” मम्मी जी, पापाजी तो अब रहें नहीं ,तो अब उनकी बात का क्या महत्त्व।एक नौकरी करने वाले परिवार में हमारी पूजा कैसे रह पायेगी।” कविता अपनी सास को समझाते हुए बोली तब पास खड़ी उसकी देवरानी मंजू भी उसकी उसकी हाँ में हाँ मिलाते हुए बोली,” हाँ मम्मी जी..मेरा भी यही कहना है कि अपने परिवार के बराबर वाले स्टैंडर के लड़के से…।”
” नहीं बहू…तुम्हारे पापाजी नहीं रहे तो क्या हुआ, पूजा की शादी उसके पिता के पसंद किये हुए लड़के से ही होगी।” सुधा जी दृढ़-निश्चय सुनकर उनकी दोनों बहुएँ चुप रह गईं।
सुधा जी के पति शिवदयाल जी एक बिजनेसमैन थे।उनके दोनों बेटे प्रमोद और सुबोध भी अपनी पढ़ाई पूरी करके अपने पिता के बिजनेस से जुड़ गये थे।बेटों की इच्छानुसार वो संपन्न घराने की दो लड़कियों को बहू बनाकर अपने घर में ले आ आईं थीं जिनके रंग-ढ़ंग न तो उन्हें पसंद थे और न ही उनके पति को।
अब बेटी पूजा सयानी हो रही थी। उन्होंने अपने पति से वर तलाशने को कहा तब उनके पति बोले,” मेरे स्वर्गवासी मित्र मणिकांत का बेटा कमल हमारी बेटी के लिये सुयोग्य है।वह एक मल्टीनेशनल कंपनी में ज़ाॅब कर रहा है।बड़ी बहन किरण की शादी हो चुकी है।घर में बस दो जने ही हैं..शांत और सुखी परिवार है।पूजा के इम्तिहान हो जाये तो मेरे साथ चलकर तुम भी कमल और उसकी माताजी से मिल लेना।” कहते हुए उनके चेहरे पर प्रसन्नता झलकने लगी थी।
उधर सुधा जी की दोनों बहुएँ अपने-अपने भाईयों से पूजा की शादी कराने के लिये उसे मँहगे-मँहगे उपहारों का प्रलोभन दे रहीं थीं।
कुछ दिनों से शिवदयाल जी का मन बेचैन हो रहा था।डाॅक्टर की सलाह पर वो घर पर ही आराम कर रहे थे लेकिन एक रात सोते-सोते ही उन्हें हार्ट-अटैक आ गया और…।घर में मातम छा गया।पूजा ने बड़ी मुश्किल से खुद को संभाला और बीए के इम्तिहान दिये।तब सुधा जी ने पूजा को कमल के बारे में बताया और बोलीं कि तेरे पिता की तो यही इच्छा थी।फिर भी तुम चाहो तो मना कर सकती हो।’नहीं मम्मी’ कहते हुए पूजा पिता को याद करके रो पड़ी थी।
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जब उन्होंने बेटों को कमल के बारे में बताया तब दोनों बहुएँ दंग रह गईं।वैसे तो जेठानी-देवरानी एक-दूसरे से तनी-तनी रहतीं थीं, लेकिन इस समय दोनों ने एक स्वर में पूजा की शादी का विरोध किया।सुधा जी अपनी बहुओं की मंशा से भली-भांति परिचित थीं।इसलिये उन्होंने जब कड़े शब्दों में अपना निर्णय सुनाया तो अपने मंसूबों पर पानी फिरते देख दोनों तिलमिला कर रह गईं।
बेटों को साथ लेकर एक दिन सुधा जी कमल के घर पहुँच गईं।उसकी माता सुलोचना जी के साथ बातचीत किया।पूजा सुंदर थी तो कमल का व्यक्तित्व भी आकर्षक था।दोनों की सहमति मिलने पर सुधा जी ने तनिक भी देरी नहीं की और एक शुभ-मुहूर्त में कमल के साथ पूजा का विवाह हो गया।विदाई के समय सुधा जी ने अपनी बेटी से इतना ही कहा कि मेरे साथ तुम्हारा रक्त-बंधन है लेकिन जिस परिवार में जा रही हो, उनके साथ तुम्हारा # स्नेह का बंधन है जिसे तुम्हें अपने प्यार एवं समझदारी के साथ निभाना है।
‘ जी मम्मी..।’ कहकर पूजा अपने ससुराल आ गई जहाँ उसकी सास और बड़ी ननद ने दिल खोलकर उसका स्वागत किया।दो दिन बाद वो कमल के साथ वापस अपने मायके गई तो अपनी मम्मी और भाभियों से अपने सास-ननद की खूब प्रशंसा की।बेटी को खुश देखकर सुधा जी उसकी तरफ़ से निश्चिंत हो गईं लेकिन भाभियों को उसकी खुशी गँवारा न हुआ। पूजा जब वापस जाने लगी तब दोनों भाभियाँ उसे मँहगे-मँहगे उपहार देकर अपनी खुशी का दिखावा करने लगी जिसे निश्छल पूजा ने उनका स्नेह समझकर स्वीकार कर लिया।
कुछ समय के बाद पूजा एक बेटे की बन गई।नाती को गोद में उठाकर सुधा जी का जी जुड़ गया।चाहती थीं कि एक नातिन भी देख ले लेकिन ज़िंदगी ने उनका साथ छोड़ दिया।जाते-जाते समधन से इतना ही कह पाईं कि पूजा की नादानियों को दिल से न लगाइयेगा।
अपनी भतीजी के जन्मदिन पर पूजा मायके आई हुई थी।फ़ंक्शन खत्म होने पर कविता ने कमल से पूजा को रोकने की रिक्वेस्ट की जिसे वो टाल न सका और अकेला ही वापस चला गया।कविता जब पूजा को दूध का गिलास देने गई तो उसके पास बैठ गई।इधर-उधर की बातें करते हुए वो बोली,” पूजा..तुम्हारे घर का एरिया ठीक नहीं है…अब तुम्हारा अंशु भी बड़ा हो रहा है.. तुम अलग घर लेकर क्यों नहीं शिफ्ट हो जाती…।
” आप ठीक कहतीं हैं भाभी..मैं मम्मी को तैयार कर लेती हूँ..।” पूजा खुश होकर बोली तो वो तपाक-से बोलीं;” पगली..,सास को क्यों ले जाओगी..अकेले अपने पति के साथ लाइफ़ इंज्वाॅय करो..अपनी सहेलियों की तरह..।” कविता बोलती जा रही थी और पूजा उसकी बातों से सम्मोहित होती जा रही थी।कुछ देर में मंजू भी आकर अपनी जेठानी की बातों पर अपना समर्थन देने लगी तो पूजा बोली,” भाभी..आपलोग मेरा कितना ख्याल रखतीं हैं..।”
” हमारे दिल के तार जो जुड़े हैं…।” मंजू तपाक-से बोली और अपनी एक आँख दबाकर जेठानी की ओर देखकर मुस्कुराने लगी।
घर आकर पूजा ने कमल से अलग रहने की बात कही तो उसने साफ़ इंकार कर दिया।फिर भी वो रोज कमल से इसी बात पर बहस करती।भाभियों का रंग उसपर इस कदर चढ़ गया था कि बेटी समझने वाली सास भी अब उसे दुश्मन नजर आने लगी थी।बड़ी ननद किरण भी आती तो उनके साथ भी वो बेरुखी-से पेश आती।
बेटे-बहू के बीच बढ़ते क्लेश का प्रभाव जब अंशु पर पड़ने लगा तब सुलोचना जी ने बेटे को समझाया और उसे अलग रहने के लिये राजी कर लिया।
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अलग घर में शिफ़्ट होकर पूजा का दिल तो बाग-बाग हो गया था।वह कभी भाभी के पास चली जाती तो कभी सहेलियों के साथ घूमने चली जाती। लेकिन माँ के बिना कमल का मन नहीं लगता।वो रोज उनसे फ़ोन पर बात कर लेता और समय निकालकर अंशु के साथ उनसे मिलने चला जाता।
एक दिन पूजा को किटी पार्टी में जाना था।वो तैयार होने लगी तभी अंशु बाहर जाने की ज़िद करने लगा।कामवाली चंदा के साथ अंशु को पार्क भेजकर वो अलमारी से साड़ी निकालने लगी, तभी उसे याद आया कि गैस पर दूध चढ़ा है।वो तेजी-से किचन की तरफ़ भागी..फ़र्श पर गिरा पानी उसे दिखाई नहीं दिया और वो आह..कहते हुए फिसल कर ज़मीन पर धड़ाम-से गिर पड़ी।
कुछ मिनट बाद वो खुद को संभालती हुई कमरे में आई और कमल को फ़ोन करके अपने गिरने की सूचना दी।तब तक चंदा भी आ गई थी।उसे दूध जलने की महक आई तो अंशु को गोद से उतार कर किचन में भागी।तभी घबराता हुआ कमल आया और चंदा की सहायता से उसे गाड़ी में बैठाकर हाॅस्पीटल ले गया।डाॅक्टर ने चेकअप करके बताया कि गिरने से पूजा के दाहिने पैर की हड्डी टूट गई है।प्लास्टर के बाद आप उसे घर ले सकते हैं लेकिन थोड़ी सावधानी बरतनी होगी और पूरा आराम करना होगा।
पूजा को अंशु की फ़िक्र होने लगी।उसने कमल से फ़ोन लेकर बड़ी भाभी को फ़ोन किया और अपने बारे में बताकर बोली,” भाभी..आप तुरंत आकर अंशु को संभाल लीजिये..।”
सुनकर कविता बोली,” पूजा..मैं तो अपने मायके जा रही हूँ और तेरी छोटी भाभी के सिर में दर्द है।परंतु ठीक होते ही वो अवश्य तेरे पास चली जाएगी।” उनके हाव-भाव से ही पूजा समझ गई कि भाभी उसे टाल रहीं हैं लेकिन मम्मी या किरण दीदी होती तो तुरंत…।उसकी आँख में आँसू आ गये।उसी समय सुलोचना जी का फ़ोन आ गया।कमल के ‘प्रणाम माँ’ सुनकर वो घबरा गईं।
” क्या बात है बेटा..तुम्हारी आवाज़..।”
तब कमल ने उन्हें सारी बात बताई और कहा कि कल पूजा को घर ले जाऊँगा।एक नर्स आकर उसका सब काम कर दिया करेगी.. लेकिन चंदा के चले जाने के बाद अंशु..।” उसका गला भर आया।
सुलोचना जी बोली,” ईश्वर पर भरोसा रख..सब ठीक हो जायेगा।” उन्होंने किरण को पूजा के बारे में बताया और बोली कि मैं हाॅस्पीटल जा रही हूँ..तुम भी..।
” बस माँ..तुम करो अपनी बहू की तीमारदारी..मैं नहीं आने वाली।भूल गई, किस तरह तुम्हें…।”
” बेटी..सास-बहू का रिश्ता इतना कमज़ोर नहीं है जो छोटी-छोटी बातों से टूट जाये…।” कहकर सुलोचना जी ने फ़ोन डिस्कनेक्ट किया और ऑटोरिक्शा में बैठकर अस्पताल चली गईं।
माँ को अचानक देखकर कमल कुछ बोल ही नहीं पाया।सुलोचना जी ने पूजा के सिर पर हाथ फेरा तो स्नेह-स्पर्श पाकर वो रो पड़ी।उसके आँसुओं में पश्चाताप था तो सास का साथ पाने की खुशी भी थी।
अगले दिन पूजा घर जाने लगी तब उसके दोनों भाई आये।पत्नियों के व्यवहार पर पर्दा डालते हुए पूजा के हाथ पर रुपयों की गड्डी रखने लगे तो वो बोली,” नहीं भईया…अपनों का साथ मिल गया है..अब इन कागजों की मुझे कोई आवश्यकता नहीं।” कहते हुए वो अपनी सास की तरफ़ देखकर मुस्कुराई और उनका सहारा लेकर अपनी कार में बैठ गई।
दो दिन बाद किरण भी आ गई थी।अपने प्रति सबका स्नेह देखकर पूजा की आँखें भर आईं।वो अपनी सास बोली,” मैंने आपके साथ…दीदी के साथ कितना बुरा व्यवहार किया..अपनी भाभी के बहकावे में आकर आपको अकेला कर दिया, फिर भी आपने…।” उसके आँसू बहने लगे।
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सुलोचना जी उसके आँसू पोंछते हुए बोलीं,” बेटी.. हमारे बीच#स्नेह का बंधन है जो दिल के तारों से जुड़ा है। तभी तो हम साथ-साथ करवा-चौथ का व्रत करते हैं… एक-दूसरे को दिलासा देते हुए जीतिया जैसा कठिन व्रत भी हम हँसते-हँसते पार कर लेते हैं।सास-बहू का रिश्ता किचन में रखे बरतन के समान होता है जो आपस में टकराते हैं लेकिन साथ ही रहते हैं..समझी ना..।” पूजा के सिर पर प्यार भरी थपकी देते सुलोचना जी हँसने लगीं तो ‘जी मम्मी’ कहते हुए उसने सास के कंधे पर अपना सिर रख दिया।तभी अंशु ‘दादी माँ’ कहते हुए अपनी बुआ का हाथ छोड़कर सुलोचना जी की गोद में बैठ गया।
डेढ़ महीने बाद पूजा के पैर का प्लास्टर कट गया।कुछ समय बाद वो आराम से चलने-फिरने लगी
कुछ दिनों के बाद पूजा की दोनों भाभियाँ आते ही कहने लगीं,” हाय पूजा..ये कैसे हो गया..हमें तुम्हारी बहुत फिक्र हो रही है..।” पूजा उन्हें जवाब देने लगी तो सुलोचना जी ने उसे इशारा कर दिया जैसे कह रहीं हों, ऐसी बानी बोलिये, मन का आपा खोये…। वो मुस्कुराते हुए बोली,” अच्छा हुआ ना भाभी..इसी बहाने मैं अपनों के पास चली आई।”
डेढ़ महीने के बाद पूजा के पैर का प्लास्टर कट गया।कुछ समय बाद वो आराम से चलने-फिरने लगी, तब एक दिन सुलोचना जी अपना बैग लेकर वापस जाने लगी तो पूजा भी उनके साथ खड़ी हो गई और बोली,” मैं भी आपके साथ चल रही हूँ।”
” लेकिन कमल..अंशु..।”
” जाने दीजिये माँ..जिद्दी है..।अंशु को लेकर मैं आता हूँ।मकान-मालिक को मैंने कह दिया कि महीने के अंत तक घर खाली कर दूँगा।” कमल तपाक-से बोला तो सुलोचना जी आँखें खुशी-से भर आईं।उन्होंने पूजा के सिर पर प्यार-से हाथ फेरा और दोनों एक-दूसरे का हाथ पकड़कर ऑटोरिक्शा में बैठ गईं।
विभा गुप्ता
# स्नेह का बंधन स्वरचित, बैंगलुरु
सर्वाधिकार सुरक्षित
सच है, सास-बहू का संबंध हो या ननद-भाभी का रिश्ता, इनके बीच स्नेह का बंधन ही होता जो उन्हें उम्र भर एक-दूसरे से बाँधे रखता है।