दिव्यतारा (भाग-5) – संध्या त्रिपाठी : Moral stories in hindi

अब तक आपने पढ़ा —

            एक दिन मजाक मजाक में दिव्य ने पूछा…. तारा तुझे कैसा लड़का चाहिए…?

          तारा ने भी बड़े भोलेपन से जवाब दिया ….आपके जैसा दिव्य… जो मुझे समझ सके ….तारा का ये जवाब न जाने क्यों दिव्य को बहुत अच्छा लगा ….शायद यही तो सुनना चाहता था दिव्य… !

अब आगे —

           एक दिन दिव्य ने हिम्मत जुटाकर सिर्फ इतना ही कह सका था…. इतनी जल्दी क्या है , हो जाएगी ना तारा की शादी…।

           अरे , अब क्या जल्दी है… शादी ब्याह भी एक उम्र में ही अच्छी लगती है…. तू तो बस हमें लड़का बता…. कहकर मालती ने दिव्य की सोच या मंशा को नजर अंदाज कर दिया….।

          आज सुबह से तारा थोड़ी शांत और सीरियस थी ….उसने फोन उठाया और दिव्य को लगाया …..

…..हॅलो ….

हां बोलो तारा…..

दिव्य मैं आपसे कुछ जरूरी बात करना चाहती हूं …..

अभी इसी वक्त कुछ अनर्थ ना हो जाए …….इससे पहले …..

अरे क्या हुआ तारा….मैं अभी आता हूं…. दिव्य ने कहा ……

नहीं दिव्य आप मत आओ ….

घर में बात नहीं हो पाएगी ……

बात ही कुछ ऐसी है …….वो पास वाले पार्क में…. मैं भी वहां आ जाती हूं….!

    आज दिव्य को न जाने क्यों तारा से मिलने की काफी खुशी थी …..उसे लग रहा था …जो वो पिछले कई महीनो से तारा के लिए महसूस कर रहा है…..

लगता है शायद तारा भी वही सोच रही है ….

 अनजाने में दिव्य को तारा से कब प्यार हो गया शायद दिव्य खुद भी ना समझ सका था…..।

      नीले सूट में तारा गजब की आकर्षक लग रही थी …..थोड़ी परेशान जरूर थी ….दिव्य ने हाथ पकड़ कर कहा ….बोलो तारा …

       आज दिव्य के कान तरस रहे थे… तारा के मुख से अपने लिए कुछ सुनने को …..पार्क में कई युगल जोड़ी एक दूसरे का हाथ पकड़े घूम रहे थे…. जो खुशनुमा शाम को और भी प्यार के खुशबुओं से महका रहे थे…!

    दिव्य मैं आकाश से प्यार करती हूं…. दिव्य का हाथ कसकर पकड़ तारा ने एक सांस में कहा….

क्या……..????

    दिव्य तारा से हाथ छुड़ा , कसकर मुट्ठी बांधा….. उसे इस प्रतिकूल बात की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी ….दिव्य को ऐसा लगा जैसे ना जाने कितने बिजली के झटके एक साथ लगे हो….।

     क्या हो गया  दिव्य……

तारा दिव्य की स्थिति देखते हुए पूछी….

वो कुछ नहीं …कुछ भी तो नहीं …दिव्य ने सारी भावनाएं ,अरमान , प्यार सब कुछ अंदर ही अंदर घोट कर पी गया…।

हां तो कौन है आकाश ….?

वो तेरे से प्यार करता है …?

शादी करना चाहता है ….?

तो फिर परेशानी क्या है …मैं बात करूंगा अंकल आंटी से…. तू चिंता मत कर तारा….. !

सच में दिव्य…क्या ये संभव होगा… क्या है ना दिव्य…हम मध्यम वर्गीय परिवार में…. मम्मी पापा लड़का ढूंढे… चाहे वो अनजान ही क्यों ना हो… तो शादी करने में कोई हर्ज नहीं होता ….पर यदि लड़की खुद कोई लड़का बताएं , तो बहुत बड़ी बात हो जाती है…।

      अरे छोड़ ना तारा ….

चल मैं बात करता हूं ….

मैं तो बस हर हाल में तुझे खुश देखना चाहता हूं ….

आज दिव्य को खुद समझ में नहीं आ रहा था… वो दिल पर पत्थर रखकर इतनी बड़ी-बड़ी बातें कैसे कर पा रहा है…!

   अगले दो दिनों तक दिव्य का ना कोई फोन ना घर आना ….तारा की मायूसी बढ़ती जा रही थी …वो सोच रही थी …बड़ा आए थे मम्मी पापा से बात करने…… हिम्मत नहीं हो रही होगी …..मैं जानती हूं मेरी सहायता कोई नहीं करेगा ….और मेरे तपन भैया तो बिल्कुल भी नहीं …..एक दिव्य से उम्मीद थी वो भी….!

   तभी फोन की घंटी बजी….

  दिव्य….

हां सुन ना तारा….

एक बार और सोच ले…..

वो आकाश ….सच में तुझे प्यार करता है ना ….?

क्या है ना ये रईस घरों के शहजादे कभी-कभी…..

     बस भी करिए दिव्य…..

2 साल से जानती हूं आकाश को…. मुझे पाने के लिए कितना मेरे आगे पीछे घूमता रहा …..ऐसे ही थोड़ी ना मैंने …..

आगे तारा और कुछ कहती दिव्य ने कहा…. बस मैं आज बात करूंगा अंकल आंटी से….।

        अरे तो लड़का अच्छा है …पढ़ा लिखा है ….बिजनेस करता है… प्रतिष्ठित परिवार है ..और सबसे बड़ी बात मेरी पोती को पसंद है ….तो किसी को क्या परेशानी होगी ….दादी ने मामला समझते हुए , तारा की तरफ इशारा करते हुए कहा ….

    और एक बात सुन ले मुन्ना और बहू तू भी …जब रिश्ता लड़का खुद पसंद कर आगे आकर बोले ना तो समझ ले लड़की खुश रहेगी….!

         दोनों पक्षों के बातचीत के बाद शादी की तारीख भी पक्की हो गई….।

      तपन को फोन लगाकर सारी परिस्थितियों से अवगत करा दिया गया और शादी से कुछ पहले ही आने को कहा गया..।

   ये  महिना खुशी खुशी तारा ने बिताए….. सपनों की दुनिया में , सपनों का राजकुमार जो मिल रहा था…!

      सामान की लिस्ट से लेकर मेहमानों के लिस्ट तक के कामों में दिव्य हाथ बंटाता  था…।

   भैया आ गया … तपन के गले लगते ही तारा खुशी से झूम गई ….

इस बार तपन के आने का इंतजार तारा कुछ ज्यादा ही कर रही थी ..

घर के सारे लोग तपन के आने का इंतजार कर रहे थे….

आकाश से कब मिलवाएगी तारा.. ? आज फिर तपन ने बाल खींचते हुए मजाक में कहा…!

भैया आप भी ना … कह कर तारा शरमा गई .. .एक बात बता तारा …तुझे शादी की इतनी जल्दी थी…?

     मेरे लिए रुक नहीं सकती थी …मैं बड़ा हूं ना…  पहले तो मेरी शादी होनी चाहिए …क्यों दादी …?

   नहीं लल्ला …लड़कियों की शादी लग जाए तो कर देनी चाहिए ….फिर साल भर की ही तो छोटी है तुझसे….

और फिर तेरी नौकरी लगते ही तेरे लिए भी चांद सी बहू ले आऊंगी…. दादी भी खुश होते हुए बोलीं…।

       ये ना तुम लड़कियों का ही अच्छा है ….ना नौकरी की मजबूरी ना कैरियर … .बस जब चाहो कर लो शादी….. क्यों दिव्य….. तपन ने फिर कहा ….दिव्य शायद कहीं खोया था… हड़बड़ा कर… हां हां ही बोल पाया…।

        कैसी बात कर रहा है भैया ….?

क्या लड़का …क्या लड़की…

आत्मनिर्भर तो दोनों को ही होना चाहिए ना …..

अब सिर्फ सरकारी नौकरी ही तो रोजगार की श्रेणी में नहीं आता है ना भैया ……

मैं भी तो शादी के बाद कुछ करूंगी ही भैया……

वैसे भी मैंने दिमाग में कुछ प्लानिंग की है…. और वो मैं आपको बाद में बताऊंगी…!

      ठीक है मैं चलता हूं  तपन…

शाम को मिलते हैं ….  

  हां बेटा …वो कार्ड में सबके नाम लिखने हैं …और कार्ड बांटना है …

 तो एक-दो दिन में तुम और तपन मिलकर ये काम भी निपटा ही लेना…  शर्मा जी ने जिम्मेदारी देते हुए कहा…।

  हां अंकल …आप चिंता ना करें सब हो जाएगा…

      सारे कार्ड बट गए तैयारी लगभग पूरी ही हो गई थी सब बड़े खुश थे एक शर्मा जी और मालती खुशी के साथ-साथ थोड़े चिंतित भी थे… बेटी की शादी में कमी ना हो जाए …अच्छे से शादी निपट जाए और फिर तारा  ससुराल चली जाएगी …घर की रौनक… इस घर का आंगन सुना हो जाएगा…!

चहकना , इतराना , इठलाना सोचते सोचते मालती की आंखों में आंसू आ गए…

अरे मालती… दुखी ना हो …इसी शहर में रहेगी अपनी बिटिया …

फिर उसके पसंद की शादी है ….वो खुश है ….जब चाहेगी तब हमसे मिलने आ जाएगी ….शर्मा जी ने मालती का हाथ पकड़ आंसू पोछा…।

      पर कहते हैं ना … बिटिया के पराये घर जाने का …कहीं ना कहीं कसक तो रहता है ….

   पर एक खुशी भी होती है… बिटिया की शादी अच्छे से संपन्न होने की खुशी…

शायद हर मां-बाप यही चाहते हैं बेटी अपने ससुराल में खुश रहे …तभी मां-बाप अपने घर में खुश रह सकते हैं…!

       जल्दी करो …अभी तक तारा पार्लर से आई नहीं क्या ….?

तपन  , दिव्य को कार लेकर भेज दो पार्लर…. तारा को लेकर आ जाएगा…

और तुम द्वार पूजा की तैयारी करो…

पंडित जी …ये कलश यहां रख दूं ….शर्मा जी कभी इधर कभी उधर दौड़ भाग में लगे थे ….

जीजी , आप साड़ी तो बदल लें… हां हां बदलती हूं ….मेहमानों में से रिश्ते की देवरानी मीना ने कहा …

   अरे क्या बताऊं  मीना….तारा मुंह फुला कर पार्लर गई है ….

क्यों जीजी ….?

वो कह रही थी …मेरी शादी में मम्मी आप भी मेरे साथ पार्लर जाकर तैयार हो….. अब तू ही बता …मैं सब कुछ छोड़कर पार्लर में जाकर बैठ जांऊ…?

फिर बड़े प्यार से मैंने गोद में बिठाकर उसे समझाया….

बेटा आज सब तुझे देखेंगे…. सिर्फ तुझे और आकाश को …..

    फिर मेरे घर का काम है तो जिम्मेदारी भी मेरी है ना …सारी व्यवस्था देखने की ….तब जाकर समझी है लड़की…!

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दिव्यतारा ( भाग 6 और अंतिम) – संध्या त्रिपाठी : Moral stories in hindi

(स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित रचना)

संध्या त्रिपाठी

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