ढलती सांझ – सीमा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

“अपने जीवन की ढलती सांझ में प्रभु से एक ही विनती है कि शारीरिक कष्ट चाहे कितना ही दे देना, पर चलते हाथ-पांव की अवस्था में ही उठा लेना। हे प्रभु! बस शैय्याग्रस्त न होना पड़े। बच्चों को हमारी वजह से कष्ट न उठाना पड़े।” संगीता जी ने कहा।

“संगीता, ये तो तुम सही कह रही हो। बेचारे बच्चे हमारे लिए कितना दौड़ते हैं। कभी अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटते। भगवान की कृपा से हमें तीनों बहुएं भी बहुत ही संस्कारी मिली हैं। कल ही नमिता बहू का फोन आया था कि मई-जून में भारत में बहुत गर्मी रहेगी, जो मम्मी की आंखों के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं है। इसलिए आप दोनों ऑस्ट्रेलिया आ जाएं। मैं टिकट बुक कर रही हूं।” श्यामलाल जी कहने लगे।

“हां जी, हमारी बहुएं अच्छी हैं, तभी तो हमारे बेटे सब कर पा रहे हैं। आजकल हर किसी से तो सुनते हैं कि बहुओं ने आकर बेटों को वश में कर लिया। ऐसी स्थिति में बेटे चाहकर भी अपने माता-पिता के लिए कुछ नहीं कर पाते। ये सब हमारी ईश्वर में आस्था और सच्ची नीयत का ही परिणाम है।” संगीता जी ने गर्व से जवाब दिया।

“सच में! ईश्वर ने अब तक की जिंदगी बहुत सुंदर दी है। और तुम्हारा साथ तो सोने पर सुहागा रहा है। तुमने जीवन के हर उतार-चढ़ाव में मेरा साथ दिया है।” श्यामलाल जी ने अपनी पत्नी की ओर प्यार से देखा।

आज श्यामलाल जी और संगीता जी की बातें समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रही थीं। दोनों रोज़ सुबह पार्क में सैर और योगा करने आते हैं, लेकिन आज छुट्टी का दिन है, तो वे दोनों तनावमुक्त होकर अपने विवाह से लेकर अब तक की अपनी परिपूर्ण जिंदगी को याद करते हुए सच्चे मन से भगवान को धन्यवाद दे रहे हैं।

72 वर्ष के श्यामलाल जी और 69 वर्ष की संगीता जी के विवाह के 50 वर्ष होने में चार दिन ही बचे हैं। जब कुरुक्षेत्र में रहने वाले श्यामलाल जी का विवाह हुआ, तो उनके पांच छोटे भाई-बहन थे, जिन्हें पढ़ाने-लिखाने और बसाने की जिम्मेदारी उन्हीं पर थी।

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उनके पिता जी को असमय बीमारियों ने घेर लिया था और पुराना धन-धान्य भी नहीं था। इसलिए वे धन कमाने के लिए व्यापार से संबंधित कच्चा माल और तैयार माल खरीदने और बेचने के लिए महीना-महीना घर से बाहर रहते, और सुघड़ गृहिणी के रूप में संगीता जी पीछे से घर में निस्वार्थ भाव से सभी को संभालतीं।

सभी बहन-भाइयों को अच्छी शिक्षा दिलवाकर उनका घर बसाने में दोनों ने एक-दूसरे का भरपूर सहयोग दिया। इस बीच संयुक्त परिवार में रहते हुए उनकी भी चार संतानें हुईं। सबसे बड़ी बेटी और फिर तीन बेटे। पारिवारिक और सामाजिक मूल्य और संस्कार उन्हें अपने बच्चों को कभी सिखाने नहीं पड़े। ये सब घर के आचरण से उन्हें विरासत में मिले।

चारों बच्चे पढ़ाई में बहुत होशियार थे, इसलिए उन पर कभी ज्यादा ध्यान नहीं देना पड़ा था। तो श्यामलाल जी और संगीता जी अपना काफी समय धार्मिक और सामाजिक कार्यों में बिताने लगे। घर में प्रायः भजन संकीर्तन करवाना, अपाहिजों को भोजन करवाना और ज़रूरतमंद लोगों की सहायता करना आदि उनके जीवन के अभिन्न अंग बन गए।

श्यामलाल जी के भाई-बहनों का कोई भी बच्चा बीमार होता, तो वह इलाज के लिए इन्हीं के पास लेकर आता। दोनों पति-पत्नी पूरी तीमारदारी करते। इन सब कार्यों से उनके चारों बच्चों के अवचेतन मन पर सच्ची मानवता की छाप पड़ती गई। परिणामस्वरूप भारतीय संस्कारों से ओत-प्रोत चारों बच्चे पढ़-लिख कर प्रतिष्ठित पदों पर नियुक्त हो गए।

श्यामलाल जी और संगीता जी ने धूमधाम से अपने बच्चों का विवाह किया। उनके पुण्यकर्मों और संस्कारों को श्रेय दें अथवा उनके बच्चों के गुणों और उपलब्धियों को, चारों बच्चों को बहुत अच्छे जीवनसाथी मिले, जो परिवार में ऐसे ही समाहित हो गए जैसे दूध में शक्कर।

श्यामलाल जी और संगीता जी के तो चार से आठ बच्चे हो गए, जिनसे वे लाड़ लड़ाते और बदले में खूब मान-सम्मान पाते। बेटी गरिमा अपने पति के साथ गुड़गांव में रहती है। बड़ा बेटा जतिन भी अपनी पत्नी सलोनी के साथ गुड़गांव में ही है। मंझला बेटा अनिल और उसकी पत्नी नमिता ऑस्ट्रेलिया में हैं और सबसे छोटा बेटा सुनील और उसकी पत्नी साक्षी यहीं कुरुक्षेत्र में ही उनके साथ रहते हैं। सुख-दुख से सब मिलकर पार पाते हैं।

समय के साथ-साथ उनके चारों बच्चों के भी दो-दो बच्चे हो गए। सबके जन्म संस्कार पर खूब खुशियां मनाई गईं। आठ बच्चों के दादा-दादी और नाना-नानी बनकर श्यामलाल जी और संगीता जी फूले नहीं समाते। वैसे तो उनका मुख्य ठिकाना कुरुक्षेत्र ही है, पर बच्चों के अनुरोध पर कभी ऑस्ट्रेलिया तो कभी गुड़गांव जाते रहते हैं। नाती-पोतों सबको उनसे विशेष लगाव है।

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“गुड़गांव में कुरुक्षेत्र की अपेक्षा अधिक उच्चस्तरीय चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हैं। और आपका दीदी से भी मिलना हो जाएगा,” बड़े बेटा बहू ऐसा कहकर वहीं बुलाते रहते हैं, तो वहीं उनका इलाज चलता है।

“भारत की गर्मी और प्रदूषण आप लोगों की सेहत के लिए ठीक नहीं है,” कहते हुए मंझला बेटा बहू जब-तब ऑस्ट्रेलिया की टिकट करवा देते हैं।

“मम्मी-पापा, आपको गए हुए बहुत दिन हो गए। मन नहीं लग रहा,” कहकर छोटे बहू-बेटा वापस कुरुक्षेत्र बुलवा लेते हैं।

श्यामलाल जी और संगीता जी ने तो हमेशा देना ही सीखा है। बदले में उन्होंने बाहर वालों से तो क्या, अपने बच्चों से भी कभी अपेक्षा नहीं रखी है। वे तो बच्चे ही ऐसे हैं कि उन्हें इतना मान देते हैं। उनकी बढ़ती उम्र की जरूरतों का सारा ध्यान रखते हैं, उनके खानपान का, चिकित्सा का और यहां तक कि मनोरंजन का भी। उन दोनों के जन्मदिन पर बच्चे हमेशा पार्टी का आयोजन करते हैं।

“हम कहते रह जाते हैं कि जन्मदिन तो बच्चों का मनाते हैं। हमारा क्या जन्मदिन मनाना! अब तो हमारे जीवन की सांझ ढल रही है। पर बच्चे हमारी एक नहीं सुनते,” आज पार्क में बैठे-बैठे बातों का, यादों का सिलसिला चल निकला है, तो संगीता जी अपने पति से कहती हैं।

“तो क्या अब भी बच्चे ऐसा ही करेंगे? भई, चार दिन बाद हमारी गोल्डन जुबली है। विवाह की 50वीं वर्षगांठ तो किस्मत वालों की आती है।” सहसा श्यामलाल जी के मुख से निकला।

“आप भी न बस! बच्चों के सामने नए-नए जोड़ों की तरह ये शादी की सालगिरह मनाते शर्म नहीं आएगी क्या! बूढ़े हो चले हैं अब!” कहते हुए संगीता जी सच में लाल हो गईं।

“संगीता, देखो तुम्हारे चेहरे की लाली बता रही है कि #ढलती सांझ कितनी खूबसूरत होती है। गरिमामई जिंदगी जी है हमने। वही गरिमा तुम्हारे चेहरे पर नज़र आ रही है। भई, गोल्डन जुबली जीवन में एक ही बार आती है, मनाना तो बनता है।” श्यामलाल जी ने अपनी पत्नी को छेड़ा।

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“जी, बच्चों ने आपसे इस बारे में कुछ कहा है क्या?” संगीता जी ने अपने पति को टटोला।

“नहीं! बच्चों ने मुझे तो कुछ नहीं कहा। मुझे लगा था शायद तुम्हें कहा हो!” श्यामलाल जी बोले।

“जी, छोड़िए न! हम भी क्या बातें लेकर बैठ गए! कल गुड़गांव से सलोनी बहू का फोन आया था। वह कह रही थी कि जतिन को दस दिन के लिए ऑफिस की कॉन्फ्रेंस के लिए हैदराबाद जाना है। अब कॉन्फ्रेंस तो जरूरी है। उसे बीच में छोड़कर एनिवर्सरी पर कैसे आएगा वह? हमें समझना चाहिए,” संगीता जी बोलीं।

तभी श्यामलाल जी का मोबाइल बज उठा। ऑस्ट्रेलिया से अनिल का फोन था, “पापा, आपको नमिता ने टिकट के बारे में बताया था न! आपकी और मम्मी की दस दिन बाद की टिकट बुक हो चुकी है। हम निश्चित समय पर आपको लेने मेलबर्न एयरपोर्ट पर पहुंच जाएंगे।”

“संगीता, तुम ठीक कह रही हो! बच्चों का अपना रूटीन है। बेचारे हमारा कितना ध्यान रखते हैं। नहीं तो दस दिन बाद हमें ऑस्ट्रेलिया क्यों बुलाते! वे एनिवर्सरी पर नहीं आ सकते तो क्या हुआ! चलो हम यहीं घर में सुनील और साक्षी के साथ मना लेंगे।” मंझले बेटे अनिल से फोन पर बात करने के बाद श्यामलाल जी बोल रहे थे कि तभी छोटा बेटा सुनील पार्क में आ पहुंचा।

“मम्मी, पापा, आज आप अब तक घर क्यों नहीं आए? साक्षी और बच्चे आप दोनों का नाश्ते के लिए इंतजार कर रहे हैं। बच्चे कह रहे हैं कि आज हमें दादू-दादी के साथ समय बिताना है। क्योंकि चार दिन बाद साक्षी की चचेरी बहन की शादी है, तो परसों हम उसके मायके चले जाएंगे और कल बच्चों का स्कूल है।” सुनील उन्हें गाड़ी में बिठाते हुए बोला।

गाड़ी में बैठकर श्यामलाल जी और संगीता जी आंखों ही आंखों में एक-दूसरे को आश्वासन दे रहे थे, “भगवान चाहते हैं कि गोल्डन जुबली हम दोनों आपस में ही मनाएं। हर फंक्शन का ग्रैंड सेलिब्रेशन जरूरी थोड़ी ना होता है। लोगों के बच्चे अपने माँ-बाप की जरा भी कद्र नहीं करते। हमें तो हीरे जैसे बच्चे मिले हैं। हम जिंदगी भर संतोष भाव रखते आए हैं। जीवन की ढलती सांझ में उम्मीदें नहीं, संतोष और प्रार्थना का भाव बढ़ना चाहिए।”

खैर, घर पहुंचकर नाश्ता कर, बच्चों के साथ खेलकर दोनों आराम कर रहे थे कि गुड़गांव से सलोनी बहू का फोन आ गया, “पापा जी, मम्मी का अगले सप्ताह चेकअप ड्यू है ना? पर तब डॉक्टर आउट ऑफ स्टेशन होगा। इसलिए मम्मी की अप्वाइंटमेंट प्रीपोन हो गई है। मैंने टैक्सी बुक कर दी है। आप कल और परसों पैकिंग कर लीजिए और उसके अगले दिन यहां आ जाइए।”

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भगवान की मर्जी मानकर श्यामलाल जी और संगीता जी गुड़गांव पहुंच गए। उनकी एनिवर्सरी की सुबह, डॉक्टर का कहकर सलोनी उन्हें एक फॉर्म हाउस ले गई। जैसे ही वे प्रवेश द्वार पर पहुंचे, हैप्पी गोल्डन जुबली की सामूहिक ध्वनि और पुष्पवर्षा के साथ उनका स्वागत किया गया।

उनकी आंखें आश्चर्य से फटी रह गईं जब उन्होंने अपने चारों बच्चों को अपने परिवारों सहित वहां चहकते हुए पाया। अनिल और नमिता की वापस जाते हुए उन्हें अपने साथ ही मेलबर्न लेकर जाने की योजना थी।

असल में, उनके बच्चों ने उनके लिए सरप्राइज प्लान किया हुआ था। सभी बच्चों और नाती-पोतों ने मिलकर  महीने भर से सीक्रेट ग्रुप बनाया हुआ था। उनके इस अहम दिन को खास बनाने के लिए उनकी बेटी गरिमा के निर्देशन में खूब तैयारियां की थीं। एक सप्ताह पहले ही, जतिन और सलोनी ने यह फॉर्म हाउस पार्टी वेन्यू के रूप में बुक किया था, यहां बहुत सारी सजावट की गई थी।

श्यामलाल जी और संगीता जी का दिल भर आया। ये अनमोल पल थे। वे अपनी आँखों में आँसू छिपाए हुए थे, और मन ही मन भगवान का धन्यवाद कर रहे थे कि उनके पास इतने प्यारे बच्चे हैं।

सबकी ओर से गरिमा ने कहा, “पापा, मम्मी, हम जानते हैं कि आप दोनों ने हमें हर चीज़ दी है, लेकिन यह दिन सिर्फ आपका है। हम चाहते हैं कि आप महसूस करें कि हम कितने कृतज्ञ हैं आपके। यह सब हमारे लिए बहुत मायने रखता है, आपकी वजह से हम सच्चे इंसान बन पाए हैं।”

फिर सबने मिलकर उनके जन्म से लेकर अब तक की जीवन यात्रा को नाटक के रूप में प्रस्तुत किया। छोटे नाती-पोतों ने उनके बाल रूप को निभाया। बड़े नाती-पोतों ने उनकी किशोरावस्था को अपने अभिनय से पुनर्जीवित किया और उनके स्वयं के बच्चों ने उनकी युवावास्था से लेकर अब तक की यात्रा का सजीव प्रस्तुतीकरण किया।

संपूर्ण नाटक उनके संघर्ष, प्यार और परिवार के लिए किए गए बलिदान की पूरी कहानी थी।

उनकी पुरानी तस्वीरों को लेकर एक विशेष स्लाइड शो भी तैयार किया गया था, जो नाटक की प्रस्तुति के दौरान बड़ी स्क्रीन पर चल रहा था। श्यामलाल जी और संगीता जी ने उन तस्वीरों में खुद को देखा और महसूस किया कि कैसे उन्होंने एक-दूसरे के साथ हर मुश्किल को पार किया था।

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यह दिन सच में जादुई था, और श्यामलाल जी और संगीता जी ने इस दिन को अपने जीवन का सबसे खूबसूरत दिन माना।

“हमने कभी नहीं सोचा था कि बच्चों से इतनी बड़ी सरप्राइज मिलेगी,” संगीता जी ने आँसू पोंछते हुए कहा। “हमने तो सोचा था कि इन दिनों तुम सब व्यस्त होंगे, लेकिन इस प्यार और आभार के पल ने हमें यह एहसास दिला दिया कि हम सच में भाग्यशाली हैं।”

श्यामलाल जी ने एक नज़र संगीता जी की ओर देखा और फिर सबसे कहा, “हम दोनों ने हमेशा यही सीखा है कि प्यार और समर्पण कभी व्यर्थ नहीं जाते। आज हम जो कुछ भी हैं, वह तुम सब बच्चों के प्यार और सम्मान का परिणाम है।”

इस अनमोल सरप्राइज के बाद श्यामलाल जी और संगीता जी का विश्वास और मजबूत हो गया कि उनके बच्चों ने उन्हें जितना प्यार दिया है, वह अमूल्य है।

यह सच में उनकी ऐसी गोल्डन जुबली थी, जिसने उनके जीवन की #ढलती सांझ को चिरकाल के लिए अतुलनीय और अविस्मरणीय बना दिया।

-सीमा गुप्ता (मौलिक व स्वरचित)

साप्ताहिक विषय: #ढलती सांझ

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