धिक्कार है तुम्हें…. – विभा गुप्ता: Moral stories in hindi

” नंदू..अब तू मुझे पकड़….।” ” नहीं..नंदू…पहले मुझे..।”

         ‘आनंदी विला ‘ के हाॅल में दीवार से लगे दीवान पर पारसनाथ बैठे अखबार पढ़ रहें थें।पास बैठा हरिया उनके पैर दबा रहा था। बगीचे में अपने बेटों रवि-प्रकाश के साथ हरिया के बेटे नंदू को खेलते देख पारसनाथ बोले,” हरिया…तू नंदू की तनिक भी फ़िक्र न करना..रवि-प्रकाश की तरह मैं उसे भी बहुत पढ़ाऊँगा।”

 ” जी भईया…सब आपकी कृपा है।” तभी पारसनाथ की पत्नी आनंदी ने हरिया को आवाज लगाई तो वह ‘आया भौजी’ कहकर रसोईघर में चला गया।

          पारसनाथ के पिता भुवनेश्वर बाबू गाँव के नामी ज़मींदार थें।सुख-सम्पत्ति से भरा-पूरा परिवार था उनका।काम करने के लिये दसियों नौकर-चाकर घूमा करते थें।एक दिन वे दलान में बैठे थे कि एक दस बरस का लड़का उनके पास कुछ खाने को माँगने आया।पूछने पर बताया कि उसका नाम हरिया है।गाँव में अकाल पड़ा था…माँ-बाबा उसी में गुज़र गये और तब से वह ऐसे ही दर ब दर भटक रहा है।भुवनेश्वर बाबू की पत्नी ने उसे भरपेट खाना खिलाया और फिर वह वहीं असोरे पर सो गया।तब से वह वहीं रहने लगा…।

      पारसनाथ की दो बड़ी बहनें थीं जो आपस में मिलकर खेलती थीं।उन्होंने हरिया को ही अपना सखा बना लिया था।पारसनाथ ने हरिया को पढ़ाने की बहुत कोशिश की लेकिन पाँचवीं के बाद उसने किताबों को तिलांजली दे दी और घर के छोटे-मोटे काम करने लगा।काॅलेज़ की पढ़ाई के लिये पारसनाथ शहर जाने लगे तो उनके पिता हरिया को उनके साथ लगा दिया।

     पारसनाथ पढ़ाई करते और हरिया उनके लिये खाना बनाता.. कपड़े तैयार करता और कभी-कभी सिर की मालिश भी कर देता है।भुवनेश्वर बाबू निश्चिंत थें कि उनका बेटा अकेला नहीं है।पढ़ाई पूरी होने के बाद पारसनाथ नौकरी करने लगे..।नौकरी में उनका जी नहीं लगा तो पिता से परामर्श करके एक फ़ैक्ट्री की नींव डाली।शुरु में तो उन्हें काफ़ी दिक्कतें आईं लेकिन फिर ईश्वर की कृपा और उनकी मेहनत से उनकी फ़ैक्ट्री को काफ़ी मुनाफ़ा होने लगा।

        भुवनेश्वर बाबू ने दोनों बेटियों की शादी कर दी..साल भर बाद अपने एक परिचित की सुशील कन्या आनंदी के साथ बेटे का भी विवाह करके पति-पत्नी अपनी ज़िम्मेदारियों से मुक्त हो गये।

         पारसनाथ एक बड़ी कोठी ‘आनंदी विला’ में शिफ़्ट हो गये।ईश्वर की कृपा से रवि और प्रकाश उनकी गोद में खेलने लगे..हरिया ने भी अपना घर बसा लिया और पति-पत्नी मिलकर पारसनाथ के परिवार की सेवा करने लगे।हरिया की पत्नी ने भी एक बेटे को जन्म दिया…उसके बाद से ही वह अस्वस्थ रहने लगी।बहुत इलाज के बाद भी कोई फ़ायदा न हुआ और एक दिन अपने पाँच वर्षीय नंदू को हरिया के हवाले करके वे इस दुनिया से चली गई।आनंदी ने कभी भी अपने बच्चों और नंदू के बीच कोई फ़र्क नहीं किया।गाँव से जब भुवनेश्वर बाबू और उनकी पत्नी आते और बेटे का हँसता-खेलता परिवार देखते तो उन्हें बहुत खुशी होती।

       समय अपनी रफ़्तार से चलता रहा…रवि एमबीए करके पिता की फ़ैक्ट्री संभालने लगा।प्रकाश भी बीए करके बड़े भाई का सहयोगी बन गया।नंदू ने दसवीं तक पढ़ाई की..फिर पिता का हाथ बँटाने लगा।पारसनाथ के वृद्ध माता-पिता का देहांत हो गया तब उन्होंने खेती की देखभाली के लिये दो लोगों को तैनात कर दिया।फ़ैक्ट्री से समय निकालकर महीने-दो महीने पर वे स्वयं भी वहाँ का एक चक्कर लगा आते थें।

       कुछ दिनों से हरिया अस्वस्थ रहने लगा था…पारसनाथ ने उसका बहुत इलाज करवाया मगर…।एक शाम वह पारसनाथ से हाथ जोड़कर बोला,” भईया…अब हम आपका साथ नहीं दे पायेंगे..भूल-चूक माफ़ करना और नंदू को…।”उसने हमेशा के लिये अपनी आँखें मूँद ली।

        आनंदी जी ने अपनी सहेली की बेटी दिव्या से रवि का विवाह करा दिया।साल भर बाद वो एक पोते आरव की दादी भी बन गई।प्रकाश ने अपने मित्र की बहन रिया से विवाह करने की इच्छा ज़ाहिर की तो आनंदी जी ने सहमति दे दी और धूमधाम से प्रकाश का विवाह भी सम्पन्न हो गया।’आनंदी विला’ बहुओं की चहल-पहल और पोते की किलकारी से गुंजाएमान रहने लगा था।साल बीतते-बीतते रिया भी एक बेटी नव्या की माँ बन गई।आनंदी जी का समय बच्चों की मालिश करने और उनके साथ खेलते-बतियाते बीत जाता था।नंदू ब्रह्मचारी रहा… घर के काम से फ़्री होता तो आरव- नव्या के साथ बच्चा बन जाता था।

         दोनों बच्चे स्कूल जाने लगे… बहुएँ अब अपने क्लब-किटी में व्यस्त रहने लगी और घर की पूरी ज़िम्मेदारी नंदू ने अपने कंधों पर ले ली।उम्र बढ़ने के साथ आनंदी जी अब अस्वस्थ भी रहने लगीं थीं।नंदू को एक पैर पर घर में घूमते देखती तो कहती कि थोड़ा आराम भी कर लिया कर लेकिन वह हँसकर टाल जाता।कई बार बहुओं को टोकना चाहा कि नंदू भी इस परिवार का एक सदस्य है…उस पर कामों का बोझ लादना ठीक नहीं है..तब नंदू ने उन्हें कहने से रोक दिया।

       आनंदी जी का अंतिम समय आ गया था..पति को बोलीं कि नंदू कैसे…।पारसनाथ बोले,” मैं हूँ ना…अपने दिल पर कोई बोझ मत रखो…।” बेटे-बहुओं ने भी कहा कि हम हैं ना माँ…।” बस उन्होंने हमेशा के लिये अपनी आँखें बंद कर लीं।नंदू उस दिन काकी-काकी कहकर बिलख-बिलख कर रोया था।

            आनंदी जी के जाने के बाद तो हर काम के लिये नंदू को ही पुकारा जाने लगा।नंदू…मेरी टाई ला…नंदू, मेरा सिगरेट..नंदू…ड्राइक्लिनर के पास से मेरे कपड़े ले आ…वगैरह-वगैरह।यद्यपि घर में अन्य नौकर भी थें लेकिन बहुओं के लिये तो नंदू उनका गुलाम था।एक दिन पारसनाथ ने नंदू को आवाज़ लगाई तो वह दौड़ा-दौड़ा गया,” जी.. काका।”

  ” कुछ नहीं रे…कुछ देर तू भी सुस्ता लिया कर..।”कहते हुए उन्होंने प्यार-से उसके सिर पर हाथ फेरा।परंतु नंदू तो नंदू था…अपनी सेवा में मिलावट करना जानता ही नहीं था।

          पारसनाथ कुछ दिनों के लिये गाँव गये हुए थें।इसी बीच नंदू को तेज बुखार हो गया।रवि उसे लेकर डाॅक्टर के पास गया…डाॅक्टर ने दवा लिखकर दी, साथ ही यह भी कहा कि नंदू बहुत कमज़ोर है..उसे आराम की सख्त आवश्यकता है।

         अब बहुओं को नंदू का आराम करना खलने लगा।वे अपने-अपने पति के कान भरने लगी,” जब ये हमारे काम का है ही नहीं है तो इसे खिलायें क्यों…।” बस एक दिन सुबह-सुबह ने रिया ने शोर मचाना शुरु कर दिया कि मेरा नेकलेस गायब है।नंदू के कमरे की तलाशी ली…हार देखकर नंदू को चोर मान लिया गया और उसे घर से बाहर कर दिया गया।

        पारसनाथ वापस आये तो उन्हें मन-गढ़ंत कहानी सुनाई गई जिसपर उन्हें तनिक भी विश्वास नहीं हुआ।उन्होंने उस वक्त तो कुछ नहीं कहा लेकिन नंदू को तलाशने में भी कोई कसर नहीं छोड़ा।हर जगह से उन्हें  निराशा ही हाथ लगी।तीन महीने बीत गये…नंदू का कुछ पता नहीं चला।कभी-कभी तो वो खुद को कोसते कि नंदू को अकेला क्यों छोड़ा।

         एक दिन रिया के पास नव्या के स्कूल से फ़ोन आया कि आपकी बेटी सीढ़ियों से गिर पड़ी है..स्कूल के माली ने देखा तो तुरंत उसे ऑटो में बिठाकर शहर के सिटी हाॅस्पीटल में ले गया है।आप लोग…।रिया ने फ़ोन डिस्कनेक्ट किया और प्रकाश को इंफ़ाॅर्म करके सिटी हाॅस्पीटल दौड़ गई।रिसेप्शन पर पेशेंट का नाम बताया तो पास खड़ी नर्स ने बताया कि थोड़ी चोट आई थी लेकिन अभी ठीक है आप वार्ड नं 3 में जाकर मिल लीजिये।

        बेटी के माथे पर पट्टी देखकर तो रिया की आँखों से आँसू बहने लगे।नव्या कुछ कहना चाहती थी लेकिन रिया ने कुछ नहीं सुना।तभी रवि,प्रकाश और पारसनाथ भी आ गये।सभी नव्या से पूछने लगे, कैसी हो नव्या…कैसे गिरी…।पारसनाथ ने नर्स से पूछा कि वो कहाँ है जो हमारी बच्ची को यहाँ लेकर आया?

     ” वो देखिये..दवा लेकर आ रहा है…।” नर्स ने दूर से आते हुए एक आदमी की ओर इशारा किया।पास आने पर पारसनाथ देखे तो चौंक पड़े,” नंदू…मेरे बच्चे.. ” कहकर उसे सीने-से लगाकर रो पड़े।नंदू की आँखों से भी अश्रुधार बह निकली।

     नंदू ने संक्षेप में उन्हें उस दिन की घटना बताई और बोला कि एक भले आदमी ने मुझे रहने की जगह दी और स्कूल में काम दिलाया।एक सप्ताह पहले मुझे मालूम हुआ कि हमारी नव्या बिटिया भी इसी स्कूल में पढ़ती है।बिटिया जब गिरी तो हम वहीं बगीचे में बैठे घास की कटाई कर रहे थें..बस मशीन को तुरंत बंद किया और बिटिया के माथे पर अपना गमछा बाँधकर उसे ऑटो में बइठा कर अस्पताल ले आये।अब ठीक है काका…लेकिन आप रवि भइया को कुछ नहीं…।

       ” नहीं कहूँगा नंदू…लेकिन अब तू मेरे साथ चलेगा।” कहकर पारसनाथ नंदू को लेकर वार्ड में गये।नंदू को देखकर सब भौंचक रह गये…नव्या ‘ नंदू काका’ कहकर उससे लिपट गयी।थोड़ी देर बाद ही नव्या को हाॅस्पीटल से छुट्टी मिल गई और सब लोग घर आ गये।

       अगले दिन फिर से नंदू को आवाज़ लगाई गई तब पारसनाथ आये और बोले कि नंदू…किसी का काम नहीं करेगा।तब रवि बोला,” पापा…आप जानते नहीं है…इसने रिया का….।”

   ” बस करो रवि…।” चीख पड़े पारसनाथ।बोले,” जिसके पिता ने तुम लोगों को चलना सिखाया…तुम्हारे माँ की इतनी सेवा की, उसके साथ ऐसा दुर्व्यवहार करते हुए तुम्हें ज़रा भी शर्म नहीं आई।जिस फ़ैक्ट्री को तुम अपना कह रहो, उसकी एक-एक ईंट लगाने में हरिया का पसीना बहा है।प्रकाश तुम….क्या तुम्हें याद नहीं…तुम्हारे दाहिने पैर में फ़्रैक्चर हुआ था तब यही नंदू तुम्हारा दाहिना पैर बना था।अरे..धिक्कार है तुम्हें…!जिस इंसान ने तुम्हारे बच्चों को पालने में अपना दिन-रात एक कर दिया..तुम्हारी बीवियों की चाकरी की…कभी उफ़्फ तक नहीं किया…उस पर चोरी का झूठा इल्ज़ाम लगाते हुए तुम लोगों की जीभ नहीं जल गई।लानत है तुम लोगों पर।इतना कुछ होने के बाद भी आज इसी ने तुम्हारी बेटी की जान बचाई है..इसका शुक्रगुज़ार होने की बजाय तुम लोग…कितने बेगैरत हो तुम सब…।”

    ” पापा..वो…।” 

  ” बस..अब एक शब्द भी नहीं…।आज से नंदू मेरे साथ फ़ैक्ट्री में ही रहेगा।फ़ैक्ट्री के पास ही मैंने इसके रहने की व्यवस्था भी कर दी है।चल नंदू..।” कहते हुए पारसनाथ नंदू का हाथ पकड़कर बाहर निकल गये।

                                    विभा गुप्ता

 # धिक्कार                      स्वरचित ©

                घर में काम करने वाले भी इंसान होते हैं।हमें हमेशा उनका धन्यवाद करना चाहिये।नंदू को सम्मान देकर पारसनाथ जी ने इंसानियत की एक मिसाल कायम की थी।

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