धोखा नहीं अपनापन था  –  तृप्ति शर्मा

तीन बहनों में सबसे छोटा था मयंक बड़ी मन्नतो के बाद हुआ था। खूब लाड और प्यार से पाला मां बाबा ने ।सबका लाडला, घर का चिराग जिसके खिलखिलाने पर पूरा घर खिलखिलाता था जिसके रोने पर पूरा घर बिलख पड़ता।

     बेटियां रोशनी थी तो मयंक उजियारा।मां बाबा कहते ,”अब घर पूरा हो गया “।अच्छा पुश्तैनी गहनो का कारोबार था जो मयंक के होने के बाद और तरक्की करता गया।

     सारे मनोहर सारी जिद बड़े लाड प्यार से पूरी की जाती। संयुक्त परिवार होने के कारण दादा दादी के साथ ताऊ ताई का भी भरपूर प्यार मिलता था मयंक को।

     बस मयंक के चाचा चाची थे जो हमेशा से ही भाई भाभी को टोकते ,”इतना लाड मत करो इतनी जिदे पूरी मत करो कि बच्चा बिगड़ जाए गीली माटी है जिस आकार में डालोगे वही आकार लेगा”।

  मयंक के मां बाबा ,बाकी सबको लगता कि शायद मयंक को नजर लगा रहे हैं या हमसे जल रहे हैं और उनकी बात पर कोई ध्यान नहीं देता।

समय एक सा नहीं रहता रिसता रहता है ,बदलता रहता है कारोबार का भी बदला, मुनाफे घाटे में बदलने लगे मयंक के बाबूजी को बचत की आदत नहीं थी। सब लुट गया तो परिवार भी बटा और सब ने अपने अलग-अलग नए काम शुरू कर दिए।

 मयंक के बाबा नुकसान का सदमा ना झेल सके और रात को सोए तो उन्होंने सुबह नहीं देखी। 15 साल का मयंक और उसकी बहनों के सर से बाबा का साया चला गया, मां अकेली हो गई।

 फिर लगी कर्जदारों की लाइन जो कि मयंक के बाबा ने खुले खर्चे के कारण ले रखे थे। मयंक के चाचा चाची जो अभी अपना कारोबार संभाले खड़े थे मयंक की मां को वही एक सहारा दिखे।




अपने घर के कागज लेकर उनके पास गई और बोली इसे बेचकर कर्जदारो का कर्जा चुक जाएगा और मेरे पल्ले भी कुछ आ जाएगा। मयंक के चाचा ने घर के कागज देखे और कहां ,”बाजार मंदा है ,बाद में देखेंगे और कागज अपने पास रख लिए।

घर में तंगी है और कर्जदारों का कर्ज चुकाना है तो मयंक को मेरे पास काम पर रख लेता हूं। मजबूरी के 

चलते ‌ मां ने मयंक को काम पर तो भेज दिया पर हमेशा यही सोचती रहती कि अगर घर बेच देता तो मेरे पास कुछ पैसे आ जाते या फिर खुद ही पैसों से मदद कर देता पर पुरानी जलन का अंश अभी भी बाकी है इसमें जब भी तो मयंक को काम पर रखा नौकर बना दिया।

नए काम के चलते हुए बड़े भाइयों से मदद भी नहीं ले सकती थी।

धीरे-धीरे मयंक हीरो की, सोने चांदी की परख करने में माहिर हो गया। समय बीतने के साथ मयंक अब समझदार और बड़ा भी हो चुका था।

फिर एक दिन उसके चाचा ने कहा यह रहे तुम्हारे घर के कागज जो कि भैया ने पहले ही गिरवी रख दिए थे साझा बिजनेस होने के कारण मुझे यह पहले ही पता था इसलिए जब तुम्हारी मां इन्हें बेचने के लिए मेरे पास लेकर आई तो मैं उन्हें सच्चाई नहीं बता पाया हालात को देखते हुए मुझे यही सही लगा क्योंकि उस समय वह यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर सकती थी अब तुम समझदार हो गए हो। मैंने घर छुड़वा दिया है इन्हें अब घर ले जाओ। मयंक अपने चाचा को देखता ही रह गया जो अब तक उन्हें गलत समझता आ रहा था आज उसे समझ में आया कि उन्होंने उस समय घर क्यों नहीं बेचा।

जब मयंक ने अपने घर जाकर अपनी मां को यह सब बताया तो उसकी मां को बहुत ही आत्मग्लानि हुई मयंक के चाचा के पास आकर माफी मांगने लगी ।मयंक के चाचा बोले यह तो मेरा फर्ज था आखिर मेरे बड़े भैया थे वो, मैं बस बुरे समय के लिए ही उन्हें बचत करने के लिए कहता था। और मयंक को काम पर रखने का मकसद सिर्फ उसको जिम्मेदार बनाना था अब वह जिम्मेदार और समझदार हो गया है। बुरे समय में अपने ही काम आते हैं आखिर अपने ही तो अपने होते हैं।

#अपने_तो_अपने_होते_हैं 

 

~ तृप्ति शर्मा

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