रमा कान्त जी अकेले चले जा रहे थे ।मंजिल का कोई अता-पता नहीं है ।पत्नी एक महीने पहले ही गुजर गयी है ।दो बेटे हैं ।शादी शुदा ।अपनी गृहस्थी में मगन ।जब नौकरी में थे तभी पत्नी सरला के बहुत कहने पर एक छोटा सा आशियाना बना लिया था ।साधारण पोस्ट पर ही थे वह।
इसलिए जोड़ तोड़ कर खर्च चलाते।सरला भी एक साधारण, हसमुख और मिलनसार महिला थी।जिन्दगी अच्छा से गुजर रही थी ।बहुत कम उम्र में ही शादी हो गई थी उनकी ।शादी के दो साल के बाद ही अंकुर का जन्म हुआ ।और सवा साल के बाद ही अमित भी आ गया ।उनकी गृहस्थी बहुत मजे में चल रही थी।अच्छा क्वाटर मिला हुआ था ।
साथ में सरला,दोनों बच्चे और रमा कान्त जी की माता जी ही रहती थी।पिता जी बहुत पहले ही नहीं रहे थे।बच्चों की देखभाल दादी बहुत अच्छे से संभालती ।सरला भी निश्चित रहती ।फिर बच्चे बड़े होते गये ।स्कूल जाने लगे।पढ़ाई में भी अच्छे रहे।लेकिन अंकुर जहाँ चंचल था,अमित बहुत शान्त और समझदार था।अमित को जो भी मिलता, सब में संतोष था,
अंकुर शुरू से अच्छा रहन सहन चाहता।स्कूल में सब की देखादेखी ब्रांडेड कपड़े खरीदना चाहता।रमा कान्त जी बेटे की फरमाइश पूरी तो कर देते लेकिन जेब पर भारी पड़ जाता ।बड़ा बेटा खर्चीला था।किसी तरह भी पिता हर समस्या को हंस कर सुलझा देते ।सरला कभी मना कर देती ” इतना सिर पर मत चढ़ाया करें, बाद में बहुत दिक्कत हो जायेगी ।
लेकिन रमा कान्त जी हंस कर टाल देते ” अरे, बेटा है,आखिर कमाता किसके लिए हूँ ” सरला चुप हो जाती ।फिर समय भागता रहा ।पढ़ाई खत्म हो गई ।अच्छी जगह नौकरी भी लग गई ।दोनों बेटे दिल्ली में सेटल हो गये।लड़का नौकरी पर लग जाये तो लड़की वाले रिश्ते ले कर आने लगे।फिर कई तस्वीर छांटने के बाद एक जगह रिश्ता तय हो गया ।
अंकुर और अमिता की जोड़ी को सबने बहुत अच्छा कहा ।खूब धूम धाम से शादी हो गई ।अमिता बहुत अच्छी और नेक लड़की थी।घर, गृहस्थी और परिवार के साथ चलने वाली।रमा कान्त जी कभी अपने घर पर रहते।कभी बेटे के यहाँ आ जाते।बहू भी नौकरी ज्वाइन कर ली थी ।तो सास ससुर के लिए थोड़ा कम समय दे पाती थी।
इसलिए सरला और रमा कान्त जी का मन दिल्ली में नहीं लगता था।अब रमा कान्त जी भी रिटायर हो गये थे तो बेटा चाहता था कि माँ, पिता जी साथ ही रहें ।लेकिन दिल्ली का रहन सहन ही कुछ ऐसा था कि एक दूसरे से कोई मतलब नहीं ।बेटा बहू को भी दौड़ धूप की जिम्मेदारी निभाना जरूरी हो जाता ।अमिता जहाँ सोच समझ कर घर चलाना चाहती
वहीं अंकुर बहुत खर्च करवाने लगता ।अच्छे कपड़े पहनना, सिनेमा देखने जाना, दोस्तो के साथ पार्टी करना अंकुर को पसंद था।अमिता चिढ़ जाती और पति पत्नी में झगड़ा शुरू हो जाता ।नतीजा यह होता कि महीना पूरा होने के पहले ही राशन पानी खत्म होने लगता ।फिर रमा कान्त जी अपने बचाये पैसे से बेटे की मदद कर देते ।
लेकिन सरला और अमिता को यह दिखावे की जिंदगी एकदम पसंद नहीं थी।मन ही मन सरला दुखी रहने लगी बेटे के रवैये से ।चिंता में घुली सरला बीमार रहने लगी थी ।बहुत दवा दारु हुआ पर वह ठीक नहीं हुई और एक महीने के बाद ही सबको छोड़ कर चली गई ।छोटा अमित अपने पापा को ले आया ।
दोनों पिता पुत्र एक साथ खाना खाते, एक साथ रहते ।पर रमा कान्त जी को बड़े बेटे अंकुर से भी बहुत लगाव था ।वह चाहते थे कि दोनों भाई एक साथ रहे ।पर दोनों का रहन सहन का तरीका अलग था।बड़ा खर्च की परवाह नहीं करता, छोटा सोच समझ कर घर चलाना चाहता।इससे टकराव की संभावना बनी रहती ।
पत्नि के बिना रमा कान्त जी को भी मन नहीं जमता ।आज भी बिना सोचे समझे घर से निकल गये थे ।दिन ढल गया ।बेटा बहू परेशान हो गये थे तो अमित को भी पिता की चिंता होने लगी ।दो दिन पहले ही तो वह भैया के यहाँ चले गए थे तो आज कहाँ चले गये ।खोज होने लगी ।कोने वाली मन्दिर में रमा कान्त जी बैठे हुए थे ।
समझा बुझा कर घर लाया गया ।उन्हे बेटे बहू से बहुत लगाव था, लेकिन दिखावे की जिंदगी एकदम पसंद नहीं थी इसलिए अपने घर चले जाना चाहते थे।अंकुर ने वादा किया कि अब वह अपने फाल्तू खर्च पर लगाम लगाने की कोशिश करेंगे ।फिर तय हुआ कि घर को किराए पर डाल देते हैं ।सबकी सहमति से रमा कान्त जी अपने घर को किराए पर दे देंगे ।
घर एक बार फिर से गुलजार हो गया ।आज ही एक खुश खबरी भी मिली।वे दादा बनने वाले हैं ।सोच रहें हैं काश आज सरला होती ।आखों के कोर से ढलक आये आँसू पोंछ लिए ।सोच लिया है, सबके साथ खुश हो कर बाकी जीवन बिता देंगे ।
—उमा वर्मा, नोएडा से ।स्वरचित ।