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ऐ क्या है मां
ये….…ये …..
फोटो किसकी है और मुझे क्यों दिखा रही हो।
तो मुस्कुराते हुए सुलेखा ने कहा ।
अरे !
पापा ने लड़का देखा है ।
तो उसे आश्चर्य से पूछा!
किसके लिए –
इस पर उसे गले लगाते हुए बोली तुम्हारे लिए ।
देखो कैसा है।
पर मां…….।
मैं तो अभी पढ़ रही हूं ।
मैं अभी शादी कैसे कर सकती हूं।
तो उसने कहा देख बेटा शादी तो करनी पड़ेगी।
दादी की आखिरी ख्वाहिश जो है।
अब वो पका आम है कब चू जाए क्या पता।
और कहते हैं कि मरने वाले की आखिरी ख्वाहिश पूरी की जाती है वरना उसकी आत्मा भटकती है।
पर मां मैं क्यों बलि का बकरा बनूं मुझे तो अभी अपना कैरियर बनाना है।
भला मुझे इससे क्या लेना देना।
कहती हुई वो कालेज चली गई।
पर उलझन थी कि दोनों की बढ़ती जा रही
इधर मां की कि कैसे मनाएं उधर उसकी को खुद को कैसे तैयार करें।
क्योंकि अभी तो उसे अपना कैरियर बनाना है।
पर कहते हैं ना कि बड़ों के फैसले हो गए तो हो गए
उसके आगे भला कौन बोल सकता है।
लिहाजा उसे स्वीकार ही करना पड़ा।और
बीस बसंत देखकर रिया ससुराल आ गई ।
आ तो गई ।
पर उसे समझ नहीं आ रहा क्या करे
सब कुछ उलट पलट , उठना -बैठना ,सोना -जागना ,खाना -पानी ,रहने -सहन । नए लोग ,नया माहौल, नई जगह मुश्किल तो हुई पर धीरे धीरे खुद को संभाल ली संभालती भी कैसे ना कहते हैं कोई हो न हो पर पति जो उसके साथ रहा ।
कहते हैं ना कि पति घर साथ हो तो बड़ी से बड़ी समस्या छोटी लगती है और वही यहां हुआ राकेश शख्त मिजाज तो है पर समझदार भी बहुत कब कहां कैसे क्या मैनेज करना है बखुबी जानते है।
इसीलिए तो सब संभल गया। और मौज मस्ती की उम्र में दादी की आखिरी ख्वाहिश पूरी करने के लिए चूल्हा चौका संभालने की जिम्मेदारी लें ली,हर वक्त मां से चिपकी रहने वाली अब दूसरों के नखरे उठाने लगी ।
और तो और पति और सास की खुश करने में लग गई।
उसने देखा वो तेज तर्रार सास और शख्त मिजाज पति के बीच सिमट के रह गई ।
और जीना यहां मरना यहां “निश्चय कर ” का ढोल पीटने लगी। कोई और चारा जो नहीं रहा।
विदाई के वक्त दादी और मां दोनों ने हिदायत दी थी कि ससुराल में बेटी की डोली जाती है और अर्थी उठती है ।
वैसे तो तुम्हारे लिए यहां के दरवाजे खुले हैं पर कभी पीठ दिखाकर आओगी तो उल्टे पैर वापस कर दी जाओगी।बस इसी बदनामी के डर से तमाम सुख दुख सहे पर पैर उठाकर कभी मायके नहीं गई।और न किसी से कभी मन की बात की। अब वहां की हर चीज उसे पराई लगती, लगे भी क्यों न जब देखो-
मां भाई भाभी के गुनगान करते नज़र आई।
उसने नोटिस किया कि उसके बच्चों से ज्यादा वो भाई के बच्चों को तबज्जों देती।
पर जैसे जैसे बच्चे बड़े होने लगे लगाव बढ़ने लगा फिर अक्सर होता कि कभी किसी के घर तो कभी किसी के घर पार्टी होने लगी।
जिससे सब इकट्ठे होते ,मौज मस्ती होती फिर खाना पीना खाकर अपने अपने घर चले जाते।
बस यही आपसी लगाव उसे अपनों में बांधने लगा।
वर्षों बाद उसे लगा कि ससुराल के अलावा भी कोई और दुनिया है जहां वो खुलकर जी सकती है
आज उसे अहसास हुआ कि मायका क्या होता है।
और मुंह से निकल गया।
कौन कहता है मां के बाद रिश्ता खत्म हो जाता है अरे असल लगाव तो भाई भाभी और उनके बच्चों के आपसी समझ से होता है।जो यहां उसे देखने को मिल रहा।
फिर एक दिन पति की तबियत ज्यादा खराब होने पर भाई ने रात दिन एक कर दिया।जिसकी की उसे उम्मीद नही थी। क्योंकि कोई दवा या दुआ कुछ भी असर नही कर रही ।
इस बीच उसकी मां के घर आई मौसी से हुई और बातों ही बातों में उसने अपनी परेशानी बताई तो वो बोली परेशान न हो जल्द ही सब कुछ ठीक हो जाएगा।
बस उनका कहना था कि जैसे उनकी जुबान पर मां सरस्वती बैठी हो पति देव की हालत में सुधार होने लगा।
इस पर उसने सोचा क्यों न उनका मुंह मीठा किया जाए।
ऐसा सोच वो कुछ दिनों के लिए मां के घर आई मासी को उसने रोक लिया।और एक दिन साड़ी और मिठाई लेकर वो उन्हें खुशी खुशी देने गई जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया।वर्षों ससुराल में रहने के बाद उसे ऐसा महसूस हो रहा कि मायका क्या है
सच अगर लड़कियों से उनसे स्वर्ग कहां है पूछा जाए तो वो अपने मायके को धरती का स्वर्ग बताती हैं।
स्वरचित
कंचन आरज़ू