छोटा सा परिवार था पलक का। मां पापा और एक बडी़ बहन। इत्तू सा परिवार पर प्यार ढेर सारा, बडी़ बहन काजल पलक से छह साल बडी थी , बहुत रोब दिखाती थी बड़ा होने का । पर पलक भी शैतानियों से भरी, अल्हड़ सी उसके हिस्से का थोड़ा भी प्यार बड़की दीदू को न मिल जाए। बस इसी कोशिश में लगी रहती दिन भर , प्यार तो दीदू भी बहुत करती थी उसे । पर पलक अपनी शैतानियों और नासमझियों से डांट ज्यादा खाती थी । उसको लगता था , उसके हिस्से में माता पिता का संपूर्ण लाड़-प्यार है ही नहीं । पर दीदू को पूरा मान देती थी पलक ,कभी उल्टा जवाब नहीं देती थी वो । कभी ऐसा नहीं हुआ कि दोनों बहनों के मन में एक दूसरे के प्रति कड़वाहट आई हो।
दिन बीतते गए ,मां पापा उम्र की दहलीज़ को पार करते गए तो दोनो बहनें भी बचपन का पड़ाव पार कर समझदारियोंं का आसमान छूने लगी । दोनो के पाओ में छनछनाती पायल घर में खुशियां खनकाती रहती । त्योहारों पर आंगन में रंगोलिया सजती ।सावन की तीज पर घेवर संग झूले का तिलक करती मां, हाथो मे कांच की चूड़ियां पहनवाती और कहती ,
“आज का दिन लडकियों का होता है”
पलक को तीज का त्यौहार पसंद भी तो बहुत था।
जिम्मेदारियों का एहसास अब पापा को कमजोर करने लगा तो मां भी उससे अछूती नहीं रही। समय पंख लगाकर उड़ गया हो जैसे , दीदू भी अब अपने ससुराल की हो गयीं थी । मां पापा के प्यार पर अब सिर्फ मेरा राज है पलक दीदू को चिड़ाती । पर खेतों में सरसों के पीले पीले फूलों के आते ही पलक को भी नया जीवन नई जिम्मेदारियों मे बंधना पड़ा।अब बस कभी कभी ही मिलना हो पाता था मां पापा और दीदू से। पापा बेनागा आते हर साल सावन की फुहारों के बीच मायके के झूले की याद दिलाने और मां की दी हुई भर भर हाथ चूड़ियां देने। हम ब्याहता बहनों का हर सावन एक आस और उमंग लेकर आता ।
पर अबकी सावन न पापा आए न ही मां ने चूड़ियां भिजवाई। खबर आई कि चूड़ियां खरीदने वाले हाथ नहीं रहे,घेवर की मिठास ,सावन का उल्लास दम तोड़ चुका था। अनाथ हो चुकी थी हम दोनों बहनें। दीदू के घर जाते समय दोनो का एक्सीडेंट हो गया था और तीजो का सिंदारा राह तकता रह गया मंजिल तक पहुंचने का। हम दोनो बहनों के आंसू सावन की झड़ी की तरह रोके नहीं रुकते थे।मायका खत्म होने का दुख सब्र को बंधने नहीं दे रहा था।मां पापा के संस्कारों को मान देती दोनो बहने अपनी जिंदगी को सामान्य करने की नाकाम कोशिशें करने में लगी रहती पर त्यौहार आते ही सब्र आंसुओं से पिघलने लगता था।
फिर सावन आया और तीजो पर ये दुख सारे बांधो को तोड़ने लगा। पलक का मन आज सुबह से ही मां पापा को याद कर रो रहा था,तभी आवाज आई ,
“ओए पलकू मुझे याद कर रही हैं क्या “
सामने दीदू को देख फूट फूट कर रो पड़ी पलक। गले लग कर बहुत देर रोती रही ,काजल ने प्यार से गले लगा कर चुप कराया और लाई हुई भर भर हाथ कांच की चूड़ियां पलक के हाथों मे पहना दी,
“अबसे मैं हूँ तेरा मायका”
जीजू ने सिर पर प्यार से हाथ फेरा…
और दोनों बहनों की आंखे मां पापा को याद कर फिर भीग गई पर होठों पर हल्की मुस्कान भी ले आई। सावन की ये तीज एक बार फिर उम़ग और उल्लास से भर गयी थी। पलक के आँगन का झूला हवा से हिल हिलकर उन्हें पुकार रहा था । ऐसा लग रहा था जैसे माँ पुकार रही हो झोंटे देने के लिए,और नीम पिता सा लाड़ उड़़ेल रहा हो उन पर।
पलक काजल का हाथ पकड़कर बोली ,
“दीदू, आपने तीज और चूड़ियों के प्रति मेरे लगाव को मरने नहीं दिया । बहुत शुक्रिया ,मेरी प्यारी दीदू माँ।
तृप्ति शर्मा।