दिवाली पर बहू नहीं बेटी याद कर रही है। – मंजू तिवारी

बिटिया तुम सब लोग कब घर आ रहे हो दिवाली आने के 1 महीने पूर्व से ही पूछने लगते थे  ,, कहने के लिए तो वह वंदना की ससुर जी थे लेकिन बंदना को अपने ससुर जी से पिता जैसा दुलार मिला था।,,, बंदना से बिल्कुल बेटी जैसे ही बात करते,,, अक्सर सासू मां से भी कहते कभी बेटी और बहू में फर्क मत करना,,, समझ लो तुमने एक बेटी इस घर से विदा की है दूसरी बेटी बहू के रूप में घर में आई है। लेकिन सास सास होती है। लेकिन पापा की वजह से शायद बहुत ज्यादा सासपन नहीं दिखा सकती थी पापा वकील थे तो उन्हें समझा कर रखते थे,,,, हमेशा कहते,, बंदना भी अपने पिता को तुम्हारी बेटी की ही तरह प्रिय है।

अक्सर बंदना से कहते मैंने तुम्हारे पापा को वचन दिया है।,,, इस घर में और बहूएं आ सकती हैं। लेकिन तुम इस घर की बड़ी बहू हो  मैं तुम्हें सदा अपनी बेटी ही मानता हूं।,,, बंदना के पापा भी बंदना से बहुत प्रेम करते थे क्योंकि उनके दो ही बेटियां थी तो उन्हें यह कहकर चिंता मुक्त कर दिया था और बंदना के ससुर जी वंदना के पापा के दोस्त भी थे,,,

बंदना अपने ससुर जी से नजरों का पर्दा तो करती थी लेकिन घूंघट का पर्दा तो बिल्कुल भी ना था कभी-कभी सर से साड़ी नीचे गिर जाए तो कभी सासू मां टोकती,,, तो सासू मां से कहते बच्चा है कोई बात नहीं खाने खेलने दो,, यह बात उसने अपने कानों से सुनी थी जब ससुर जी कह रहे थे,,,, और बंदना से बहुत बातें करते  उस पर बड़ा गर्व महसूस करते,,,, यह बहू मेरी पसंद की है।,,,, शायद इस घर में वंदना जैसी बहू अब आगे ना आए,,,, जब कोई उनसे कहता वकील साहब आपने तो अपनी मुंह सर पर बिठा कर रखी है।,,,




तो उनका जवाब होता हम तो अपनी बहू को ऐसे ही सिर पर बैठा कर रखते हैं।,,,, उनकी स्नेहा से भरी हुई आवाज इस तरह से लगती थी जैसे कोई पिता बुला रहा हो,,,, फोन पर घंटों बात करते जैसे कोई पिता अपनी बेटी से बात करता,,,, जबकि बंदना के पापा तो बहुत ही बात कम करने वाले थे और बंदना को भी कम बात करने की आदत थी,,,, लेकिन यह पापा तो बहुत बात करने वाले थे धीरे-धीरे बंदना को आदत हो गई और इतनी सहज हो गई कि खुल कर पापा और बेटी वाला रिश्ता कायम हो गया,,, 

जब दिवाली आती तब हम घर के लिए रवाना होते सारी रात फोन करके पूछते अब तुम्हारी गाड़ी कहां पहुंची अब तुम कहां हो और हमें रात में गाड़ी से स्टेशन लेने आते,,, हमारा मन बड़ा खुश हो जाता,,,, सासू मां बहुत सारे पकवान बना कर रखती हमारे लिए,,,, सफर  सूट नहीं करता इसलिए तबीयत खराब हो जाती थी ससुर समान पापा कहते जाओ बंदना आराम करो   । बंदना और सासू मां  दिवाली की खुशी-खुशी तैयारी करते,,,, बंदना के सामने सारे जेवर रख दिए जाते और उसे कहते मेरी लक्ष्मी तो यह है जितने जेवर पहनने हो तुम्हारे हैं पहन लो,,,,,

 बंदना सजधज के तैयार हो जाती ससुर जी पूरे घर में घूमती हुई अपनी बहू जैसी बेटी को देख कर इतने खुश हो जाते,, उनको शब्दों में बयां करना मुश्किल हो रहा है। जब सब लक्ष्मी पूजन पर बैठते तो ससुर जी मंत्र उच्चारण करते सब पूजन में बैठे हुए होते सबसे पहले बंदना को कहते आगे आओ और उसके मस्तक पर अपने हाथ से टीका लगाते ,, और कहते,,,हो गया लक्ष्मी पूजन मेरी लक्ष्मी तो यह है।,,,, हमेशा लक्ष्मी पूजन पापा ही करते थे पता नहीं उस दिवाली पर ऐसा क्या आभास हो गया था




 पति पत्नी पूजन के लिए उनके साथ बैठे,,, पापा कहने लगे चलो तुम दोनों पूजन करो,,, एक दूसरे का मुंह देख रहे थे,,,, वंदना ने कहा पापा आप पूजन करो हम क्यों,,,? पापा का जवाब आया तुम लोग पूजन करना कब सीखो गे,,,,? चलो पूजन करो… चाह कर भी मना नहीं कर पाए,,,, और कहते तुम बड़े हो ,, बंदना और उसके पति से पूजन करवाने लगे,,,,, हमेशा बंदना से कहते तुम इस घर की बड़ी बहू हो,,, मेरे होते हुए तुम्हारा कोई हाथ नहीं पकड़ सकता,,,, आज वह इस दुनिया में नहीं है।  हॉल हाल में टंगे हुए छायाचित्र को देखकर पापा से बंदना कहना चाहती है। 

अब हमें घर बुलाने वाला कोई नहीं है। आपके जाने के बाद घर घर नहीं लगता,,,, बच्चे बार-बार पूछते हैं। मम्मा क्या हुआ रो क्यों रही हो,,,,? यह आशु एक बहू के नहीं एक बेटी के अपने पिता समान ससुर जी के लिए है। जिन्होंने बेटी वाला स्नेहा वंदना को  दिया और अपने आसपास समाज में भी एक बदलाव लाएं,,,, वंदना घर गृहस्ती कामों में निपुण बिल्कुल भी निपुण न थी यह बंदना के पिता ने बंदना के ससुर जी को बता दिया था,,,, खाने में कुछ कमी रह भी जाए उस खाने को उस तरह से खाते हैं

 जैसे बेटी के बने हुए खाने में पिता कभी दोष नहीं निकालता,,,, कोई उसमें कमी भी निकालें,,, तो सभी को उल्टा डांट देते क्या कमी है इसमें,,, तो किसी की हिम्मत ना थी कि कोई बोल पाए,,,,, लेकिन बंदना भी किसी कार्य को करने में जी-जान लगा देती इसलिए सारे कामों बंदना बहुत ही सहज हो गई,,,

वंदना भगवान से कहती है ।पापा की कोई इतनी उम्र भी नहीं थी अभी 54 साल की ही तो थे इतनी जल्दी क्यों बुला लिया ,,,, उनको याद करके बार-बार आंखें भर रही है।,,,, पापा अब हम घर कैसे आए  कोई बुलाने वाला नहीं,,,, हमारे परिवार में वह प्रेम भी नहीं रहा,,,, ,,, पापा दिवाली पर आप बहुत याद आ रहो हो,,, आपको बहू नहीं बेटी याद कर रही है।

मंजू तिवारी, गुड़गांव

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