूरी कहानी सुनाते।
दर्शना जी को लगा शायद वह कुछ ज़्यादा ही सोच रही हैं। खैर किसी से कुछ ना कह वह अपने कामों में मस्त रही। यही तो उनकी खासियत थी कि छोटी-छोटी बातों को उन्होंने कभी भी ज़्यादा तूल नहीं दिया था और आज भी उन्होंने वही किया। रात को जब सभी आए तो सब इकट्ठे बैठे पर फिर भी कुछ तो था जो खिंचा खिंचा था।
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दर्शना जी की दोनों बहुओं में बहुत प्यार था। हां आम घरों की तरह कभी-कभी बच्चों की वजह से वह भी एक दूसरे से गुस्सा हो जाती पर फिर दो-तीन दिन बाद ठीक भी हो जाती। दिन बीत रहे थे। दर्शना जी को कुछ ना कुछ गड़बड़ का एहसास तो हो ही गया था। ना तो नीरजा और काजल एक दूसरे से खुलकर बात कर रही थी और ना ही बच्चे मिलकर धमाचौकड़ी मचा रहे थे.. नहीं तो उन दोनों शैतानों को शांति से बिठाना ही सबसे मुश्किल काम था।
आजकल कैसे दोनों स्कूल जाकर चुपचाप से रहते हैं। ना आपस में बातें करते और ना ही खेलते और ना ही पार्क खेलने भी इकट्ठे जाते।आजकल बरसात का मौसम था तो बारिश में भी मस्ती करते वह बिल्कुल नज़र नहीं आए। नहीं तो कहां मांओं को उन्हें खींचकर अंदर लाना पड़ता था ताकि कहीं वे बीमार ना पड़ जाए। दर्शना जी सोचने लगी कि अब तो उन्हें इस मामले में दखल देना ही पड़ेगा।दर्शना जी सोच रही थी कि कहीं बहुओं की आपसी नाराज़गी नफ़रत की दीवार में ना बदल जाए जिसे तोड़ना कभी संभव न हो सके।यही सोचते हुए उन्होंने इस मामले को सुलझाने की ठान ली।
“नीरजा, ज़रा यह साड़ी तो देखना.. सोच रही हूं बबलू (दर्शना जी का भतीजा) की शादी में यही पहन लूं”, दर्शना जी ने बहू के कमरे में आकर कहा।
“जी मम्मी जी, अच्छी लग रही है”।
“काजल, ज़रा सुन तो बेटा.. तू बता.. यह साड़ी ठीक है या कोई और.. मुझे तो खुद से कभी समझ ही नहीं आता”, दर्शना जी ने काजल को भी वहीं बुला लिया।
दर्शना जी बातें तो साड़ी की कर रही थी पर ध्यान उनका बहुओं के हावभाव पर ही था और उनकी तरफ देखकर उन्हें पक्का यकीन हो गया कि दोनों एक दूसरे से बात करने से कतरा रही थी। अनुभवी आंखें ऐसे कैसे धोखा खा सकती थी।
“तुम दोनों के मन में क्या चल रहा है”? एकदम से दर्शना जी के प्रश्न से दोनों चौंकी।
“कुछ नहीं.. कुछ भी तो नहीं”, दोनों सकपका कर बोली।
“तुम दोनों झूठ तो ठीक से बोल नहीं पा रही हो.. यह तुम भी जानती हो और मैं भी.. तो अच्छा है सच सच बता दो ऐसे मन में रखने से क्या फायदा”, दर्शना जी बोली।
कुछ देर का मौन छाया रहा कमरे में और फिर कुछ पलों बाद नीरजा बोली,” मुझे तो कुछ दिक्कत नहीं है… काजल से ही पूछो जो मेरी बातें रीमा (पड़ोसन) से करती है। मैंने हमेशा से इसे छोटी बहन माना है और यह ही लोगों को कहती फिरती है कि मेरी जेठानी मुझ पर हुकम चलाती है”।
“भाभी.. यह क्या कह रही हो आप? मैंने कब कहा यह सब और रीमा.. उससे तो आप बातें करती हो कि मैं डबल फेसड औरत हूं”।
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“बस तो यह बात है..अब तो बात साफ हो गई”।
“क्या मम्मी जी”?
“यही ना कि रीमा से ना तुमने बात की ना ही काजल ने। यह सब उसके दिमाग की उपज है जिसे वह तुम दोनों के खिलाफ इस्तेमाल कर रही है”।
“पर.. वह ऐसा क्यों करेगी”, नीरजा ने पूछा।
“इसलिए क्योंकि उसकी तो अपनी जेठानी के साथ बनी नहीं और पिछले महीने मंदिर में मिसेज खन्ना ने उसे सुना दिया और तुम दोनों का उदाहरण दिया कि तुम कितने अच्छे से रहती हो एक साथ। बस.. अब समझ आया.. इसलिए कहती हूं कि मन में बात रखने से कुछ हासिल नहीं होता और एक दूसरे से बोलना छोड़ देना तो और गलत हो जाता है.. इससे सिर्फ गलतफहमी को ही बढ़ावा मिलता है और कुछ नहीं”।
“हां आप सही कह रही हो मम्मी जी”,दोनों बोली।
“और तुम दोनों ने तो बच्चों को भी अपनी बेवकूफी का निशाना बनाया.. घर को घर ही नहीं रहने दिया वे बेचारे दोनों इस बारिश के मौसम में खिलने की बजाय उल्टा मुरझा गए हैं”। तुम दोनों की इसी नादानी से बच्चों के बीच में कब नफरत की दीवार खड़ी हो जाएगी तुम्हें पता भी नहीं चलेगा।
“हमें माफ कर दो मम्मी जी”।
“मुझसे नहीं.. एक दूसरे से माफी मांगो”।
दोनों बहुओं ने एक दूसरे को गले लगाया। अगले दिन इतवार था। दोपहर से ही तेज़ हवाएं चल रही थी। कुछ देर बाद बारिश शुरू हो गई। दोनों बच्चे भाग कर बारिश में भीग कर मस्ती करने लगे। बेटे भी घर पर थे तो वे भी उनके साथ मिल गए नीरजा और काजल ने पकौड़े बनाने के लिए कढ़ाई चढ़ा दी। गीली मिट्टी की सोंधी खुशबू और पकौड़ों की खुशबू एक साथ मिलकर हर तरफ फैल गई और साथ ही बच्चों की खिलखिलाहट से सारा घर गूंज उठा। दर्शना जी को आज फिर से घर-घर लगने लगा।अपनी सूझबूझ से उन्होंने दोनों बहुओं के बीच एक अदृश्य सी नफ़रत की दीवार को हटा दिया था।
#स्वरचित एवं मौलिक
गीतू महाजन,
नई दिल्ली।