धोखा स्वयं को – पुष्पा जोशी

आत्माराम ने कितने प्रेम से अपने बेटे का नाम रखा था,  सेवाराम, बडे़ जतन से पाला था उसे, इकलौती संतान थी किसी तरह की कोई कमी नहीं थी. उसे क्या पता था,कि उसका बेटा नाम के बिल्कुल विपरीत निकलेगा.आत्माराम जाना माना किराने का व्यापारी था, गाँव के चंद रईसों में उसकी गिनती होती थी.अपना काम मेहनत और ईमानदारी से करता था. पत्नी दमयन्ती भी कुशल गृहिणी थी, वह भी अपने पति के कार्य में मदद करती थी. सेवाराम बीस वर्ष का हो गया था, उसकी पढ़ाई में बिल्कुल रूची नहीं थी.आत्माराम की लाख कोशिश के बाद भी वह बारहवीं की परीक्षा भी उत्तीर्ण नहीं कर पाया. थक हार कर आत्माराम ने उसे अपने साथ काम करने के लिए रखा, उसे व्यापार के गुर सिखाए, ईमानदारी का पाठ पढ़ाया. मगर सेवा राम चिकना घड़ा था,

पिता की बात का उस पर कोई असर नहीं था.उसे बस पैसा कमाने से मतलब था, पैसो के लालच में वह धानचून  में मिलावट करने लगा. आत्माराम को इस बात का पता नहीं था, जब लोगों की शिकायतें आने लगी, तो आत्माराम ने सेवाराम के कार्यो पर नजर रखी. उसने जब सेवाराम को मिलावट करते हुए देखा, तो उसे समझाया कि बेटा इस तरह पूरे नगर में हमारी साख समाप्त हो जाएगी.हमे हमेशा ईमानदार रहना चाहिए.

सेवाराम के रवैये में कोई अन्तर नहीं आया.आत्माराम की डांट का उस पर कोई असर नहीं था.दमयन्ती ने कहा इसकी शादी कर देते हैं शायद बहू के आने पर इसकी आदतें सुधर जाए. उसकी शादी मनोरमा से हो गई, मनोरमा एक संस्कारी लड़की थी, उसकी समझाइश का भी सेवाराम पर कोई असर नहीं था, वह मनोरमा को डाट कर चुप कर देता.नगर में आत्माराम ने जो इज्जत कमाई थी, धूल में मिल गई, वह सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाया और दुनियाँ छोड़ कर चला गया.उसके दो साल बाद दमयन्ती का भी देहांत हो गया.



अब सेवाराम को डाटने वाला कोई नहीं था.उसका लालच बड़ता जा रहा था.अगर पत्नी कुछ समझाती तो उसे भी झिड़क देता. सास- ससुर के जाने के बाद मनोरमा का घर में मन नहीं लग रहा था, रोज-रोज के कलह से तंग आकर वह घर छोड़कर चली गई. पिता के देहांत के समय,मनोरमा के घर छोड़कर जाते समय, सेवाराम की आत्मा ने उसे सचेत किया, कि अभी भी सम्हल जा, किसके लिए कमा रहा है? धोखाधड़ी का धंधा छोड़ दे. मगर उसको लालच ने इस तरह घेर लिया था, कि उसे आत्मा की आवाज सुनाई ही नहीं दे रही थी.

उसके पास बहुत धन इकट्ठा हो गया था, वह जरूरत मंदो को मीठी- मीठी बातों में फंसा लेता और ब्याजुना पैसा देने लगा, वह सबको धोखा दे कर अपनी जेबें गरम कर रहा था.धीरे-धीरे लोगों को उसकी सच्चाई पता लगने लगी और वे उससे दूर होते गए. गाँव के लोग धोखा खाकर फिर से सम्हलने लगे थे, मगर सेवाराम पता नहीं किस मिट्टी का बना था कि सम्हलने का नाम ही नहीं लेता.लोगों को धोखा देकर पैसे कमाने के नित नवीन तरीके  ढूंढता रहता. इतना पैसा होते हुए भी न कभी ठीक से कुछ खाता, न ठीक से कपड़े पहनता.कभी आत्मा की आवाज आती कि कुछ दान पुण्य करले तो वह आवाज भी उसके लालच के आगे दब जाती.

दिन निकलते जा रहे थे, गाँव में शायद ही कोई ऐसा हो जिसे उसने चूना न लगाया हो, उम्र सित्तर पार कर गई थी, और गाँव में उसके साथ कोई नहीं था, कुछ दिनों से अस्वस्थ था. आज जब दूध वाले की आवाज सुनकर, दूध लेने के लिए बाहर आया तो लड़खड़ा कर गिर गया, और उसके प्राण पखे्रूं उड़ गए. मुश्किल से मुहल्ले के दस बारह लोग शरमाशरमी उसकी अन्त्येष्टि में आए,उसका व्यवहार ही ऐसा था.उसकी इस हालत को देख कर कई प्रश्न दिमाग में उठ रहे हैं,वह किसके लिए कमा रहा था? उसका कमाया पैसा किस काम का जो उसके अन्त समय में भी उसके काम में नहीं आया?  उसकी अन्येष्टि भी लोगों ने चन्दा इकट्ठा करके की.उसने जिन लोगों को धोखा दिया वे भी सम्हल गए. वास्तव में देखा जाय तो वह अपने कृत्य से दूसरो के साथ स्वयं को भी धोखा दे रहा था, जिसका उसे आभास भी नहीं था.

 

प्रेषक-

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

 

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