धुंधली पड़ती शाम (भाग-2) – पूनम बगाई : Moral stories in hindi

निशा भारी मन से अपने मायके पहुंची। दरवाजे पर खड़े उसके पिता, श्री शर्मा, पहले से ही समझ गए थे कि कुछ गलत हुआ है। निशा की आंखों में सैलाब छिपा था, लेकिन चेहरा दृढ़ता से भरा था। घर में दाखिल होते ही उसकी आँखों से आंसू फूट पड़े। वह अपने पिता के गले लग गई, और बरसों का जमा दर्द आंसुओं में बह गया।

श्री शर्मा, एक नामी वकील, अपनी बेटी का दर्द देख कर अंदर ही अंदर टूट गए, लेकिन उन्होंने अपने भावों को नियंत्रित रखा। वह जानते थे कि अब यह सिर्फ भावनाओं की लड़ाई नहीं, बल्कि इज्जत और आत्मसम्मान की लड़ाई थी। उन्होंने निशा की पूरी बात सुनी और फिर गंभीर स्वर में अपने बड़े बेटे को बुलाया।

**श्री शर्मा (निशा के बड़े भाई से, गंभीर स्वर में):** “बेटा, जो कुछ भी निशा के साथ हुआ, वह न सिर्फ हमारी बेटी के लिए, बल्कि हर औरत की इज्जत पर हमला है। इसे यूं ही नहीं छोड़ा जा सकता। रोहन और उसके परिवार को इस गलती की कीमत चुकानी होगी।”

निशा के बड़े भाई की आँखों में क्रोध और संकल्प की आग जल उठी। वह अपनी बहन के साथ खड़े होने को तैयार था, और उसने वादा किया कि वह इस लड़ाई में उसका सबसे बड़ा सहारा बनेगा।

**निशा का भाई (दृढ़ता से):** “तुम चिंता मत करो, बहन। हम तुम्हारे साथ हैं। अब जो भी होगा, वह तुम्हारी इज्जत के लिए होगा।”

निशा की माँ, जो अब तक आंसू रोक रही थी, आखिरकार अपने पति के पास आई और धीरे से अपनी बेटी को समझाने लगी। उनकी आवाज़ में एक माँ का स्नेह और दर्द दोनों था।

**निशा की माँ (निशा को सहलाते हुए):** “बेटी, तुमने जो किया, वह बिल्कुल सही किया। हम तुम्हारे साथ हैं। ये फैसला तुम्हारी ज़िन्दगी का सबसे मुश्किल फैसला है, लेकिन याद रखना, यह सही है। अब एक नई शुरुआत करो।”

निशा की आँखों में कन्फ़्यूज़न और दर्द साफ झलक रहा था। क्या उसने सही किया? क्या उसे अपने बेटे और अपनी ज़िन्दगी के लिए ये लड़ाई लड़नी चाहिए थी? 

उसने ठान लिया था कि अब इस रिश्ते को बचाने का कोई उपाय नहीं है। उसके आत्मसम्मान पर जो चोट लगी थी, वह किसी भी समझौते से ठीक नहीं हो सकती थी। अगले ही दिन उसने अपने पिता से तलाक के कागज़ात तैयार करवाने की बात कही। श्री शर्मा ने बिना देर किए कागजात तैयार कर लिए और निशा ने तलाक के लिए कोर्ट में केस दायर कर दिया।

उधर रोहन, जो घर में बैठा इस तूफान से अनजान था, उसे तलाक की खबर सुनकर झटका लगा। उसे कभी उम्मीद नहीं थी कि निशा ऐसा कदम उठाएगी। वह तो बस हालात से भागने की कोशिश कर रहा था, और उसे लगा था कि वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा। उसने अपने पिता से बात करने की कोशिश की, लेकिन श्रीधर, अपने अहंकार में डूबे हुए, ने एक बार फिर रोहन को उसी दुविधा में धकेल दिया।

**श्रीधर (हंसते हुए, बेपरवाही से):** “अगर बहू का साथ देना है, तो इस घर को छोड़ने के लिए तैयार हो जाओ, रोहन। सोच लो, क्या ज़्यादा जरूरी है—यह घर या वह?”

रोहन का दिल टूट चुका था। वह अपनी पत्नी और बेटे को खो चुका था, लेकिन वह अपनी मां, पिता और परिवार को भी नहीं छोड़ सकता था। उसकी दुविधा उसे एक ऐसी जगह पर खड़ा कर चुकी थी, जहां कोई भी रास्ता उसे सुख की ओर नहीं ले जा रहा था।

निशा अब एक नई ज़िन्दगी की शुरुआत कर रही थी। वह अपने बेटे के साथ अपने पिता के दिए हुए घर में रह रही थी। उसने एक स्कूल में पढ़ाने की नौकरी कर ली थी और अब अपनी ज़िन्दगी को एक नई दिशा देने में जुट गई थी। हर दिन वह अपने बेटे के लिए एक मजबूत दीवार बन रही थी, ताकि उसका भविष्य उज्ज्वल हो सके।

लेकिन कभी-कभी, रात के सन्नाटे में, जब सब कुछ शांत होता, तो निशा का दिल रोहन को याद करता। क्या उसने सही फैसला किया था? क्या उसका रिश्ता वाकई इतना कमजोर था कि वह इस मुकाम पर पहुंच गया? क्या वह दोबारा उस रिश्ते के बारे में सोच सकती थी? लेकिन फिर, उसे अपने पिता और भाइयों की दी गई सीख याद आती। 

एक दिन, उसकी मां ने उससे धीरे से बात की। 

**निशा की माँ (निशा का हाथ पकड़ते हुए, स्नेह भरे स्वर में):** “बेटी, ये तुम्हारी ज़िन्दगी है, और तुमने जो फैसला लिया है, वह गलत नहीं है। तुम्हारे पिता और भाइयों ने तुम्हारा साथ दिया है, और तुम अब अपने बेटे के लिए एक आदर्श माँ बन रही हो। यही सबसे बड़ा सच है।”

निशा का बेटा धीरे-धीरे रोहन को भूलने लगा था, लेकिन कभी-कभी वह अपने पिता की याद करता था। उसने अपने स्कूल में अच्छा प्रदर्शन किया और अपनी माँ के लिए गर्व का विषय बन गया। लेकिन इन सब के बावजूद, निशा के मन के एक कोने में रोहन की यादें कभी-कभी दस्तक देती थीं।

उधर, रोहन भी हर रात अपने बेटे और निशा को याद करता। उसके मन में पछतावा था, लेकिन वह भी समझ नहीं पा रहा था कि अब क्या करना चाहिए। उसने हर उस पल को याद किया जब उसने अपनी पत्नी का साथ नहीं दिया, और अब वह अकेलेपन के गहरे अंधेरे में खोया हुआ था। क्या वह उन्हें वापस पा सकेगा? क्या वह अपने परिवार के साथ फिर से खुशी की उम्मीद कर सकता था?

**सवाल जो अब भी जवाब ढूंढ रहे हैं:**

  1. क्या निशा अपने जीवन में आगे बढ़कर सुकून और खुशी पा सकेगी?
  2. क्या रोहन अपने फैसलों को सुधारने का कोई तरीका ढूंढ पाएगा?
  3. क्या इस टूटते रिश्ते में कोई उम्मीद की किरण बची है, या अब दोनों के रास्ते पूरी तरह अलग हो चुके हैं?

जानिए इन सवालों के जवाब **धुंधली पड़ती शाम** के तीसरे भाग में…

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