बॉस की रिटायरमेंट फेयरवेल पार्टी चल रही थी।
फूटी आंख ना भाने वाले बॉस का आज बढ़ा चढ़ा कर महिमागान हो रहा था।सबको मालूम था आज इनका यहां अंतिम दिन है । मन ही मन सब बहुत खुश थे लेकिन ऊपर से दिखावे के लिए दुख प्रकट कर रहे थे।
ये ऑफिस आपके बिना सूना लगेगा सर आप थे तो ऑफिस था अब तो जैसे सब कुछ खत्म हो गया प्रतिदिन बॉस से वादविवाद करने वाले कश्यप जी आंखों में आंसू भर कर भाषण दे रहे थे।
हां सर आपके रहने से ऑफिस में अनुशासन था सभी कार्य समय पर हो रहे थे अब तो इस ऑफिस का कोई माई बाप ही नहीं है..श्रीधर जी जिनके अनुशासनहीन आचरण के विरुद्ध बॉस ने फाइल तैयार की थी आज सारे द्वेष मन में दबाए अवरुद्ध कंठ लिए खड़े थे।
ये देखो गिरगिटों को कैसे रंग बदल लिए हैं।जीना हराम कर रखा था बॉस का इन दोनों ने।बॉस को फूटी आंख नहीं पसंद करते थे ये दोनों और अभी देखो ऐसे रो रहे हैं मानो भरत बन कर राम को बन की विदा कर रहे हों शालिनी ने मीता को कोहनी मार कर कहा तो दोनों हंस पड़ी।
सर अभी एक दो साल और रुक जाते तो हम सब भगवान का शुक्रिया करते बॉस के चिर बैरी प्रहलाद कुमार फफक कर रो पड़े।
ये जिसने बॉस को हमेशा खडूस कह कर ही संबोधन दिया आज सर बोल कर सम्मान दे रहा है घड़ियाली आंसू बहा रहा है मीता कहे बिना ना रह सकी।
कुल मिलकर वह खडूस बॉस जिन्हें ऑफिस में कोई फूटी आंख नहीं चाहता था आज अचानक सबके परम प्रिय बन गए थे सब रो रहे थे।
तभी बॉस ने माइक लिया।
आप सभी का आत्मिक लगाव देख कर मैं अभिभूत हो गया हूं कितने दुखी है आप सब मेरे जाने से।आपके इस दुख को मै सहन नहीं कर पा रहा हूं। अतः इरादा बदलते हुए अपने दो वर्षों के एक्सटेंशन को मै आज स्वीकार करता हूं
और आज की इस पार्टी को फेयरवेल पार्टी नहीं वरन वेलकम पार्टी कहना चाहता हूं।दो वर्ष और आप सभी के सान्निध्य में रहने के लिए आभार बॉस ने मुस्कुराते हुए बात समाप्त कर दी।
सन्नाटे के बीच …..जो आंसू अब सबकी आंखों से निकल कर बहे वे एकदम असली थे।
फूटी आंख ना भाना#मुहावरा आधारित लघुकथा
लतिका श्रीवास्तव