हमेशा की तरह सरोज के भाई का इस बार भी राखी का पांच सौ रुपए का मनीऑडर आ गया।ना ही उसने कोई फोन किया,कि दीदी तुम्हारी राखी मिल गई थी ना ही उसकी कोई चिट्ठी आई।सरोज की आँखें फिर से नम हो गईं।माता पिता के जाने के बाद सरोज के छोटे भाई साहिल ने तो जैसे उससे किनारा ही कर लिया था।हर जिम्मेदारी से दूर भागने लगा था।सरोज बड़ी थी इसलिए अपने भाई से अब भी उतना ही प्यार करती थी।वो अपनी तरफ से भाई भाभी को फोन लगाकर उनका हालचाल पूछती रहती थी
पर भाई तो अपने परिवार में ही मस्त था उसे तो बहन की खोज खबर लेने की फुर्सत ही नहीं थी और भाभी हमेशा घर के काम काज का वास्ता देकर अपने आप को मासूम साबित कर देती थी।अब जब भाई ही गैर जिम्मेदार हो तो भाभी से क्या शिकायत करनी..?बस यही सोचकर सरोज चुप रह जाती।सरोज हर वर्ष भाई को राखी के साथ भावुकता से भरा पत्र भी लिखकर भेजती थी कि शायद पढ़कर भाई का दिल पिघल जाए..
पर कहते हैं ना पत्थर दिल कब पिघलते हैं? साहिल बहन के पत्र का कोई जवाब नहीं देता बस मनीऑडर भेजकर अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाता था।कई बार सरोज के बेटा बेटी उसे ताना भी देते कि -“मम्मा,मामा मामी इतने कितने बिजी रहते हैं कि उन्हें हम लोगों से बात करने की फुर्सत ही नहीं मिलती?” बेचारी सरोज मुस्कुराकर कहती -“बेटा,मामा ऑफिस के काम में व्यस्त रहते हैं और बच्चे अभी छोटे हैं तो मामी उन्हें संभालने में लगी रहती है।”
“रोज न सही कभी कभी मामा तो आपको फोन कर सकते हैं ना?हम लोग छोटे थे तो आप और पापा भी तो बुआ को मिलने जाते थे,फोन से उनका हालचाल पूछते थे।आप तो दादा दादी को भी संभालते थे जबकि मामा मामी के साथ अब तो नाना नानी भी नहीं हैं।
“बच्चों की बात सुनकर सरोज निरुत्तर हो जाती और मन ही मन रो लेती थी।बच्चों के दर्द को भी वो समझती थी।आखिर एक ही तो मामा है उनका।मामा लोग कितना प्यार करते हैं बच्चों को पर यहां तो प्यार करना दूर मामा को अपने भांजे भांजी से बात तक करने की फुर्सत नहीं थी।वैसे रोज फेस बुक पे अपना स्टेटस अपडेट करता रहता था।कभी परिवार संग घूमने फिरने की तो कभी होटल में खाना खाते हुए की तस्वीरें पोस्ट करता रहता था।
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सरोज के पति बहुत ही सुलझे हुए स्वभाव के थे उन्होंने कभी मायके को या भाई भाभी को लेकर सरोज को कुछ नहीं कहा।उल्टा उसे यही समझाते,कि भाई अभी छोटा है जब समझ आएगी तो उसे अपनी जिम्मेदारी का एहसास हो जाएगा।
सरोज के ऊपर वाले पोर्शन में कुछ दिनों पहले ही एक लड़का पीयूष किराए से रहने आया।सरोज तो उसे किराए से रखने के लिए मना कर थी क्योंकि घर में जवान बेटी थी पर पति ने उसे समझाया कि लड़का जरूरत मंद है और उसके जान पहचान वालों ने रखवाया है।कुछ दिनों के लिए उसे घर चाहिए फिर वो चला जाएगा इसलिए सरोज ने हामी भर दी।
पीयूष का स्वभाव बहुत ही अच्छा था वो आते जाते सरोज व बच्चों से बात करता रहता था।धीरे धीरे वो सरोज के परिवार में घुल मिल गया।उसकी उम्र भी सरोज के छोटे भाई के आस पास ही थी।
सरोज को तो पीयूष में अपना छोटा भाई ही नजर आता था वो उसे बहुत प्यार करने लगी। किसी न किसी बहाने से उसे खाने पे या नाश्ते पे बुला ही लेती।सरोज के बच्चे भी उसे मामा ही कहकर पुकारते।पीयूष भी बच्चों के लिए कोई न कोई गिफ्ट लेकर आता रहता।एक तरह से वो अब किराएदार कम और घर का सदस्य ज्यादा हो गया था।
सरोज के पति भी पीयूष के व्यवहार से बहुत खुश थे।उन्हें पीयूष के रूप में साला जो मिल गया था।हालांकि आस पड़ोस के लोग इस रिश्ते को लेकर तरह तरह की बातें बनाने लगे थे पर सरोज व उसके पति पर इस बात का कोई असर नहीं हुआ बल्कि समय के साथ साथ पीयूष से उनका रिश्ता और गहरा होता गया।
पीयूष को कंपनी का घर मिल गया था।उसे मजबूरन सरोज का घर छोड़कर जाना पड़ा।जिस दिन पीयूष जा रहा था बच्चे बहुत उदास थे और सरोज की आंखों से आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे।पीयूष उसे प्यार से गले लगाते हुए बोला -“दीदी,मैं आप लोगों से दूर थोड़ी जा रहा हूं इसी शहर में ही तो रहूंगा और आप सबसे मिलने आता रहूंगा।एक भाई अपनी बहन व उसके परिवार से मिले बिना कैसे रह सकता है?”
समय कब बीत गया पता ही नहीं चला?पीयूष की शादी हो गई।उसने व उसके घरवालों ने शादी में सरोज और उसके पति को बहन जीजा जैसा ही मान दिया।सरोज ने भी बड़ी बहन की तरह ही सारे रीति रिवाज निभाए।पीयूष की अपनी कोई बहन नहीं थी बस एक छोटा भाई था।पीयूष की पत्नी भी सरोज को नंद की ही तरह ही स्नेह व आदर देती थी।
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अब तो सभी लोग पीयूष को सरोज का भाई ही समझने लगे थे।पीयूष और उसकी पत्नी ने सरोज के बेटे और बेटी की शादी में मामा मामी की तरह ही सारे फर्ज निभाए और उसके सगे भाई भाभी तो बस मेहमान बनकर आए और शगुन का लिफाफा पकड़ाकर चले गए।
सरोज के पति अब रिटायर्ड हो चुके थे।उनका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता था।सरोज के बेटा बेटी विदेश में बस गए थे साल में एक बार ही आते थे।
पीयूष और उसकी पत्नी दोनों सरोज के घर आते रहते थे और जो भी जैसी भी मदद उनको चाहिए होती वो करते थे।
रक्षा बंधन का पर्व था।सरोज जल्दी से नहा धोकर तैयार हो गई।राखी की थाली सजाकर पीयूष का इंतजार करने लगी।पीयूष अपनी पत्नी व बेटी संग सरोज के घर आया।सरोज ने भाई भाभी दोनों के साथ खुशी खुशी रक्षा बंधन का पर्व मनाया।सरोज कुछ पलों के लिए अपने भाई के मनीऑडर वाली बात भूल गई और जो पल सामने थे उनमें ही रम गई।पीयूष को आशीर्वाद देते हुए बोली -“ईश्वर तुझे लंबी उम्र दे मेरे भाई।तू सदा खुश रहे।”
“दीदी,मैं भी ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूं कि वो हर जनम में मुझे आपका छोटा भाई बनाए।”पीयूष भावुक होते हुए बोला।
भाई बहन का ये स्नेह का बंधन देखकर सरोज के पति मन ही मन बहुत खुश हो रहे थे।वो यही सोचने लगे….कि दिल में प्यार हो तो पराए भी अपने बन जातें हैं…!!!
कमलेश आहूजा
#स्नेह का बंधन