“ईश्वर के लिए #वक़्त से डरो बेटा ! तुम्हारी दो बेटियाँ हैं वैसे ही तुम्हारी ये बहनें हैं । आज पापा जिंदा होते तो ये दिन न मुझे देखने पड़ते न ही मुझे तुम्हारे आगे घुटने टेकने पड़ते “।
ज्योति ! तुम कुछ बोलो न बहु, समझाओ न विवेक को ,तुम भी तो एक बेटी हो । “माँ जी ! सही कहा आपने । मैं भी एक बेटी हूँ लेकिन बोझ नहीं बन रही किसी पर । और फिर शादी के लायक हो गयी हैं ये तो हाथ तो पीले करने ही हैं न ? इतना खर्च हम नहीं उठा सकते ।
ज्योति के मुँह से ये दो टूक बातें सुनकर अनिता जी बिल्कुल शांत हो गईं । अनिता जी के एक बेटा विवेक और दो छोटी बेटियाँ काजल और कनक थीं । काजल पोस्ट ग्रेजुएशन के दूसरे वर्ष में थी और कनक ने बारहवीं की परीक्षा पास की थी । अनिता जी के पति कौशल जी सरकारी नौकरी में कार्यरत थे लेकिन गम्भीर बीमारी की वजह से कनक के जन्म के बाद ही उनका देहावसान हो गया ।
विवेक प्राइवेट नौकरी में था उस समय तो अनिता जी ने सोचा अनुकम्पा वाली नौकरी बेटे को मिलेगी तो ज्यादा अच्छा रहेगा । जीवन सेट हो जाएगा विवेक का और अपनी बेटियों की शादी अच्छे से कर सकूँगी । अनिता जी ज्यादा पढ़ी लिखी तो नहीं दसवीं पास थीं । हालांकि पड़ोसी रिश्तेदार सबने
सुझाव दिया था कि विवेक तो नौकरी कर ही रहा है, अनिता जी को खुद के लिए और बेटियों के सुखद भविष्य के लिए नौकरी कर लेना चाहिए । पर अनिता जी नहीं चाहती थीं कि उनके पति का समाज मे रुतवा कम हो और वो चपरासी की या एक मामूली सी नौकरी करें । इसलिए उन्होंने निश्चय किया कि विवेक को ही नौकरी देना है । विवेक के नौकरी में आते ही छह महीने के भीतर ही उसने अपनी
कॉलेज की दोस्त ज्योति से शादी कर लिया । ज्योति थोड़ी गुस्सैल होने के बावजूद भी मस्तमौला थी स्वभाव से लेकिन विवेक के मनसोख , जिद्दी और स्वार्थी स्वभाव के कारण उस पर भी दुष्टता का रंग चढ़ गया । हर वक़्त विवेक ये सोचने में लगा रहता कि कैसे रातों रात अमीर बन जाऊं और मम्मी – बहनों को धोखा देकर जीवन अलग गुजर – बसर करूँ ।
अनिता जी को अपने पुराने दिन याद आने लगे जब उन्होंने अपने मायके वालों की भी नहीं सुनकर विवेक को नौकरी सौंप दी । काजल माँ के पास आकर बोलीं….”मम्मी ! कॉलेज ट्रिप के लिए पैसे चाहिए, अनिता जी मन ही मन स्वयं से सवाल पूछ रही थीं…”क्या गलत किया मैंने ? अपने बेटे के हाथ अपनी किस्मत और जिम्मेदारी सौंपकर ? सब कुछ तो इतना अच्छा सोचा था पर मन मुताबिक कुछ
कहाँ होता है । काजल ने झकझोर कर माँ को हिलाया तो अनिता जी की तन्द्रा टूटी । उन्होंने अपने पर्स में देखा तो बस दो हजार रुपये थे जो उन्हें भाई के घर मिले थे । विवेक तो न जाने कितने सवाल पूछेगा ये सोचकर उन्होंने दो हजार रुपये काजल को दे दिए । कनक ने ज्योति भाभी से कहा…”तीन हजार रुपये की जरूरत है भाभी ! प्लीज आप व्यवस्था कर दीजिए । ज्योति ने त्योरियाँ चढ़ाते हुए
बोला….दिलवा दूँगी पैसे, पहले तुम भैया की पसन्द अभय से शादी करने को राजी तो हो जाओ ।तुम्हें पता है तुमलोगों के ज़िद की वजह से विवेक जी अपने ऑफिस में मुंह नहीं दिखा पा रहे । करोड़ों की संपत्ति है, थोड़ा पीता ही तो है , हर किसी मे कुछ कमी होती है । कितनी लड़कियाँ उससे शादी करने के लिए मरी जा रही हैं । पर नहीं तुमलोगों को तो भाई के तरक्की से कोई मतलब ही नहीं है ।
कनक ने चिढ़ कर जवाब दिया…”जब सब कुछ इतना ही पसन्द है तो अपनी बहन की शादी करवा दीजिये न उससे । अब ज्योति का गुस्सा सातवें आसमान पर था ।
विवेक के ऑफिस से आते ही ज्योति ने बोलना शुरू कर दिया…”या तो इनलोग के साथ रहो तुम या मेरे साथ रहो । पैसे चाहिए बस इनको, इतना अच्छा शादी के लिए लड़का बता रही हूँ जब बात सुनना ही नहीं तो इनलोग को घर मे क्यों रखना ?
विवेक ने पूरा मामला सुनकर कहा…माँ समस्या क्या है ? आजकल सब पीते हैं । सोचो, इतने पैसे आ जाएँगे घर मे तो हम बड़ा सा नया घर और दुकान खरीद सकते हैं, हर खुशी खरीद सकते हैं । अनिता जी ने अपने सिर पर हाथ मारते हुए कहा…”दौलत के चक्कर मे तू अंधा हो गया है । बारह साल बड़े तलाकशुदा लड़के के साथ कैसे अपनी बेटी को भेज दूँ ? कौन सी सुविधाओं की बात कर रहा है ।
ऐसा लग रहा है अपनी बहन को बेचकर अपने लिए खुशियाँ खरीदना चाह रहा है । याद है तुझे पापा की ख्वाहिश थी काजल कनक की शादी अच्छे से करना । विवेक टेढ़ा सा मुँह बनाकर डायनिंग टेबल पर खाने बैठ गया । ज्योति ने तीन हजार लाकर काजल के हाथ मे पकड़ा दिए और वह पैकिंग करके अगले ट्रिप कर निकल गई । कनक और अनिता जी बहुत खुश थीं तभी तेरह वर्षीय छवि और इति (विवेक की बेटियाँ) कॉलेज से आईं और अपने कमरे में लेट गईं ।
अनिता जी ने दोनो पोतियों से बारी – बारी पूछा …इति ! क्या हुआ बेटा ? तुम्हारी आँखें इतनी लाल कैसे हैं ? इति ज़ोर – ज़ोर से फूटकर रोने लगी । छवि ने दादी को देखते ही तकिया में मुँह छिपा लिया । तभी वहाँ ज्योति आयी और अनिता जी को घूरने लगी । अनिता जी ने इति की आँखें पोछते हुए कहा…आधे घण्टे से पूछ रही हूँ बस रोए जा रही है । छवि से पूछा तो वो बोली मुझे नहीं पता ।क्या समस्या है कैसे समझें ।
ज्योति ने चीखते हुए कहा…”आप जाइये मम्मी जी ! मैं पूछ लूँगी । अनिता जी धीरे – धीरे इति और छवि को भर नज़र देखते हुए कमरे से निकल गईं ।
ज्योति के बहुत पूछने पर भी जवाब नहीं मिला तो ज्योति ने बोला सो जाओ । और तब तक दरवाजे पर घण्टी बजी । विवेक ने दरवाजा खोला तो उसकी आवाज़ में आश्चर्यमिश्रित खुशी थी । दरवाजे पर अभय खड़ा था । ये वही था जिसके साथ काजल की शादी के लिए ज़िद की जा रही थी । ज्योति ने अंदर आने के लिए मनुहार करते हुए चाय नाश्ता तैयार किया । धीरे – धीरे विवेक और अभय बातें कर
रहे थे । काफी देर जब हो गयी बात करते – करते तो अभय ने काजल को बुलाने की इच्छा जताई । अनिता जी बहुत कोशिश कर रही थीं कान लगाने की लेकिन वो सफल नहीं हुईं बातों के बोल सुनने में । ढेर सारे मिठाई , नमकीन, फल ड्राई फ्रूट और उपहार लेकर विवेक बहुत खुश था । उसने बताया कि काजल ट्रिप पर गयी है पर माँ को बुलाकर लाता हूँ ।चाय पीने के बाद वो कमरे में माँ से
बात करने गया तभी कमरे से छवि के रोने की आवाज़ तेज हुई । अभी ज्योति रसोई में थी तो अनिता जी धीरे से उसके कमरे में घुसकर इति के पास बैठ गईं । अनिता जी ने इति के आंसू पोछकर उसे गले से लगाकर पुचकारते हुए कहा..”आज तुम दादी से क्यों गुस्सा हो बेटी ? क्या परीक्षा खराब गया है ? या तुम मुझे प्यार नहीं करती नहीं बताना चाहती हो ?
ये बातें सुनकर इति का हृदय द्रवित हो गया और दादी के गले से लिपटकर वह बोल पड़ी …”दादी ! जिस लड़के से काजल बुआ की बात चल रही है न वो आज मुझे स्कूल से निकलते वक्त मिला था, बारिश हो रही थी छवि दोस्त के साथ ऑटो में बैठ गयी, वहां जगह नहीं थी तो मैं उस आदमी के कहने पर बैठ गयी ।फिर उसने….उसने….अब इति को देख छवि भी रोने लगी ।
अनिता जी ने पूछा..”उसने क्या मेरी बच्ची ??? खुल के बोल मुझे चिंता हो रही, दिल बैठा जा रहा है । इति ने अपने कपड़े हटाकर जांघ और बाहों पर खरोचने के निशान दिखाते हुए बताया कि मेरे साथ ज़बरदस्ती कर रहा था और मैं भागने को सोची तो गाड़ी की चाभी और नाखून से खुरच दिया । विवेक ये सारी बातें सुन रहा था, मन हुआ कि बीच मे ही टोके फिर उसने पूरी कहानी दरवाजे पर शांति से खड़ा होकर सुना और जड़वत हो गया ।
अनिता जी आँखों मे आँसूं और मन के भीतर भयानक ज्वाला लिए अभय के पास जाने को ही सोच रही थीं कि विवेक से उनकी नज़रें टकरा गईं ।
विवेक की आंखों में पछतावा के आँसू दिख रहे थे। मुट्ठी भींचे वो वहाँ से अभय के पास जाने लगा तब तक अनिता जी ने रोकते हुए कहा ..मैंने तुझे पहले ही बोला था पैसे के पीछे मत भाग , एक बेटी की ज़िंदगी मैंने अड़ कर बचाई तो तुमने दूसरी बेटी की ज़िंदगी दाव पर लगा दिया, और बचा है कुछ ?
अनिता जी और विवेक दोनो अभय के पास खड़े हुए । पहले अनिता जी ने उसके सामान बारी – बारी से उठाकर उसपर फेंकना और गरजना शुरू किया तो ज्योति और अभय दोनो भौंचक्के थे । विवेक ने सारी बात ज्योति को बताई । ज्योति तुरंत बेटी के कमरे में गयी और उसे गले से लगाकर रोने लगी । उसे अपने आप मे बुरा लग रहा था कि मैं पैसे और प्रमोशन के लिए इतनी लोभी हो गयी थी कि घर, रिश्ते नाते सब दाव पर लगाने चली थी , इतनी कठोर बन गयी पैसे के लोभ में कि मेरी बेटी मुझसे बताने में इतना डर रही है ।
ज्योति ने अभय का हाथ ऐंठकर उसे घर से बाहर निकल जाने को कहते हुए पुलिस में जाने की धमकी दी और घर से बाहर निकाल दिया । अभय कुछ कहना चाह रहा था तब तक छवि ने आकर उसके जूते से पिटाई करते हुए बोला..”आगे से लड़की छेड़ने से पहले दस बार सोचेगा । और अभय अपना सा मुँह लेकर चला गया ।
“माँ जी ! माँ जी हमे माफ कर दीजिए । घर के अंदर घुसते ही ज्योति ने अनिता जी से कहा । विवेक भी माँ के गले लगकर बोला..’माफ कर दो मम्मी ! सही बोला था आपने, मेरी भी दो बेटियाँ हैं, आपने बहुत समझाया पर हम दोनों धन लाभ में अंधे हो गए थे, किसी की तकलीफ और दर्द देख ही नहीं पा रहे थे ।
अनिता जी ने सबको बिठाकर प्यार से समझाया…”धन लोभ किसी को भी नहीं बख्शता, विनाश इसमें तय है । वो तो भला हो ऊपर वाले का जिसने कुछ बड़ा हादसा होने से बचा लिया ।
ज्योति के रोने से कंठ अवरुद्ध हो गए थे, लेकिन अब वो चैन से साँस ले रही थी कि उसका परिवार एक नर्क में जाने से बच गया ।
ज्योति और विवेक दोनो चेहरे पर ग्लानि के भाव लिए खड़े थे । छवि, इति और कनक सब एक दूसरे से मिलकर प्यार और परवाह जता रहे थे ।
#वक़्त से डरो
मौलिक, स्वरचित
अर्चना सिंह